बीएचयू के विज्ञानियों ने बताया, कोरोना ने अपनाई कोशिकाओं में फूट डालो और राज करो की रणनीति
कोरोना वायरस ने हमारे पैंक्रियाज की कोशिकाओं में मौजूद आरएनए को अपने साथ मिलाकर फूट डालो-राज करो की रणनीति अपनाई। यह वायरस प्रोटीन और इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार माइक्रो आरएनए को अपने साथ मिला लेता है या कहें उसे खुद से जोड़ लेता है।
वाराणसी, मुकेश चंद्र श्रीवास्तव। कोरोना वायरस ने हमारे पैंक्रियाज की कोशिकाओं में मौजूद आरएनए को अपने साथ मिलाकर फूट डालो-राज करो की रणनीति अपनाई। यह वायरस हमारे शरीर में प्रोटीन और इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार माइक्रो आरएनए (राइबो न्यूक्लिक एसिड) को अपने साथ मिला लेता है या कहें उसे खुद से जोड़ लेता है। इस कारण डायबिटीज के लिए जिम्मेदार जीन और हार्मोन अनियंत्रित हो जाते हैं। बता दें पैंक्रियाज या अग्नाशय पाचन तंत्र का अहम हिस्सा है।
डायबिटीज और कोरोना वायरस के संबंध की खोज बीएचयू के महिला महाविद्यालय के बायो इन्फारमेटिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. राजीव मिश्र और उनकी शोध छात्रा भव्या व पूर्व शोध छात्रा डा. एकता पाठक ने की है। यह शोध 20 अक्टूबर को प्रतिष्ठित जर्नल स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया अभी कोरोना महामारी से मुक्त नहीं हुई है। यदि भविष्य में इसने घातक रूप अपनाया तो अध्ययन के निष्कर्ष बेहद काम के साबित होंगे।
वायरस और आरएनए के बीच जंग : पैंक्रियाज की कोशिकाओं में डीएनए होता है, जिनके अंदर आरएनए बनते हैैं। यह दो प्रकार के होते हैं-माइक्रो आरएनए और मैसेंजर आरएनए। मैसेंजर आरएनए प्रोटीन का निर्माण करता है। माइक्रो आरएनए एक तरह से रेगुलेटर है और इस पर नियंत्रण रखता है कि मैसेंजर आरएनए कब और कितना प्रोटीन बनाएगा। संक्रमण के बाद कोरोना वायरस पैंक्रियाज की कोशिकाओं पर हमला करते हैं तो उसके जीनोम (आरएनए) से माइक्रो आरएनए का मुकाबला होता है। पैैंक्रियाज की हजारों-लाखों कोशिकाओं में चल रही इस लड़ाई में कोरोना वायरस के जीनोम की जीत होती है क्योंकि वायरस तेजी से अपनी प्रतिकृतियां बढ़ाकर अपना प्रसार कर रहे होते हैं।
इसलिए जीत जाता है वायरस : धीरे-धीरे कोरोना वायरस के जीनोम माइक्रो आरएनए को आकर्षित कर अपने साथ बांध लेते हैं। पैंक्रियाज की कोशिकाओं से माइक्रो आरएनए धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैैं। इससे मैसेंजर आरएनए अनियंत्रित होने लगते हैं। परिणाम यह होता है कि मैसेंजर आरएनए प्रोटीन और इंसुलिन आदि का अनियंत्रित उत्पादन करने लगते हैं। अब पैंक्रियाज की कोशिकाएं मरने लगती हैं और इसका दुष्प्रभाव किडनी, लिवर आदि अंगों पर भी होने लगता है। इस तरह कोरोना संक्रमण डायबिटीज के मरीज के लिए तो घातक साबित होता ही है, कई ऐसे लोगों को भी यह बीमारी दे देता है जिन्हें पहले नहीं थी। साथ ही यह शोध यह भी बताता है कि कोरोना संक्रमित मरीज की तबीयत बिगडऩे में 10 से 12 दिन क्यों लग जाते हैं।
वायरस को देख बदला रुख : डा. राजीव मिश्र की टीम ने कोरोना संक्रमण के बाद पैंक्रियाज की कोशिकाओं में बिना संक्रमित कोशिकाओं के मुकाबले 26 जीन के एक्सप्रेशन (यानी जीन के उत्पाद आरएनए की संख्या) अधिक पाए। इन 26 जीन में छह डायबिटीज से संबंधित थे। इसके अलावा कोरोना संक्रमण के बाद पैंक्रियाज के चार महत्वपूर्ण माइक्रो आरएनए एचएसए 298, एचएसए 3925, एचएसए 4691 और एचएसए 5196 के बदले हुए रुख का भी पता चला। ये चारों माइक्रो आरएनए डायबिटीज से जुड़े मैसेंजर आरएनए के बजाय कोरोना वायरस के जीनोम के प्रति आकर्षण दिखा रहे थे और उनसे जाकर बंध जा रहे थे।
कृत्रिम माइक्रो आरएनए बनाने में मिलेगी मदद
माइक्रो आरएनए मुख्य रूप से मैसेंजर आरएनए की संख्या की नियंत्रित करते हैं। मगर ये माइक्रो आरएनए वायरस के जीनोम की बढ़ती संख्या के साथ उससे बंध सकते हैं। शोध के दौरान ऐसे कुल 21 माइक्रो आरएनए का पता चला जो वायरस के जीनोम से बंध सकते थे। इनमें 17 डायबिटीज से संबंधित जीन को नियंत्रित करते थे। डा. राजीव मिश्र ने बताया कि यह अध्ययन कृत्रिम माइक्रो आरएनए को डिजाइन करने में बेहद उपयोगी साबित होगा। चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए इसे वायरस संक्रमित कोशिकाओं में डाला जा सकता है। ये कृत्रिम आरएनए वायरस के जीनोम से बंध जाएंगे और माइक्रो आरएनए को वायरस का शिकार होने से बचाया जा सकेगा।