संजीवनी की आस में अंतिम सांसें गिन रहा गुलाब नगरी का इत्र
बलिया के सिकंदरपुर में सदियों से गुलाब के फूल से बने इत्र का व्यापार होता है लेकिन यह अब अंतिम सांस गिन रहा है।
बलिया, (धीरज कुमार मिश्र)।
गुलाबों की नगरी सिकंदरपुर का सदियों पुराना तेल फूल इत्र उद्योग संजीवनी की आस में आज अंतिम सांसें गिन रहा है। इसका मुख्य कारण बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा, संरक्षण, भंडारण व प्रोत्साहन का अभाव तथा प्रशासनिक उपेक्षा ही है।
इस उद्योग को समय रहते किसी ने भी संजीवनी देने की व्यवस्था नहीं की। इससे यह उद्योग इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गया है। फूलों की खेती करने वाले किसान शोषण का शिकार होकर विवशता में उसके बागों को उजाड़ अन्य फसल बोने में लगे हैं। दो ढाई दशक पूर्व तक नगर के चारों तरफ गुलाब, बेला, केवड़ा, चमेली आदि फूलों की काश्त की जाती थी जिसमें सैकड़ों किसान तेल, इत्र, गुलाबजल, केवड़ा आदि के निर्माण में लगे थे। फूलों से निकलने वाली खुशबू के कारण नगर का वातावरण हमेशा सुगंधित रहता था।
बागानों में पैदा होने वाले फूलों से कुटीर उद्योग के रूप में नाना प्रकार के सुगंधित तेल व अन्य सामान का उत्पादन कर देश के विभिन्न भागों में भेजा जाता था। धीरे-धीरे देश में भी इत्र और सुगंधित तेल बनाने हेतु फैक्ट्रियां स्थापित होने लगी। उनमें उत्पादित माल जहां सस्ता पड़ता है वहीं सिकंदरपुरी सामान महंगे होते हैं। मूल्य के इस अंतर के कारण फैक्ट्रियों में उत्पादित सामानों का यहां के बाजार में बोलबाला बढ़ने लगा। उनकी खपत बढ़ती और सिकंदरपुर के सामानों की मांग घटती गई। फलत: आज हालत यह है कि बाजार की कमी तथा लागत मूल्य नहीं मिलने से किसान फूलों की काश्त से विमुख होते जा रहे हैं।
अगर शासन स्तर से फूल उत्पादकों तथा तेल व गुलाब जल के निर्माताओं को आर्थिक सहयोग दी जाए तो यह उद्योग एक बार फिर अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर लेगा।