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Hello Doctor : कंप्यूटर पर देर तक काम करने वाले सावधान, इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक किरणों से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम

यदि आप रोजाना कंप्यूटर पर घंटों काम करते हैं और आंखों में जलन के साथ ही सूखापन भारीपन व सिर दर्द होने लगे तो समझ लीजिए कि आप आधुनिक बीमारी के शिकार हो गए हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 01:14 PM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 01:14 PM (IST)
Hello Doctor : कंप्यूटर पर देर तक काम करने वाले सावधान, इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक किरणों से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम
Hello Doctor : कंप्यूटर पर देर तक काम करने वाले सावधान, इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक किरणों से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम

वाराणसी, जेएनएन। यदि आप रोजाना कंप्यूटर पर घंटों काम करते हैं और आंखों में जलन के साथ ही सूखापन, भारीपन व सिर दर्द होने लगे तो समझ लीजिए कि आप आधुनिक बीमारी के शिकार हो गए हैं। चिकित्सीय भाषा में इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है। कुछ सावधानी बरतने व नियमों का अनुपालन कर इससे बचा जा सकता है। यह कहना है बीएचयू अस्पताल स्थित नेत्र रोग विभाग के डा. राजेंद्र प्रकाश मौर्या का। दैनिक जागरण के हैलो डाक्टर कार्यक्रम में बुधवार को उन्होंने फोन पर पाठकों की जिज्ञासाएं सुनीं और उचित परामर्श भी दिए।

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उन्होंने बताया कि कंप्यूटर के वीडियो डिस्प्ले टर्मिनल (वीडीटी) से निकलने वाली इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक किरणें आंखों की पुतली व मांसपेशियों को संकुचित कर देती हैं। लंबे समय तक संकुचन से नेत्र की मांसपेशियों में तनाव आ जाता है, जिससे आंखों में भारीपन, थकान व दर्द शुरू हो जाता है। सामान्य व्यक्ति की पलकें एक मिनट में लगभग दस बार झपकती हैं। पलकों का झपकना महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, इससे आंख की पुतली साफ रहती है। आंसू का जल एक समान रूप से फैलता है व जल में घुलित आक्सीजन पुतली को मिलती रहती है। मगर कंप्यूटर पर एकटक देखने से पलकों के झपकने की दर बहुत कम हो जाती है। इससे पुतली पर सूखने के धब्बे बन जाते हैं और व्यक्ति को धुंधला दिखने लगता है। साथ ही आंखों में जलन, आंखों का गडऩा भी शुरू हो जाता है।

बचाव के लिए सुझाव

- कंप्यूटर स्क्रीन व आंखों के बीच की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखें।

- आंखों पर चमक या ग्लेयर कम करने के लिए मॉनीटर को 20 से 30 अंश के कोण पर झुका कर रखें।

- कंप्यूटर स्क्रीन आंख के समानांतर हो।

- स्क्रीन पर एंटी-रिफ्लेक्टिव ग्लेयर रिडक्शन फिल्टर का प्रयोग करें।

- कार्य करते समय एक मिनट में कम से कम छह या सात बार पलकों को झपकाएं।

- नेत्र विशेषज्ञ से आंखों की नियमित जांच कराते रहें।

- आंखों में जलन होने पर लुब्रीकेंट टीयर ड्राप डालें।

- कंप्यूटर पर कार्य करते समय बीच-बीच में स्क्रीन से निगाह हटा लें।

- लगातार चार घंटे से ज्यादा कंप्यूटर पर कार्य न करें, बीच में विराम लें।

- कंप्यूटर की-बोर्ड एवं माउस एक समान लेबल पर हों तथा कलाई पर दबाव कम हो।

जानलेवा है आंखों का कैंसर 

आंखों में कई तरह के ट्यूमर या कैंसर होते हैं, जैसे-पलक का कैंसर, रेटिना का कैंसर आदि। सभी कैंसर जानलेवा नहीं होते। बेनाइन ट्यूमर धीरे-धीरे बढ़ता है और बाकी शरीर में नहीं फैलता। यह जानलेवा नहीं है। वहीं मेलिग्नेंट ट्यूमर (कैंसर) तेजी से बढ़ता है और रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी पहचान होने पर इलाज कर रोगी की जान व रोशनी बचाई जा सकती है। रेटिनोब्लास्टोमा आंख के पर्दे का सबसे खतरनाक व जानलेवा कैंसर है। यह पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी होता है।

नेत्र प्लास्टिक सर्जरी 

- नेत्र प्लास्टिक सर्जरी या आकुलोप्लास्टी, नेत्र सर्जरी की नई विधा है। इसमें नेत्र गोलक, पलकों, आश्रु नलिका, नेत्र गुहा व चेहरे की कास्मेटिक व क्रियात्मक शल्य क्रिया द्वारा पुनर्निर्माण किया जाता है। आकुलोप्लाटिक सर्जरी द्वारा जन्मजात विकृतियों, चोट, नेत्र ट्यूमर व कैंसर के कारण होने वाली विकृतियों को ठीक किया जा सकता है।

ग्लूकोमा (काला मोतिया)

कारण : 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोग जिनके परिवार में किसी को ग्लूकोमा रहा हो अथवा उच्च व निकट दृष्टि दोष, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, थायरायड, आंख की चोट, स्टेरायड आइ ड्राप, अधिक धूमपान आदि से हो सकता है।

लक्षण : आंख के सामने रंगीन धब्बे या इंद्रधनुष जैसी रंगीन रोशनी का घेरा दिखाई देना, आंख की रोशनी का लगातार कम होना, अंधेरे कमरे में देखने में परेशानी होना, चक्कर या मिचली आना आदि।

क्या करें : लक्षण दिखने के बाद तत्काल ग्लूकोमा विशेषज्ञ से परामर्श लें। दवा का नियमित इस्तेमाल करें। बिना डाक्टर की सलाह के दवा बंद न करें। साल में एक बार ऑप्टिक नर्व एनालिसिस व दृष्टि के दायरे (पेरीमेट्री) की जांच कराएं। आंख के आंतरिक दबाव की नियमित जांच कराएं। दवा से नियंत्रण न होने पर चिकित्सक की सलाह पर ऑपरेशन कराएं।

उम्र संबंधी मैक्युलर क्षरण

कारण : 40-50 वर्ष की उम्र के अधिकांश लोगों में यह शुरू हो जाता है। धूमपान, सूर्य की तेज पराबैंगनी किरणें व भोजन में एंटीऑक्सीडेंट (विटामिन ए, सी, ई व जिंक, सिलेनियम आदि) की कमी से ऑक्सिडेशन प्रक्रिया होती है, जिसके कारण फ्री रेडिकल बनने लगता है, जो मैक्युला की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देता है।

लक्षण : दोनों आंखों के प्रभावित होने पर व्यक्ति को वस्तु की आकृति विकृत व बदली नजर आती है। चश्मा लगाने के बावजूद छोटे अक्षरों को पढऩे में कठिनाई होती है। अक्षर धुंधले व टेढ़े-मेढ़े दिखने लगते हैं। रंगों की पहचान नहीं हो पाती। इसमें न तो रोगी को दर्द होता है और न ही पूरी तरह दृष्टिहीन होता है।

इलाज : अपने भोजन में एंटी आक्सीडेंट भरपूर मात्रा में लें। वेट मैक्युलर डीजेनेरेशन होने पर उपचार के लिए नव-रक्त वाहिनियों के बनने को रोकने के लिए ऐवास्टीन (एंटी रक्त वाहिकीय ग्रोथ फैक्टर दवा) का इंजेक्शन दिया जाता है। साथ ही नई रक्त वाहिनियों को नष्ट करने के लिए आरगन लेजर फोटो डाइनेमिक थिरेपी भी की जाती है।

ये हैं गंभीर नेत्र रोग के लक्षण, तुरंत लें चिकित्सीय परामर्श 

- आंखों के सामने अचानक धुंध छा जाना या अचानक रोशनी कम होना। ऐसा आंख का पर्दा फटने या पर्दा खिसकने से अथवा खून की नस के फट जाने से होता है।

- आंखों के सामाने अचानक जलती हुई ज्वाला या जुगनू जैसी चमक का दिखाई देना।

- आंखों के सामाने तैरते हुए काले धब्बे या उड़ता हुआ मच्छर जैसा प्रतीत होना।

- तेज सर दर्द के साथ आंख की रोशनी का कम होना।

- अचानक आंख का तिरछा (भेंगापन) होना।

- दर्द के साथ आंखों का लाल होना, दर्द के साथ पानी आना, एक वस्तु का दो-दो दिखाई देना।

- दर्द के साथ आंखों में सूजन या आंख का बाहर की ओर निकलना।

इन्होंने पूछे सवाल

सवाल : चाचा को डायबिटीज है, जिस कारण एक आंख की रोशनी चली गई। दूसरे से भी कम दिखाई देता है।

-खुशबू सिंह, महमूरगंज

जवाब : यह डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण हुआ है। मधुमेह पर नियंत्रण रखें। अच्छे रेटिना विशेषज्ञ से परामर्श कर इलाज कराएं।

सवाल : क्या नेत्र कैंसर का इलाज संभव है।

-प्रदीप जायसवाल, बीएचयू

जवाब : नेत्र कैंसर का इलाज संभव है, यदि शुरुआती दौर में पहचान हो जाए। इसके लिए बायोप्सी करना जरूरी होता है। सर्जरी के माध्यम से निदान संभव है।

सवाल : पलकों में नेत्र कैंसर क्यों और किसे होता है।

-डा. रजनीश त्रिपाठी, राजातालाब

जवाब : टाइप-1 स्किन (गोरा व लाल त्वचा), सूर्य की पराबैंगनी किरणें, वातावरणीय प्रदूषण (वायु में उपस्थित आर्सेनिक, बेंजीन आदि) के कारण पलक का कैंसर हो सकता है।

सवाल : मोतियाबिंद क्यों होता है, क्या इसका उपचार संभव है।

-धीरेंद्र बहादुर सिंह, चुनार

जवाब : आंखों के प्राकृतिक व पारदर्शी लेंस धुंधला हो जाने को मोतियाबिंद कहते हैं। यह जन्मजात (गर्भावस्था में कुपोषण एवं संक्रमण के कारण) भी हो सकता है। सबसे अधिक वृद्धावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के कारण उम्रदराज लोगों को मोतियाबिंद होता है। मोतियाबिंद चोट लगने से भी हो सकता है। मोतियाबिंद का निदान केवल ऑपरेशन द्वारा लेंस प्रत्यारोपण है।

सवाल : मेरी 12 साल की भतीजी है, जिसकी पलक गिरी हुई है।

-शेषनाथ मौर्य, बीएचयू

जवाब : पलक का गिरना टोसिस कहलाता है। नसों के कमजोर होने, लकवा मारने, चोट लगने या जन्मजात भी हो सकता है। लिवेटर मसल्स की सर्जरी या फेसिया लाटा स्लिंग सर्जरी के माध्यम से पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है।

सवाल : दिनभर कंप्यूटर स्क्रीन के सामने रहना होता है। इस वजह से आंखों में थकावट व सूखापन रहता है।

-रवि शुक्ला, स्टेट बैंक-बीएचयू

जवाब :ऑफिस में काम करने वाले अधिकांश लोगों की यही समस्या है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। कंप्यूटर स्क्रीन को 20-25 सेंटीमीटर दूर रखें। काम करते समय एंटी-ग्लेयर चश्मा लगाएं। हर 20-25 मिनट बाद छोटा से ब्रेक लें। आंखों में जलन होने पर आई-ड्राप का प्रयोग करें।

सवाल : मैं 62 साल का हूं। आंखों से पानी आता रहता है।

-राजेश कुमार, हाथी बाजार

जवाब : आंखों को नम रखने के लिए जो पानी बनता है, वह आश्रु नलिका के माध्यम से नाक में चला जाता है। बढ़ती उम्र में पंप मैकेनिज्म कमजोर होने से पानी गिरने लगता है। यह इपीफोरा कहते हैं। आंखों में एंटीबायोटिक ड्राप डालें। नेत्र चिकित्सक से परामर्श कर नली का सिङ्क्षरजिंग कराएं, यदि नली ब्लाक होगी तो सर्जरी करानी पड़ सकती है।

सवाल : 2005 से चश्मा लगा रहा हूं। धीरे-धीरे पावर बढ़ता ही जा रहा है।

-अभिषेक कुमार, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

जवाब : यह मायोपिया का लक्षण है। दूर की वस्तु देखने में दिक्कत होती है। उम्र बढऩे के साथ एक्जियल लेंथ भी बढ़ता है, जिससे चश्मे का पावर आ जाता है। चश्मा तो लगाना ही है, लेकिन आप रिजिड कांटेक्ट लेंस भी लगा सकते हैं। नियमित चश्मे की जांच कराते रहें। हरी साग-सब्जियों व फलों का सेवन करें।

सवाल : मैं 45 साल का हूं। निकट दृष्टि दोष बढ़ रहा है।

-विनय कुमार उपाध्याय, जक्खिनी

जवाब : 40 वर्ष से अधिक उम्र में यह सामान्य समस्या है, जिसमें नजदीक का चश्मा लगाना पड़ता है। इसकी गिनती बीमारी में नहीं होती। इसे प्रेस बायोपिया कहते हैं। बाइफोकल चश्मा लगाएं।

सवाल : पौत्री एक साल की है। सीधा देखने पर निगाह टेढ़ी हो जाती है।

-मुन्ना लाल, चेतगंज

जवाब : यह भेंगापन है। इसके लिए नियमित चश्मे के पावर व आंखों के पर्दे की जांच कराएं। पांच वर्ष से पहले यदि बच्चे का इलाज कराएं तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। बेहतर वाली आंख को पैचिंग करें, इसे आक्लूजन थेरेपी कहते हैं। इससे कमजोर आंख में ताकत आएगी और आंख सीधी हो सकती है। अन्यथा आगे चलकर ऑपरेशन की जरूरत पड़ेगी।

सवाल : नेत्र प्लास्टिक सर्जरी क्या है।

-अमित उपाध्याय, बीएचयू

जवाब : यह आंखों की सर्जरी की नई विधि है। इसमें कास्मेटिक सर्जरी के माध्यम से पलक, नेत्र गोलक या चेहरे के किसी भी भाग की विकृति को ठीक किया जाता है। बीएचयू के साथ ही तमाम बड़े अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है।

मेरी उम्र 60 वर्ष से अधिक है। चश्मा लगाने के बाद भी पढ़ते समय या टीवी देखते समय बीच में काला धब्बा दिखता है।

-एसएनएस यादव, लहरतारा

जवाब : यह मैक्युलर डी-जेनेरेशन है। इसमें रेटिना का सबसे संवेदनशील हिस्सा मैक्युला क्षतिग्रस्त होने लगता है। इसके लिए रेटिना विशेषज्ञ से पर्दे की जांच व उचित इलाज कराएं।


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