BHU के पुरातत्वविद प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने रामसखा बनकर दिलाया था राम जन्मभूमि को न्याय
विवादित ढांचा विध्वंस के बाद बीएचयू के पुरातत्वविद प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने राम मंदिर के पक्ष में साक्ष्यों को जुटाया जो कि न्यायालय में पेश हुआ।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। श्रीराम जन्मभूमि के प्रमुख पक्षकार प्रो. ठाकुर प्रसाद वर्मा अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन, बीएचयू में एक पुरातत्वविद और लिपि विशेषज्ञ की हैसियत से जीवन पर्यंत श्रीराम जन्मभूमि के लिए कार्य करते रहे। विवादित ढांचा विध्वंस के बाद उन्होंने राम मंदिर के पक्ष में साक्ष्यों को जुटाया, जो कि न्यायालय में पेश हुआ। यह श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में ऐसा पहला साक्ष्य था, जिसको मान्यता मिली। प्रो. वर्मा राम जन्मभूमि के पक्षकार सहित 1996 से 2008 तक रामलला के सखा भी बने, जिसके कारण ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके पक्ष में निर्णय आया। उन्होंने न्यायालय में समस्त विरोधियों के समक्ष श्री राम जन्मभूमि की वंशावली को प्रस्तुत किया था और अयोध्या की स्थिति विभिन्न कालों में क्या थी इसका विवरण दिया था।
बीएचयू स्थित पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओंकार नाथ सिंह के अनुसार प्रो. ठाकुर प्रसाद वर्मा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे, तब उन्होंने अयोध्या जाकर ढहाए गए विवादित ढांचे के नीचे मिले अवशेषों का सूक्ष्म अध्ययन किया था। उन्हेंं वहां पर कई अभिलेख प्राप्त हुए। उन साक्ष्यों और अभिलेखों को जब अयोध्या और काशी में सेमिनार आयोजित कर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया तो वहां उपस्थित लोग चकित रह गए। वहीं, सेमिनार में मौजूद विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने इन साक्ष्यों को आधार बनाते हुए न्यायालय में याचिका दायर कर दी। इस तरह से राम मंदिर पर पहला ठोस कार्य प्रो. ठाकुर प्रसाद ने किया था, जिस पर देशभर के लोगों की नजर गई।
अभिलेख में लिखी थी मंदिर होने की बात
बीएचयू के पुरातत्वविद प्रो. अशोक कुमार सिंह के अनुसार उन अभिलेखों ने राम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय देने में महती भूमिका निभाई। अभिलेख का हिंदी अनुवाद 1992 में पुरातत्व पत्रिका में छपा था, जिसमें बताया गया था कि अयोध्या में विष्णु हरि नाम (राम के मूल अवतार) से एक प्राचीन मंदिर था। एक मुस्लिम आक्रांता सालार मसूद के अयोध्या पर आक्रमण के बाद 11वीं शताब्दी में गहड़वाल वंश के युवराज गोविंद चंद्र ने मंदिर का पुनॢनर्माण करवाया था। इसी मंदिर को बाबर के सेनापति मीर बाकी ताशकंदी द्वारा 1528 में तोड़ दिया गया। प्रो. ठाकुर प्रसाद वर्मा और ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रो. अरविंद कुमार सिंह ने विध्वंस ढांचे के नीचे अभिलेखों पर एक किताब लिखी।
इस पर बात करते हुए प्रो. अरविंद बताते हैं ढांचा जब ढहा तो उसके बीचो-बीच यह अभिलेख प्राप्त हुआ, जिसकी लिपियों को पढऩे पर कार्य हुआ। इस अभिलेख ने ही यह सिद्ध कर दिया था कि यहां मंदिर होने का सबसे प्रबल अवशेष है। उन्होंने कहा कि अफसोस है कि मंदिर बनने से पहले ही प्रो. वर्मा का इस साल मई में निधन हो गया लेकिन, उनके किए गए कार्य अनंतकाल तक याद किए जाएंगे।