फेफड़े में फंसी चने की दाल बनती काल, इससे पहले दिया निकाल
फेफडे़ में चने की दाल काल बनने से पहले बीएचयू के डाक्टरों द्वारा निकाल दी गई।
वाराणसी : बच्चे तो ठहरे बच्चे ही, उन्हें सामने दिखा हर सामान खेलने वाला ही लगता है। बालपन की इस मनोवृत्ति के चलते अक्सर ही गंभीर हादसे भी होते रहते हैं। ऐसे में घर के बड़ों को सतर्क निगाह रखना जरूरी होता है। इस सतर्कता में हुई चूक के चलते असहज स्थिति से जूझ रही मासूम बच्ची बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में भर्ती है। उसने खेल-खेल में चने की साबूत दाल निगल लिया, जो सांस की नली के रास्ते दाएं फेफड़े में फंस गई। हालांकि बाल शल्य रोग विभाग के चिकित्सकों ने सफल आपरेशन कर बच्ची की जान बचाने में कामयाबी पा ली है।
शहर के सुदामापुर निवासी राजकुमार की एक साल की बेटी अंशिका दो सप्ताह पहले चने की दाल निगल गई। इस कारण धीरे-धीरे उसकी स्थिति बिगड़ने लगी। परेशान परिजनों ने बच्ची को एसएस अस्पताल स्थित बाल रोग विभाग में भर्ती कराया। उसे 15 दिन वेंटालेटर पर रखा गया। इस दौरान भी सुधार की बजाय बच्ची को झटके आना, बार-बार शरीर नीला पड़ना व सांस लेने में भी दिक्कत बढ़ते जा रही थी। इलाज कर रहे डाक्टरों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। काफी जांच के बाद बच्ची को बाल शल्य विभाग में रेफर किया गया। यहां प्रो. एसपी शर्मा के नेतृत्व में डा. वैभव पांडेय, डा. अर्जदेव उपाध्याय, डा. राकेश, डा. अमृता, डा. संदीप लोहा, सुनीता की टीम ने मंगलवार सुबह 11 बजे आपरेशन किया। प्रो. शर्मा ने बताया कि यह आपरेशन ब्रांको स्कोपी माध्यम से किया गया, जिसे फारेन बॉडी कहा जाता है। फिलहाल बच्ची को निकू वार्ड में गहन निगरानी के बीच रखा गया है।
परिजन दें खास ध्यान : प्रो. एसपी शर्मा ने बताया कि परिजनों को चाहिए कि वे छोटे बच्चों को खास ध्यान रखें। अक्सर ऐसे मामले आते रहते हैं जिसमें बच्चे झालर, मूंगफली, सेफ्टी पीन, लॉकेट आदि निगल जाते हैं। अगर, बच्चों में तकलीफ हो तो तत्काल अस्पताल लेकर पहुंचना चाहिए। बताया कि ऐसे आपरेशन पूरे पूर्वाचल में बीएचयू में सफलतापूर्वक किए जाते हैं।