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बीएचयू के वार्षिक कार्यक्रम काशी यात्रा के काव्य मंजरी में बोले राहत इंदौरी, फिर कभी ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें

पिछले साल आइआइटी-बीएचयू के वार्षिक कार्यक्रम काशी यात्रा के काव्य मंजरी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आए मशहूर शायर राहत इंदौरी ने चार चांद लगा दयिा था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 09:56 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 09:56 PM (IST)
बीएचयू के वार्षिक कार्यक्रम काशी यात्रा के काव्य मंजरी में बोले राहत इंदौरी, फिर कभी ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें
बीएचयू के वार्षिक कार्यक्रम काशी यात्रा के काव्य मंजरी में बोले राहत इंदौरी, फिर कभी ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें

वाराणसी, जेएनएन। पिछले साल आइआइटी-बीएचयू के वार्षिक कार्यक्रम काशी यात्रा के काव्य मंजरी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आए मशहूर शायर राहत इंदौरी ने चार चांद लगा दयिा था। युवाओंं को अपनी शेर के माध्यम से खूब मनोरंजन कयिा था। उन्होंने आइआइटी के छात्रों को संबोधित करते हुए कहे कि खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहां मैं उस जमीन पर ठोकर लगाकर लौट आया। एक शेर में तो उन्होंने सभी युवाओं को भावुकता के समंदर में गोते लगवा दयिा था जब कहा कि पूछते क्या हो ये रूमाल के पीछे क्या है, पूछते क्या हो रुमाल के पीछे क्या है, फिर कभी ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें। कार्यक्रम से पहले बीएचयू के स्वतंत्रता भवन का जब मंच तैयार नहीं था तो सभी युवा आयोजकों को डांट भी लगाई और हमेशा कार्यक्रम को लेेेेकर समय को लेकर पाबंद रहने का नसीहत भी दे गए। लेकिन जब मंच पर चढ़े तो से एक से बढ़कर एक नज्मों की उन्होंने झड़ी लगा दी। उन्होंने शेर पढ़ा कि हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं, मोहब्बत की इसी मिटटी को तो हिंदोस्तान कहते हैं। ये जो दीवार का सुराख है साजशि का हस्सिा है, मगर हम इसको अपनेे घर का रोशनदान कहते हैं। काशी यात्रा का भव्य आयोजन देख वह खुद चकति रह गए और टेक्नो फ्रेंडली युवाओं की काफी तारीफफ भी की थी।

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राहत इंदौरी के निधन की खबर सुनकर जौनपुर के शुभचिंतक हुए मर्माहत

मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना। दो गज ही सही ये मेरी मिल्कियत तो है, ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया। अपनी उक्त रचना ख्यातिलब्ध साहित्यकार राहत इंदौरी ने गत 24 फरवरी को जिला मुख्यालय स्थित प्रसाद इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सुनाई थी। तब भला लोगों को कहां पता था कि यह प्रख्यात साहित्यकार अपनी इस जुबान को बहुत जल्दी यथार्थ में तब्दील करने वाला है। संभवत: अपने जीवन काल के इस अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम में वे यहां शरीक हुए थे। कोरोना वायरस के संक्रमण ने साहित्य के जाने-माने इस सशक्त हस्ताक्षर को मंगलवार को हम सबसे छीन लिया। उनके निधन की दुखद खबर मिलते ही यहां उनके चाहने वालों में शोक की लहर है। वे अनायास ही इंदौरी साहब के उस आखिरी कार्यक्रम में पेश की गई उनकी रचना को गुनगुनाते सुने गए।


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