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Christmas Day 2020 : इस क्रिसमस के मौके पर रोम के पादरी पहनेंगे काशी में बना गाउन

वर्ष 2005 में बनारस के बुनकर सैयद हसन अंसारी प्रदर्शनी में भाग लेने पहली बार जर्मनी गए थे। वहां उनकी मुलाकात कुछ ट्रेडर्स से हुई जो बनारसी हैंडलूम कारीगरी के दीवाने हो गए। उन्होंने फैब्रिक की कुछ अलग डिजाइन सैयद को डेवलप करने को दीं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 23 Dec 2020 08:41 PM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 08:41 PM (IST)
Christmas Day 2020 : इस क्रिसमस के मौके पर रोम के पादरी पहनेंगे काशी में बना गाउन
बुनकारी व इंब्रायडी के मेल से एनशिएंट रोमन टेक्निक हैंड एंब्रायडरी का काम शुरू हुआ और दनादन आर्डर मिलने लगे।

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। काशी को यूं ही दुनिया का सबसे जीवंत शहर नहीं कहा जाता है। एक ओर यह धर्म और आस्था का केंद्र है तो दूसरी ओर कला व साहित्य का भी मरकज है। ऐसा ही एक हुनर बनारस का परचम दुनिया में बुलंद किए हुए है। यह कला है एनशिएंट रोमन टेक्निक हैंड एंब्रायडरी, जिसे बनारस के हथकरघा बुनकरों व जरी-जरदोजी के हुनरमंदों ने अपनाकर पश्चिमी देशों को अपना मुरीद बना लिया है। क्रिसमस पर जब वेटिकन सिटी समेत ग्रीस, इटली व अमेरिकी चर्च के पादरी तैयार होकर धार्मिक अनुष्ठान को संपादित करेंगे, तो उनके जिस्म पर सजा लबादा काशी की अनूठी कारीगरी की गवाही देगा। 

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वर्ष 2005 में बनारस के बुनकर सैयद हसन अंसारी प्रदर्शनी में भाग लेने पहली बार जर्मनी गए थे। वहां उनकी मुलाकात कुछ ट्रेडर्स से हुई, जो बनारसी हैंडलूम कारीगरी के दीवाने हो गए। उन्होंने फैब्रिक की कुछ अलग डिजाइन सैयद को डेवलप करने को दीं। बाद में फैब्रिक के साथ ही क्रास व लबादे की डिजाइनें भी डेवलप कराईं। इसी के साथ बुनकारी व इंब्रायडी के मेल से एनशिएंट रोमन टेक्निक हैंड एंब्रायडरी का काम शुरू हुआ और दनादन आर्डर मिलने लगे। 

बहुमूल्य लबादे की तैयार होती है प्रतिकृति 

सैयद हसन अंसारी के मुताबिक प्रमुख चर्च के पादरियों की ड्रेस भी अलग-अलग होती है। यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। हर धार्मिक आयोजन में पादरी को यही धारण करना होता है। जर्जर होने की दशा में 500-700 साल पुराने गाउन, स्टाल आदि की प्रतिकृति बनारस में ही तैयार कराई जाती है। आर्डर मिलने पर इसका कपड़ा, डिजाइन व डिजाइन में उभार लाने के लिए लकड़ी की वसली तैयार करने व कारीगरों को जरदोजी का आर्ट वर्क पूरा करने में छह से आठ महीने का समय लगता है। लबादे की प्रतिकृति में पुराने परिधान की तरह ही सोने-चांदी की जरी का काम करते हुए हीरे जड़े जाते हैं। 

गलियों में होता अनूठा काम

हैंडलूम फैब्रिक पर जरी-जरदोजी से क्रास आदि बनाने का बारीक काम शिवाला, लल्लापुरा, कोयला बाजार आदि क्षेत्रों में होता है। गलियों में छोटे-छोटे कारखानों में सुबह से शाम तक कारीगर आर्थोडाक्स, कैथोलिक या अन्य किस्म के डिजाइन बनाने में मशगूल रहते हैं। 

बोले काशी के निर्यातक  

ग्रीस, इटली व अमेरिकी चर्च से जुड़े लोग सामान्य फैब्रिक पर इंडियन टेस्टेड जरी से बने आर्ट वर्क को पसंद करते हैं, जो देखने में सोने-चांदी की जरी की तरह ही होता है। वहीं पुराने लबादे की प्रतिकृति भी आर्डर मिलने पर तैयार कराई जाती है। लाकडाउन से पहले तक आर्डर गया था। वर्ष 2021 में बढिय़ा आर्डर मिलने की संभावना है। - सैयद हसन अंसारी, बुनकर-निर्यातक। 


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