60 दुकानों से 102 मुर्गियों के लिए ब्लड सैंपल, खुले में मीट-मुर्गे बिकने पर कार्रवाई का आदेश
कौओं में बर्ड फ्लू का वायरस पाए जाने के बाद से पशुपालन विभाग लगातार सक्रिय है। इस क्रम में शहर की दुकानों से मुर्गों के ब्लड सैंपल लिए गए।
वाराणसी, जेएनएन। कौओं में बर्ड फ्लू का वायरस पाए जाने के बाद से पशुपालन विभाग लगातार सक्रिय है। इस क्रम में शहर की दुकानों से मुर्गों के ब्लड सैंपल लिए गए। इसके लिए 60 दुकानों से 102 सैंपल लिए गए। सभी को जांच के लिए बरेली की लैब में भेजा गया।
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी वीबी सिंह ने बताया कि बताया कि एवियन इंफ्लूएंजा वायरस बर्ड फ्लू के नाम से जाना जाता है। इस खतरनाक वायरस का संक्रमण इंसानों और पक्षियों को अधिक प्रभावित करता है। ऐसा ही एक मामला गत दिनों मोहनसराय चौराहे के समीप अदलपुरा मार्ग के किनारे पेड़ से गिरकर कई कौए मरने का आया। जानकारी मिलने पर इसकी जांच की गई और सैंपल भोपाल भेजा गया तो बर्ड फ्लू पाया गया। उसके बाद ही विभाग की टीम को सक्रिय किया गया। इस क्रम में लगातार जांच की जा रही है। दुकानों के 102 सैंपल के साथ ही पूर्व में पोल्ट्री फार्म से 140 सैंपल लिए गए हैं। पूरे मामले को लेकर सतर्कता बरती जा रही है। सीवीओ ने बताया कि शहर में मुर्गे की दुकानों की जांच कर सैंपल लेने के दौरान यह देखने में आया कि वहां गंदगी का अंबार है। सड़क की धूल आदि से मांस आदि की सुरक्षा के लिए ज्यादातर दुकानों पर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। उससे किसी भी बीमारी के बढऩे की संभावनाएं काफी अधिक हैं। इस कारण नगर निगम को पत्र लिख कर उनसे ऐसी दुकानों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा गया है।
मुर्गियों में बर्ड फ्लू के लक्षण
बर्ड फ्लू से प्रभावित मुर्गियों-पक्षियों के संबंध में बताया जाता है कि उनके सिर के आसपास सूजन, आंखों से रिसाव, कलगी और टांगों में नीलापन, अचानक कमजोरी व पंखों का गिरना, हरकत में कमी, कम आहार लेना, अंडे कम देना, सामान्य रूप से अधिक मुर्गियों-पक्षियों का मरना आदि खतरे के संकेत हैं।
खाने में रखें सतर्कता
सीवीओ ने बताया कि हमारे खाना बनाने की प्रवृत्ति में अत्यधिक पकाने का प्रावधान है। इससे बर्ड फ्लू के वायरस मर जाते हैं। इस कारण इस प्रवृत्ति का ध्यान रखें और अच्छी तरह पका कर ही खाएं। साथ ही जब भी मुर्गे खरीदें तो उसकी अच्छे से पड़ताल कर लें कि वह साफ-सुथरे और रोगग्रस्त न हों। कहीं भी पक्षी मर रहे हों तो इसकी सूचना पशु चिकित्सा विभाग को दें।