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चंदौली में है प्रदेश का पहला विद्यालय जो आधुनिक संसाधनों से युक्‍त, ये खासियत बनाती इसे नंबर वन

1903 में स्थापित सकलडीहा कस्बे का प्राथमिक विद्यालय-प्रथम प्रदेश का एकमात्र विद्यालय है जिसके पास अपनी वेबसाइट है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 12:53 PM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 02:46 PM (IST)
चंदौली में है प्रदेश का पहला विद्यालय जो आधुनिक संसाधनों से युक्‍त, ये खासियत बनाती इसे नंबर वन
चंदौली में है प्रदेश का पहला विद्यालय जो आधुनिक संसाधनों से युक्‍त, ये खासियत बनाती इसे नंबर वन

चंदौली [आशीष विद्यार्थी]। इरादे मजबूत हों तो मुश्किलें बहुत देर तक रास्ता नहीं रोक सकतीं। ऐसा ही देखने को मिला चंदौली के सकलडीहा में। 1903 में स्थापित सकलडीहा कस्बे का प्राथमिक विद्यालय-प्रथम, प्रदेश का एकमात्र विद्यालय है, जिसके पास अपनी वेबसाइट है। मॉड्यूलर किचन, डायनिंग हॉल व अन्य संसाधन भी यहां की शोभा बढ़ाते हैं। बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास चलती है और वे प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ते हैं। इस विद्यालय में अपने बच्चों को प्रवेश के लिए अभिभावक लालायित रहते हैं। इस सब का श्रेय जाता है प्रधानाध्यापक हिमांशु पांडेय को।

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सोच ने बनाई राह

इस प्राथमिक विद्यालय में 303 बच्चे पढ़ते हैं। इनमें 155 बालक व 148 बालिकाएं हैं। प्रधानाध्यापक हिमांशु पांडेय अक्सर यह सोचते थे कि विद्यालय में हो रहे क्रियाकलापों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराना चाहिए। थोड़े दिनों के परिश्रम से उन्होंने विद्यालय की वेबसाइट विकसित की। इसके लिए विद्यालय ने किसी से वित्तीय मदद नहीं ली। अब विद्यालय में समय-समय पर होने वाले खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधियों की तस्वीरें व अन्य जानकारी वेबसाइट पर दी जाती हैं। प्रधानाध्यापक हिमांशु अन्य सहयोगियों को भी लगातार इसके लिए प्रेरित करते रहते हैं। वह बताते हैं कि वेबसाइट को इस तरह अपडेट करने का प्रयास है कि उसमें अभिभावकों की भी भूमिका बढ़े।

2016 तक खराब थी हालत

शिक्षक बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व विद्यालय संसाधनों के अभाव से जूझ रहा था। प्यास बुझाने के लिए सिर्फ एक हैंडपंप था। छात्राओं के शौचालय की हालत बेहद दयनीय थी। 13 कमरों में छह बेहद जर्जर थे। 2016 में प्रधानाध्यापक के रूप में आए हिमांशु पांडेय ने संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। इसमें उनका साथ ग्राम प्रधान ने दिया। सर्वप्रथम बालक व बालिकाओं के लिए बेहतर शौचालय बनाए गए। फिर मध्याह्न भोजन बनाने वाले कमरे को मॉड्यूलर किचन में परिवर्तित करते हुए बड़े डाइनिंग हॉल का निर्माण किया। इसमें एक साथ 80 बच्चे भोजन ग्रहण करते हैं। सबमर्सिबल पम्प लगाकर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की और क्षतिग्रस्त कमरों की मरम्मत हुई। रचनात्मक सोच वाली टीम के साथ वे अध्यापन में अभिनव प्रयोग करते रहते हैं। इसका सकारात्मक असर यह है कि स्कूल में प्रतिदिन छात्रों की उपस्थिति 90 फीसदी से कम नहीं होती।


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