Move to Jagran APP

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ : हिंदी में भी उपलब्ध हों प्रबंधन, अभियांत्रिकी एवं विज्ञान की पुस्तकें Varanasi news

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सभागार में चल रही वैश्वीकरण के दौर में हिंदी विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी रविवार को संपन्न हुई।

By Edited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 12:53 AM (IST)Updated: Mon, 16 Sep 2019 08:02 AM (IST)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ : हिंदी में भी उपलब्ध हों प्रबंधन, अभियांत्रिकी एवं विज्ञान की पुस्तकें Varanasi news
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ : हिंदी में भी उपलब्ध हों प्रबंधन, अभियांत्रिकी एवं विज्ञान की पुस्तकें Varanasi news

वाराणसी, जेएनएन। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के सभागार में चल रही 'वैश्वीकरण के दौर में हिंदी' विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी रविवार को संपन्न हुई। वक्ताओं ने हिंदी भाषा के विकास के लिए हिंदी साहित्य के विस्तार को बढ़ाने के लिए कार्य करने की जरूरत पर बल दिया। बतौर मुख्य वक्ता आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के संकायाध्यक्ष डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ अपने स्थापना काल से ही समस्त कार्य एवं पठन-पाठन हिंदी भाषा में ही संचालित करने का संकल्प लिया था, जिस पर आज भी अमल होता है। हमें प्रबंधन, अभियंत्रिकी एवं विज्ञान की उच्च कक्षाओं के लिए हिंदी में बेहतर पुस्तकों के लेखन पर भी ध्यान देना होगा। साहित्य के साथ-साथ हिंदी को अनुवाद के मोर्चे पर भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। वर्तमान परिदृश्य में अन्य भाषाओं के महत्वपूर्ण ग्रंथों को हिंदी भाषा में अनुवाद करने की भी जरूरत है।

loksabha election banner

हिंदी हमारी आत्मसम्मान की भाषा :  अध्यक्षता करते हुए विवि के कुलपति प्रो. टीएन सिंह ने कहा कि ¨हदी हमारी आत्मसम्मान की भाषा है। अंग्रेजी केवल दिमाग तक पहुंचती है, लेकिन हिंदी दिल और दिमाग दोनों तक पहुंचती है। हम सबके लिए यह चिंतनीय है कि आज के दौर में एक बड़ा तबका है, जो अंग्रेजियत की वकालत करता है। हमें अपनी भाषा बोलने में संकोच नहीं करना चाहिए। अपनी भाषा को अपमानित कर दूसरे की भाषा को सम्मान देना उचित नहीं है।

भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम : वहीं विशिष्ट अतिथि एनसीईआरटी-नई दिल्ली के प्रारंभिक शिक्षा विभाग की प्रोफेसर ऊषा शर्मा ने कहा कि भाषा केवल हमारी भावनाओं और विचारों को प्रकट करने का माध्यम ही नहीं, बल्कि हमारी भावनाओं और विचारों को छुपाने का भी माध्यम है। इससे पूर्व प्रथम सत्र में बतौर मुख्य वक्ता प्रो. श्रद्धानंद ने भाषा के प्रयोग पर बल दिया। कहा जिस भाषा को हम प्रचलन में नहीं लाते, वह भाषा मर जाती है। जब तक हिंदी को हम संपर्क की भाषा के रूप में स्थापित नहीं करेंगे, तब तक हमारी राष्ट्रीय चेतना एवं सांस्कृतिक चेतना जागरूक नहीं होगी। प्रो. शिवकुमार, डॉ. किंशुक पाठक, डॉ. सदानंद सिंह, डॉ. रामसुधार सिंह, डॉ. केवी गौडर आदि ने विचार व्यक्त किए। स्वागत संगोष्ठी संयोजक प्रो. निरंजन सहाय, संचालन डॉ. विजय कुमार रंजन व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अनुराग कुमार ने किया। प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. रमेश चंद, डॉ. अनुकूल चंद राय, डॉ. प्रीति, डॉ. पारिजात सौरभ आदि थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.