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बेनिया का सियासी 'संन्यास', जेपी-अटल की ऐतिहासिक सभा का गवाह रहा है बेनिया

वाराणसी स्थित बेनियाबाग पार्क राजनीति से जुड़ी ऐतिहासिक सभाओं का साक्षी रहा है। यहां अटल बिहारी वाजपेयी जेपी से लेकर कई दिग्गजों ने सभाएं की हैं।

By Edited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 02:07 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2019 02:39 PM (IST)
बेनिया का सियासी 'संन्यास', जेपी-अटल की ऐतिहासिक सभा का गवाह रहा है बेनिया
बेनिया का सियासी 'संन्यास', जेपी-अटल की ऐतिहासिक सभा का गवाह रहा है बेनिया

वाराणसी [विकास बागी]। गुलामी के दौर में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वालों को ओजस्वी भाषण से लेकर आजाद भारत में जेपी-अटल से लेकर देश के कई दिग्गज राजनीतिज्ञों के वादे-इरादे, तेवर का गवाह रहा बेनिया का ऐतिहासिक मैदान इस बार चुनावी संन्यास ले रहा है। वजह-विकास कार्य। नगर निगम और विकास प्राधिकरण की तरफ से स्मार्ट सिटी योजना के तहत यहां कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। नगर आयुक्त डा. आशुतोष द्विवेदी ने जिला निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि चुनाव के दौरान यदि राजनीतिक दल चुनावी सभा के लिए अनुमति मांगते हैं तो उन्हें नहीं दिया वरना यहां परेशानी होगी। जिला निर्वाचन अधिकारी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि नगर आयुक्त का पत्र मिला है। वस्तुस्थिति से जिला प्रशासन अवगत है। बेनिया पार्क में निर्माण के चलते वहां अनुमति देना संभव नहीं होगा। यदि कोई राजनीतिक दल अनुमति मांगेगा वहां सभा के लिए तो उसे हालात से अवगत कराया जाएगा।

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बेनिया में दर्शन के लिए रखी थी बापू की अस्थियां, आज गांधीचौरा : भारत को आजाद हुए एक साल भी नहीं बीते कि महात्मा गांधी की हत्या हो गई। मृत्यु के 22 दिन बाद फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियां काशी पहुंची थी। बापू की अस्थियों के काशीवासियों के दर्शन के लिए बेनिया के मैदान में रखा गया था। बनारस समेत पूरा पूर्वाचल बेनिया की पहुंचा था। अगले दिन गांधीवादी रघुनाथ सिंह हरिश्चंद्र घाट पहुंचे जहां राजकीय सम्मान के बाद गांधी जी की अस्थियां गंगा में प्रवाहित हुई थी। प्रथम गर्वनर राजगोपालचारी ने एक दिसंबर 1949 को यहां गांधी चौरा का शिलान्यास किया था।

मोदी को नहीं मिली थी सभा की अनुमति : नरेंद्र मोदी ने 2014 में जब पहली बार वाराणसी को अपना संसदीय क्षेत्र बनाने के लिए यहां से नामांकन करने का ऐलान किया था, यहां उनकी सभा के लिए भाजपा ने बेनिया को चुना। उस समय प्रदेश में सपा की सरकार थी। पुलिस-प्रशासन ने रिपोर्ट लगा दी कि मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने के कारण बेनिया में मोदी की सभा होने से माहौल बिगड़ सकता है। भाजपा ने जिला पुलिस-प्रशासन के इस तर्क का खूब विरोध किया था। भाजपा ने बहुत कोशिशें की लेकिन मोदी को 2014 में लोकसभा चुनाव की अनुमति नहीं मिली। चुनाव जीतने के बाद मोदी काशी के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से गुजरे और मुस्लिम बंधुओं ने उनका तहे दिल से स्वागत भी किया था।

अटल-आडवाणी की सभा में उमड़ा था जनसैलाब : बेनियाबाग की अटल-आडवाणी की सभा आज भी काशीवासियों के जेहन में है। 1996 में अटल जी की 13 दिन की सरकार बनी थी। वर्ष 1997 में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ हो रहा था। उस दौरान बेनियाबाग में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की सभा आयोजित की गई। उस दिन मौसम बेहद खराब था। सभा शुरू होने से ठीक पहले अचानक झमाझम बरसात शुरू हो गया। मगर अटल जी को सुनने पहुंची हजारों की भीड़ टस से मस नहीं हुई। अटल जी का भाषण चलता रहा और भीड़ का आना जारी रहा। पहली बार काशी में किसी नेता को सुनने के लिए इतनी भीड़ जुटी और भारी बारिश के बावजूद भीड़ मैदान में डटी रही। अटल जी ने भी खुलकर भाषण दिया और देश समाज के साथ ही धर्म-जाति से ऊपर उठकर देश की एकता-अखंडता के लिए वोट देने की अपील की। उस सभा की खासियत यह थी कि पहली बार धर्म-जाति की सभी दीवारें टूट गई थीं। मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या सभा में मौजूद थी।

अटल जी के ओजस्वी भाषण ने काशी की जनता पर ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि लोग आज तक नहीं भूल पाए। उस सभा के बाद भाजपा और संघ की पैठ काशी में बनती गई। लौह पुरूष ने की थी पहली चुनावी सभा -मिश्रित आबादी से घिरे बेनिया बाग में हुए चुनावी सभाओं के दौर को याद करते हुए इलाके के बशीर मियां बताते हैं कि सियासी पारा नापने के लिए यह मैदान राजनीतिक दलों की पसंदीदा जगह रही है। यहां सबसे पहली चुनावी सभा 1952 में सरदार बल्लभ भाई पटेल की हुई थी। उसके बाद यहां नेहरू परिवार का हर सदस्य बेनियाबाग पहुंचा। प्रियंका गांधी को छोड़ दिया जाए तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी भी यहां सभा कर चुके हैं। आप नेता अरविंद केजरीवाल से लेकर शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा तक यहां गरज-बरस चुके। जयप्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह से लेकर देश का हर प्रमुख राजनेता बेनिया के मैदान पहुंचा।

आयरन लेडी को सुनने के लिए रातभर डटी रही जनता : इंदिरा गांधी की सभा को याद करते हुए बताया कि 1979 में इंदिरा गांधी की बेनिया में सभा थी। उनके आने से पहले ही मैदान खचाखच भरा था। इंदिरा गांधी का कार्यक्रम खींचता चला गया। वह अगले दिन सुबह बेनिया पहुंचीं। इंदिरा गांधी को सुनने के लिए लोग उनका सुबह तक इंतजार करते रहे। वह आई और जनता के प्रति आभार जताया कि उन्हें सुनने के लिए पूरी रात वहीं गुजार दी।


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