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Coronavirus के प्रकोप को समाप्‍त करने के लिए काशी के दंडी संन्यासियों ने किया हनुमान चालीसा का पाठ

काशी के दंडी संन्यासियों ने रविवार को 21 बार सस्वर हनुमान चालीसा का पाठ कर विश्व शांति एवं कोरोना के प्रकोप को समाप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 02:13 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 02:13 PM (IST)
Coronavirus के प्रकोप को समाप्‍त करने के लिए काशी के दंडी संन्यासियों ने किया हनुमान चालीसा का पाठ
Coronavirus के प्रकोप को समाप्‍त करने के लिए काशी के दंडी संन्यासियों ने किया हनुमान चालीसा का पाठ

वाराणसी, जेएनएन। संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी से त्रस्त है। इसकी कोई दवा नहीं आई है। वहीं मानवता कराह रही है। ऐसे में काशी के संतों ने अध्यात्म का सहारा लिया है। काशी के दंडी संन्यासियों ने 21 बार सस्वर हनुमान चालीसा का पाठ कर विश्व शांति एवं कोरोना के प्रकोप को समाप्त करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। भारतीय जनता पार्टी प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में दंडी संन्यासियों ने विश्व शांति के लिए हनुमान चालीसा एवं शांति पाठ का वाचन किया।

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कथा संपूर्ण विश्व कल्याण की कामना की प्रबुद्ध प्रकोष्ठ काशी क्षेत्र के संयोजक डॉक्टर सुनील मिश्रा ने बताया कि जब भौतिक शक्तियां असफल होती है तब अध्यात्मिक शक्तियों का सहारा लिया जाता है। आज काशी के संतों ने अध्यात्मिक शक्ति को जागृत करने का जो प्रयास किया है इससे महामारी के समाप्ति में मदद मिलेगी। संतो द्वारा किए गए इस प्रयास से वातावरण में परिवर्तन होगा जो कि एक सकारात्मक ऊर्जा से नासिक भारत को बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित करेगा।

कार्यक्रम के संयोजक दिव्यांग बंधु डॉक्टर उत्तम ओझा ने बताया कि की काशी के संतों की प्रार्थना निष्फल नहीं जाएगी। इनके परिणाम हमें अवश्य दिखाई देंगे और हनुमान जी का मंत्र है नासे रोग हरे सब पीरा। भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व से मनुष्यता की पीड़ा दूर होगी। भौतिक शक्तियां आज पूरी तरह परास्त हो चुकी है और अध्यात्म का शरण लिया जा रहा है। कुछ दिन पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भी व्हाइट हाउस में शांति पाठ कराया था। हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ करने वाले प्रमुख लोगों में स्वामी श्री गुरू आश्रम महाराज, स्वामी कृपा शंकर आश्र स्वामी श्यामदेव महाराज, श्री रणछोर आश्र, वाराणसी, आचार्य दुर्गा शंकर पांडे मौजूद रहे।


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