Bhai Dooj-Chitragupta Puja 2020 : आज है भाई दूज व चित्रगुप्त पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व
आज भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का आयाेजन किया जा रहा है। यह दिन भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस त्योहार के साथ ही दीपोत्सव का समापन हो जाता है। आइए जानते हैं भाई दूज का शुभ मुहूर्त पूजन विधि मंत्र इत्यादि।
वाराणसी, जेएनएन। आज भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का आयाेजन किया जा रहा है। यह दिन भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस त्योहार के साथ ही दीपोत्सव का समापन हो जाता है। इस दिन भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं और बहनें उन्हें टीका कर प्यार से खाना खिलाती हैं। भाई दूज विक्रमी संवत नववर्ष का दूसरे दिन भी कहा जाता है। आइए जानते हैं भाई दूज का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, मंत्र इत्यादि। वहीं वैदिक ग्रंथों व पुराणों में अनेक प्रकार के व्रत एवं अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है, जिसमें चित्रगुप्त पूजा का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
भाई दूज शुभ मुहूर्त
भाई दूज का शुभ मुहूर्त 1:10 बजे से शुरू होकर 3:18 बजे तक है। इस दिन की तिथि 16 नवंबर को सुबह 7:06 बजे शुरू होकर 17 नवंबर को 3:56 बजे तक होगी।
भाई दूज का महत्व
रक्षाबंधन की तरह भाई दूज भी बेहद खास होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं। साथ ही उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन यमुना में डुबकी भी लगाई जाती है। इस दिन यमुना में स्नान का महत्व बहुत ज्यादा है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा का भी विधान है। मान्यता है कि इसी दिन पूरे जगत का लेखाजोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म हुआ था। इस दिन कलम दवात की पूजा की जाती है। चित्रगुप्त पूजा (कलम दवात पूजा) का मान सोमवार को होगा।
भाई दूज की पूजन विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। फिर भाई-बहन दोनों मिलकर यम, चित्रगुप्त और यम के दूतों की पूजा करें। इन सभी को तथा सबको अर्घ्य दें। फिर बहन अपने भाई को घी और चावल का टीक लगाती है। इसके बाद भाई को सिंदूर, पान, सुपारी और सूखा नारियल यानी गोला दिया जाता है। इसके बाद बहन अपने भाई के हाथ में कलावा बांधती है और मुंह मीठा कराती है। इस दिन बहन अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है।
ब्रह्माजी की काया से उत्पन्न हुए चित्रगुप्त
चित्रगुप्त पूजा (कलम दवात पूजा) का मान 16 नवंबर सोमवार को होगा। उक्त जानकारी आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केंद्र के संस्थापक ज्योतिर्विद आचार्य चंदन तिवारी ने दी। उन्होंने बताया कि वैदिक ग्रंथों व पुराणों में अनेक प्रकार के व्रत एवं अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है, जिसमें चित्रगुप्त पूजा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्मा ने एकाग्रचित्त होकर समाधि लगायी और अंत में विश्रान्तचित्त हुए। ब्रह्मा के शरीर से बड़े बड़े भुजाओं वाले,श्यामवर्ण,कमलवत नेत्र वाले,शंख के तुल्य गर्दन,चक्रवत मुख,हाथ में कलम और दवात लिए एक पुरुष की उत्पत्ति ब्रह्मा के शरीर से हुयी।