हाईटेक इंतजाम : 'फैंटम ड्रोन' से अब 'गंगेय डाल्फिन' सूंस की होगी निगरानी
गंगा में गोमुख से गंगासागर तक डाल्फिन समेत विभिन्न जलीय जीवों की गणना के लिए फैंटम ड्रोन के इस्तेमाल पर सहमति बन गई है।
वाराणसी, [संग्राम सिंह]। अभी तक गंगा में जलीय जीवों को ट्रेस करने के लिए रेंज फाइंडर और ग्रोपो कैमरे का इस्तेमाल हो रहा है। गिनती करने वालों के लिए यह तकनीक बहुत पुरानी और परेशान करने वाली है, इससे रिपोर्ट में भी संदेह पैदा होता है। वर्ष 2019 से शुरू होने वाली वृहद गणना में यह परेशानी दोबारा नहीं खड़ी होगी। गंगा में गोमुख से गंगासागर तक डाल्फिन समेत विभिन्न जलीय जीवों की गणना के लिए फैंटम ड्रोन के इस्तेमाल पर सहमति बन गई है।
जापान की डीजीआइ कंपनी से दो फैंटम ड्रोन की खरीद हो गई है। केंद्र सरकार की स्वर्णिम परियोजना 'नमामि गंगे' से गंगा में फैंटम ड्रोन का पहली बार इस्तेमाल भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक करेंगे, इसके लिए वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित भी किया जा चुका है। अब इसी ड्रोन से न सिर्फ जलीय जीव गिने जाएंगे बल्कि समय-समय पर उन्हें मॉनीटर भी किया जा सकेगा। वाराणसी से पश्चिम बंगाल तक अध्ययन के लिए टीम भी नियुक्त कर दी गई है।
एक सेकेंड में खींचेगा 60 फोटो : यह फैंटम ड्रोन एक मिनट में उच्च गुणवत्ता वाले करीब 60 फोटो खींचेगा, अब इससे वीडियो फिल्म भी बनाई जा सकेगी। 500 मीटर ऊपर ले जाकर इससे 250 मीटर की परीधि तक की गतिविधि और मौजूद जलीय जीवों की तस्वीरें ली जा सकेंगी। जल प्रदूषण की तत्काल रिपोर्ट : वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट अब गंगा के जल प्रदूषण का आकलन करने के लिए वाटर क्वालिटी एनालाइजर का प्रयोग कर रहा है। शीतकालीन सर्वेक्षण में अब कई प्वाइंट से सैंपल एकत्र करते हुए रिपोर्ट तैयार की जा रही है। जल का तापमान, आक्सीजन, सॉल्ट, नाइट्रेट और पीएच लेवल की तत्काल रिपोर्ट बनाई जा रही।
गंगा में बढ़ गया खनन : भारतीय वन्य जीव अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गंगा में खनन बढ़ गया है। इस समय वाराणसी से पश्चिम बंगाल के बीच शीतकालीन गणना हो रही है। वैज्ञानिक गौरा चंद्र दास ने बताया कि पिछले वर्ष जब गणना चल रही थी तो यह संख्या बहुत कम थी। गंगा में नाले भी अधिक संख्या में सीधे गिराए जा रहे हैं, जिन्हें रोकने की अत्यंत आवश्यकता है। ड्रोन से सर्वे इसी वर्ष शुरू हो गया होता, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। चूंकि अब ड्रोन की खरीद हो चुकी है इसलिए जलीय जीवों की वास्तविक गणना आसानी से हो सकेगी।- डा. रुचि बडोला, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून।