शहनाई जिनके लिए इबादत ऐसे उस्तादों के उस्ताद थे बिस्मिल्लाह, गुलपोशी संग याद
सिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आज 102वीं जयंती है। इस मौके पर सभी उन्हें याद कर रहे हैं। गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
वाराणसी (जेएनएन)। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की 102वीं जयंती आज दरगाह फातमान स्थित उनके मजार पर सर्वधर्म पाठ संग गुलपोशी कर मनाई गई। सर्वधर्म पाठ में मुर्तुजा अब्बास शम्सी ने जहां कुरान की आयतें पढ़ी वहीं नरेंद्र कुमार गुप्ता ने सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ किया। सर्च इंजन गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। वाराणसी में पुष्पांजलि अर्पित कर जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने कहा कि दुनिया में जो भी व्यक्ति संगीत को जानता है वो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को जरूर जानता है। वे देश के गौरव तो थे ही साथ ही काशी की पहचान भी हैं। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों ने उन्हें श्रद्धा और सम्मान के साथ याद किया।
उस्ताद को भूला सत्ताधारी दल
जयंती के अवसर पर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की मजार पर श्रद्धासुमन अर्पित करने डीएम, एसएसपी सहित सामाजिक संगठनों के लोग पहुंचे। वहीं सत्ताधारी दल ने इससे पूरी तरह दूरी बनाए रखी। पार्टी की ओर से न तो कोई विधायक पहुंचा, न पदाधिकारी और न ही महापौर साहिबा। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के पोते आफाक हैदर व भतीजे उस्ताद अली अब्बास खां ने 12 मार्च को दीन दयाल हस्तकला संकुल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों के सामने बनारसी संगीत परंपरा की सरिता प्रवाहित की थी। ऐसे में पार्टी की ओर से किसी के न पहुंचने का मलाल परिजनों के चेहरे पर साफ दिखा।
गूगल डूडल में उस्ताद शहनाई बजाते
प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती के मौके पर सभी उन्हें याद कर रहे हैं। गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। गूगल डूडल में उस्ताद शहनाई बजाते नजर आ रहे हैं। बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में एक बिहारी परिवार में हुआ था। उनकी शहनाई की धुन का दीवाना आज भी हर कोई है। बिस्मिल्लाह खां का बचपन का नाम कमरुद्दीन था। वह अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे। बड़े भाई का नाम शमशुद्दीन था तो उनके दादा रसूल बख्श ने नाम बदलकर बिस्मिल्लाह नाम रख दिया। जिसका मतलब था अच्छी शुरुआत है।बिस्मिल्लाह खां 6 साल की उम्र में अपने पिता के साथ बनारस आ गए। वहां उन्होंने अपने चाचा अली बख्श विलायती से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद चाचा विलायती विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे। उन्हें बनारस से काफी लगाव था।
पद्म पुरस्कार से भारतरत्न तक सम्मान
14 साल की उम्र में पहली बार इलाहाबाद के संगीत परिषद में बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई बजाने का कार्यक्रम किया. जिसके बाद से वह कम समय में पहली श्रेणी के शहनाई वादक के रूप में निखरकर सामने आए। बता दें कि संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण, तानसेन पुरस्कार से सम्मानित उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को साल 2001 मे भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से नवाजा गया। बिस्मिल्लाह खां ने बजरी, चैती और झूला जैसी लोकधुनों में बाजे को अपनी तपस्या और रियाज़ से खूब संवारा और क्लासिकल म्यूजिक में शहनाई को सम्मानजनक स्थान दिलाया। वह दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई बजाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका और 21 अगस्त 2006 उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।