आदिवासियों ने चार दिन पूर्व किया होलिका दहन, पूर्वजों की आदिवासी पंरपराओं का हो रहा निर्वहन
पूर्वांचल की समृद्ध आदिवासी परंपरा में सोनभद्र जिले में अनोखी रवायत होली की सदियों से आदिवासी मनाते आ रहे हैं।
सोनभद्र, जेएनएन। पूर्वांचल की समृद्ध आदिवासी परंपरा में सोनभद्र जिले में अनोखी रवायत होली की सदियों से आदिवासी मनाते आ रहे हैं। इसी कड़ी में झारखंड व छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे नक्सल प्रभावित क्षेत्र बैरखड़ में गुरुवार की रात आदिवासी समुदाय के लोगों ने पूर्वजों द्वारा बनाई गई परंपराओं के अनुसार चार दिन पहले ही होलिका दहन कर त्योहार मनाया। शुक्रवार को सभी आदिवासियों ने होली मनाया। इस दौरान मानर की थाप पर महिलाएं और पुरूष झूमते रहे।
बैरखड़ ग्राम प्रधान अमर सिंह गोंड़ ने बताया कि इलाके में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग अपने पूर्वजों के समय काल से ही होली के नियत तिथि से चार दिन पूर्व ही होलिका दहन व होली मनाते हैं। बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि पूर्वजों के समय में होली मनाने के दौरान आदिवासी समुदाय के लोगों पर दैवी आपदा आ गई थी इससे कई लोगों की मौत हो गई थी। इसके कारण पूर्वजों ने होली मनाने का निर्णय होली से चार दिन पूर्व लिया। उसी समय से आदिवासी समुदाय के लोग पूर्वजों के बनाए गए परंपराओं का निर्वहन करते हुए बीती रात को लोगों ने होलिका दहन किया। इसके बाद शुक्रवार को सभी आदिवासियों ने शांतिपूर्वक होली मनाया।
आदिवासी क्षेत्रों में जिंदा होली मनाने की परंपरा
भारत एक देश है जहां अनेक सभ्यता एवं संस्कृति के लोग रहते हैं। सबकी शादी विवाह एवं त्यौहारों को मनाने का अलग-अलग अंदाज है। जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र दुद्धी तहसील के कई ऐसे गांव है जहां पर होली मनाने की अलग और अति प्राचीन परंपरा है। इसके वर्तमान स्वरूप में अत्यंत प्राचीन काल की संस्कृति की झलक दिखाई पड़ रही है। दुद्धी ब्लाक क्षेत्र के बैरखड़ गांव में गुरुवार की रात को होलिका दहन तथा शुक्रवार को धुलंडी के साथ रंगों का त्योहार होली मनाई गई। जिंदा होली मनाने की परपंरा को लेकर गांव के सीताराम गौंड़, राम सिंगार गौंड़, रामप्यारे अगरिया, रामसुंदर गौंड़ आदि ने बताया कि गांव में जिंदा होली मनाने की परंपरा काफी पुरानी है।
मानर की धुन पर झूमती हैं महिलाएं
तहसील क्षेत्र के बैरखड़, नगवां, मधुबन, आजनगिरा सहित अन्य आदिवासी बाहुल्य गांवों में ङ्क्षजदा होली मानर की थाप पर खेलने की परपंरा आज भी कायम हैं। इन गांव में गोंड़, खरवार व वैगा जनजाति निवास करती है। वैसे भी इस जनजाति का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। यह लोग समूह में इक_ा होकर एक-दूसरे को अबीर लगाते है और मानर नामक वाद्ययंत्र की धुन पर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में महिलाएं भी शामिल रहती हैं। दिनभर चलने वाले इस कार्यक्रम में पुरुष वर्ग महुए से बनी कच्ची शराब का सेवन भी करते हैं।