अनोखा उत्सव- महाश्मशान पर राग-विराग का मेला, गणिकाओं ने दी नृत्यांजलि
मोक्ष मुक्ति के शहर बनारस में नवरात्र सप्तमी की रात महाश्मशान मणिकर्णिका पर राग -विराग का मेला सजा।
वाराणसी, जेएनएन। मोक्ष मुक्ति के शहर बनारस में नवरात्र सप्तमी की रात महाश्मशान मणिकर्णिका पर राग -विराग का मेला सजा। घाट पर एक ओर मन में विराग का भाव जगाती चिताएं तो देश भर से जुटी गणिकाओं के घुंघरुओं की झंकार ने इसमें जीवन राग को एकाकार किया। बाबा महाश्मïशाननाथ के शृंगार महोत्सव की तीसरी रात शुक्रवार को यह दृश्य साकार हुआ जिसने जीवन और मृत्यु के फलसफों को एक साथ एक ही तुला पर तुलने का अहसास दिया। महाश्मशाननाथ दरबार में कुछ इसी अंदाज में मस्ती का समंदर लहराया और दुनियावी चिंताओं से गाफिलों की लंबी कतार को न्योत आया।
अनूठे उत्सव में ख्यात शास्त्रीय गायिका पद्मश्री सोमा घोष ने भी रंग भरे। उन्होंने बाबा को भजन समर्पित करने के साथ मणिकर्णिका स्रोत, बाबा को प्रिय होरी खेले मसाने में होरी दिगंबर... और दादरा-ठुमरी को स्वर दिया। भजन गायक जय पांडेय ने ओम मंगलम ओम्कार मंगलम..., बम लहरी बम बम लहरी... जैसे गीतों से स्वरांजलि दी। इससे पहले सुबह बाबा का रूद्राभिषेक किया गया वहीं शाम को शृंगार बाद महाआरती की गयी। गणिकाओं ने मंदिर में नृत्य का अनुपम नजराना पेश किया। बाबा के मुक्ताकाशीय दरबार में जम कर ठुमके लगाए। रात के साथ जमी महफिल में भजनों के साथ शुरू हुआ सिलसिला मस्ती के तरानों के काफिले के रूप में रात भर परवान चढ़ता रहा। पूरी रात महाश्मशान में अविनाशी काशी का अल्हड़ अंदाज तारी रहा। मान्यता है कि नगरवधुएं मोक्ष की कामना से महानिशा पर बाबा के दरबार में स्वत: नजराना पेश करने आती हैं। अकबर के समय जब राजा मानसिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तभी से मोक्ष कामना के साथ यह परंपरा निभा रही हैं।