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चंद्रकांता के तिलिस्म का विजयगढ़ में छिपा है राज, छह फीट चौड़ी दीवार पर दौड़ता था 'क्रूर सिंह' का घोड़ा

इस किले में लोग ढूंढ़ते रह जाते हैं उस चंद्रकांता को जिले देवकी नंदन खत्री ने अपनी रचना चंद्रकांता संतति में उकेरा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 08:15 AM (IST)
चंद्रकांता के तिलिस्म का विजयगढ़ में छिपा है राज, छह फीट चौड़ी दीवार पर दौड़ता था 'क्रूर सिंह' का घोड़ा
चंद्रकांता के तिलिस्म का विजयगढ़ में छिपा है राज, छह फीट चौड़ी दीवार पर दौड़ता था 'क्रूर सिंह' का घोड़ा

सोनभद्र, जेएनएन। दुनिया के सबसे अनोखे स्थान पर्यटकों के लिए हमेशा से लुभाते रहे हैं। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए देश-विदेश के पर्यटक पहुंचते रहते हैं। भले स्थान वो सात समंदर पार ही क्यों न हो। इसी खूबसूरती और अनोखेपन को समेटे हुए है सोनभद्र जनपद का विजयगढ़ दुर्ग। यहां का वैभव कैसा रहा होगा, दुर्ग का जर्रा-जर्रा आज भी बयां करता है। देखने वाले अपलक निहारते रह जाते हैं। और ढूंढ़ते रह जाते हैं उस चंद्रकांता को जिले देवकी नंदन खत्री ने अपनी रचना चंद्रकांता संतति में उकेरा है। इसके साथ दुर्ग से बही वीरगाथा की धाराओं को भी लोग बरबस नहीं भूल पाते। यही कारण है कि साल-दर-साल पर्यटनप्रेमी किसी न किसी रास्ते से आते ही रहते हैं।

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उपेक्षा का दंश झेल रहा जनपद का वैभव 

दरअसल, यह विजयगढ़ दुर्ग चार राज्यों मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्यों के सीमावर्ती जनपद सोनभद्र में है। यह दुर्ग वीरगाथा, ऐयारों की अनसुनी कहानियों व तिलिस्म के खजाने से भरपूर विजयगढ़ दुर्ग। महाभारत काल से लेकर अंग्रेजों की गतिविधियों का साक्षी यह किला कई रहस्य समेटा हुआ है। यहां आस्था है, रहस्य और रोमांच भी भरपूर है। गंगा-जमुनी तहजीब का प्रत्यक्ष प्रमाण यहां देखने को मिलता है। कुल मिलाकर पर्यटन के दृष्टिकोण से यह स्थान सोनांचल का महत्वपूर्ण स्थल है। बावजूद इसके पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। अगर यहां कुछ व्यवस्थाएं हो जाएं तो यह तिलिस्म के खजाने वाला यह किला सोनभद्र का खजाना भरने में उपर्युक्त होगा। 

महाभारत काल से भी जुड़ा है विजयगढ़ 

हजारों साल पुराने इस दुर्ग का इतिहास महाभारत काल से ही जुड़ा है। कभी विजय गिरि के नाम से पहचान रखने वाले इस दुर्ग पर ऋषियों द्वारा तपस्या की जाती थी। कालांतर में यह किला बना। ऐसी मान्यता है कि चंद्रगुप्त मौर्य को जब मगध पर आक्रमण करना था तो उन्होंने अपनी सेना को इसी किले पर विश्राम कराया था। यहां से थोड़ी ही दूरी पर मगध पड़ता है, जो बिहार में है। कुछ किताबों में किले की कहानी राजा चेत सिंह से भी जुड़ी बतायी जाती है। यह किला तब और ज्यादा सुर्खियों में आया जब 90 के दशक में दूरदर्शन पर देवनीनंदन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता संतति पर आधारित सीरियल चला। दोबारा भी इन दिनों चंद्रकांता धारावाहिक का प्रसारण भी शुरू किया गया है। उस दौर का रानी महल, कचहरी और महल की सुरक्षा के लिए बनी करीब छह फीट चौड़ी वह दीवार आज भी है जिस पर क्रूर सिंह घोड़ा दौड़ाया करता था। इस किले से आस्था भी जुड़ी है। हर साल यहां हिंदुओं का मेला लगता है तो वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग यहां स्थित मीरानशाह बाबा की मजार पर चादर चढ़ाते हैं। 

 

किले की खूबियां सुनकर चौंकते हैं लोग

जो लोग उपन्यास, कहानी पढऩे के सौकीन होते हैं वे विजयगढ़ दुर्ग की कहानी से जरूर वाकिफ होते हैं। जो लोग नहीं थे उन्हें 90 के दशक में दूरदर्शन की प्रस्तुति ने करा दिया। विजयगढ़ स्टेट की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह के अमर प्रेम की कहानी इसी किले में है। भगवान गणेश का मंदिर और मीरान शाह बाबा की मजार महज 700 मीटर की दूरी पर है। यहां की दीवारें इस कदर हैं कि हजारों साल बाद भी जस की तस खड़ी हैं। खास बात तो यह कि यहां का रामसरोवर तालाब जो सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर भी गर्मी के दिनों में भी नहीं सूखता। इसकी गहराई के बारे में आज तक कोई पता नहीं कर पाया। नौगढ़ व चुनारगढ़ जाने के लिए गुप्त रास्ता और महल का मुख्य सिंह द्वार आज भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। 

यहां पहुंचे तो इसे देखना न भूलें 

तिलस्म से भरपूर इस दुर्ग पर अगर कोई जाए तो उसे यहां की कुछ अच्छी चीजें जरूर देखना चाहिए। मुख्य द्वार जो कई कोण में घुमाया गया है। स्थिति यह है कि यहां अगर दो लोगों को बंदूक देकर तैनात कर दिया जाय तो कोई रास्ता नहीं जो दुर्ग में प्रवेश दिला सके सिवाय हेलीकाफ्टर के। दूसरा है रामसरोवर तालाब जो 1850 फीट की ऊंचाई पर होने के बावजूद भीषण गर्मी में नहीं सूखता। ऐसी मान्यता है कि यह तालाब वरूणदेव का वरदानी है। इस तालाब का पानी पूर्णिमा के दिन थोड़ा ही सही पर बढ़ता जरूर है। इसके अलावा यहां के पुराने भवन जिसमें चंद्रकांता रहती थीं। इसे देखा जा सकता है।

देख-रेख के अभाव में हो रहा खंडहर

कई हजार साल पुराने, तिलस्म से भरपूर, आस्था, रहस्य व रोमांच के संगम स्थली विजयगढ़ दुर्ग पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। देखरेख के अभाव में यह ऐतिहासिक किला खंडहर में तब्दीला होता जा रहा है। यहां की सीढिय़ों की मरम्मत कराकर, दुर्ग का सुंदरीकरण कराया जा सकता है। साथ ही यहां थोड़ी ही दूरी पर स्थित मऊ कला तक की सड़क को बेहतर तरीके से बनाकर पर्यटकों को वहां से जोड़ा सकता है। यहां शौचालय व पेयजल का भी व्यापक इंतजाम जरूरी है। 

 

जिला मुख्यालय से केवल निजी साधन

ऐतिहासिक विजयगढ़ दुर्ग पर पहुंचने के लिए वर्तमान समय में केवल निजी साधन ही उपलब्ध रहता है। यहां अगर जाना है राबट््र्सगंज जिला मुख्यालय से आटो, कार आदि को बुक करें और विजयगढ़ दुर्ग पर पहुंच सकते हैं। इसके लिए एक तो चुर्क का रास्ता और ओर दूसरा नई बाजार के से मुड़कर जाने का रास्ता है। यहां दिन में ज्यादा ज्यादा बेहतर है। जिला मुख्यालय से करीब 21 किलोमीटर की दूरी है। 

बेहतरी के लिए अब तक हुए प्रयास

वैसे तो पर्यटन स्थल बनाने के लिए तमाम वादे किए जाते हैं लेकिन इसकी बेहतरी के लिए कम ही काम हुआ है। पूर्ववर्ती सपा सरकार में खिड़की के रास्ते सीढिय़ों का निर्माण कराया गया है। वहां पर्यटन विभाग का बोर्ड भी लगा दिया गया है। लेकिन जब से नई सरकार बनी है तब से कोई खास काम नहीं कराया जा सका है। यहां परिसर में साफ-सफाई, सड़कों का निर्माण, शौचालय, पर्यटकों को रूकने के लिए शेड आदि का निर्माण कराया जाना जरूरी है। अभी जो स्थिति है अगर यहीं स्थिति कुछ साल और रही तो यह किला पूरी तरह खंडहर बन जाएगा। 

क्या कहते हैं लोग

- जिले के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों में से एक विजयगढ़ दुर्ग कई ऐतिहासिक बातों को समेटे हुए है। अगर इसका विकास पर्यटन स्थल के रूप में कर दिया जाए तो यह तिलिस्म का खजाना सोनांचल का खजाना भरने में कारगार होगा। यहां सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है। शौचालय, यात्री शेड आदि बनवाने की जरूरत है। 

- रवि प्रकाश चौबे

- महाभारत काल, ब्रिटिश शासकल काल से लेकर अब तक की कहानियां का साक्षी विजयगढ़ दुर्ग हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र है। वहीं पर मजार भी है। यानि गंगा जमुनी तहजीब का यहां प्रमाण मिलता है। यहां पर्यटकों को देखने के लिए सिंह द्वार, वरुण देव का वरदानी रामसरोवर तालाब, चंद्रकांता महल आदि है। इसे संरक्षित करने की जरूरत है। - ओम प्रकाश दुबे। 


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