गर्मी की छुट्टियों में घुमक्कड़ हुआ मन : आउटिंग का गढ़ बनारस, सैलानियों को करता आकर्षित
गर्मी की छुट्टियों में घुमक्कड़ हुआ मन क्या जतन नहीं करता। तपिश के सीजन में पहाड़ और वादियों को ढूंढ़ता फिरे तो बरसात संग फक्कड़ मस्ती का शहर बनारस अपनी ओर बुलाता है।
वाराणसी, [प्रमोद यादव]।गर्मी की छुट्टियों में घुमक्कड़ हुआ मन क्या जतन नहीं करता। तपिश के सीजन में पहाड़ और वादियों को ढूंढ़ता फिरे तो बरसात संग फक्कड़ मस्ती का शहर बनारस अपनी ओर बुलाता है। देश-विदेश के सैलानियों के साथ ही इस शहर के रहनवारों को भी यह अहसास हो जाता है। धर्म-अध्यात्म, कला-संस्कृति, योग-दर्शन, सांस्कृतिक-पौराणिक-ऐतिहासिक धरोहर संग मन-मिजाज और खानपान, चाहे जिस किसी के भी आप मुरीद हों, यहां मिल ही जाएगा मन मुताबिक स्थान। इसका ही असर कह सकते हैं कि सालाना इस शहर में एक करोड़ सैलानी खिंचे चले आते हैं, सुनहरी यादें साथ लिए जाते हैं।
विश्व की प्राचीन धर्मनगरी काशी की बाबा विश्वनाथ व गंगा के बिना भला कैसे कल्पना की जा सकती है। थोड़े धर्मानुरागी हैं और नेचर ट्रिप के इच्छुक तो एकसाथ दोनों का आनंद एकाकार हो जाएगा। बाबा को शीश नवाइए और इस शहर के गले में चंद्रहार की तरह लिपटी उत्तरवाहिनी गंगा के तट से सुबह-ए-बनारस की अद्भुत छटा निरख आइए।
एक घाट पर खड़े-खड़े मन न भरे तो नाव या क्रूज पर बैठे गंगधार पर विचरण करिए और उस पार रेती में निखरते जा रहे जुहू-चौपाटी पर मस्त-मलंग जीवन शैली का आनंद उठाइए। हालांकि, गंगा के इस पाट पर सुबह स्नानार्थियों की तो दिन के दूसरे पहर से आउटिंग के शौकीनों की अधिक जुटान होती है। शहर को समझने-महसूसने के उद्देश्य से आए तो गलियों में घूमिए व कचौड़ी-जलेबी,चाट-पकौड़ा समेत दक्षिण भारतीय पकवानों का स्वाद लीजिए।
घाट -गलियों में घूमते महज पांच किमी के दायरे में समूचे भारत की संस्कृतियों का दर्शन हो जाएगा। यह सब इससे जुड़े मंदिरों में भी नजर आएगा। इस बीच सुबह अस्सी व डा. आरपी घाट पर और शाम को दशाश्वमेध घाट पर गंगा की दिव्य आरती का भव्य नजारा देखकर तन-मन में अध्यात्म गंगा का प्रवाह भर जाएगा।
बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ
भारत धार्मिक व सांस्कृतिक विविधता का देश है तो बनारस को उसका मिनी रूप कह सकते हैं। इसकी धरोहर शृंखला सर्वधर्म सद्भाव की नजीर हैं। इसे महात्मा बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ से समझ सकते हैं। देश-दुनिया से वर्षपर्यंत आने वाले सैलानियों में सिर्फ 40 फीसद यहां ही आते हैं। खास यह कि बुद्धकालीन पुरातात्विक खंडहर और संग्रहालय, चौखंडी व धमेख स्तूप, करज्ञुर्द संप्रदाय के साथ ही जापान, तिब्बत, चीन व थाई के बौद्ध मंदिर घूमने में दिन निकल जाएगा। पक्षी विहार के साथ दो किमी के दायरे में विस्तारित प्रकृति का उपहार कुछ पल ठहर कर समेट लेने को जी चाहेगा।
फुल डे पैकेज : रामनगर
धर्म-संस्कृति और धरोहरों से लगाव है तो रामनगर आपको खूब भाएगा। गंगा किनारे काशी नरेश महाराज का दुर्ग तो प्राकृतिक छटा के बीच देवालय शृंखला शांति का अहसास देगी। किले में प्राचीन दुर्लभ अस्त्र-शस्त्र व पालकी-बग्घी के साथ ही परिधान बार-बार ध्यान खींचेंगे। यहां पांच किलोमीटर के दायरे में फैले विश्व प्रसिद्ध रामलीला के स्थल दिल में उतर जाएंगे तो रामबाग में दक्षिण भारतीय शैली में बना सुमेरु मंदिर, पीएसी छावनी में काशिराज परिवार की कुल देवी गिरिजा देवी का मंदिर तो कोहबर की झांकी के दर्शन हो जाएंगे। दुर्गा मंदिर के पास रविवार को पहुंचे तो अहरे भी दगे मिल जाएंगे। खास यह कि यहां ही पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आवास में उनकी स्मृतियां भी महसूस कर पाएंगे।
धार्मिक पर्यटन
धर्म नगरी काशी में शैव-वैष्णव एका की नजीर मिल जाएगी तो निर्गुण व अघोर धारा में इसमें मिलती नजर आएगी। श्रीकाशी विश्वनाथ से शुरू यह शृंखला शहर से गांव तक जाएगी। बाबा का दर्शन कर असि रोड पर महज कुछ किमी आगे बढ़ते दुर्गाकुंड मंदिर व आनंद बाग में संत भास्करानंद की समाधि के दर्शन हो जाएंगे। पास में ही संकटमोचन, त्रिदेव मंदिर और बीएचयू विश्वनाथ मंदिर के दर्शन कर निहाल हो जाएंगे। सावन में आए तो दुर्गा मंदिर के पास ही रामचरित मानस व राधा-कृष्ण के जीवन प्रसंगों को सहेजे मानस मंदिर गजब अहसास दिलाएगा।
कण-कण शंकर
आउटिंग के शौकीन पंचक्रोशी परिक्रमा के तीसरे पड़ाव रामेश्वर में रामेश्वर महादेव व राधाकृष्ण समेत देव विग्रहों के दर्शन-पूजन के साथ ही सपरिवार पूरा दिन बीता सकते हैं। चौबेपुर के कैथी में गंगा-गोमती तट पर मार्कंडेय महादेव व रोहनिया में गंगा तट पर शूलटंकेश्वर महादेव को शीश नवाइए। मन में आए तो अहरा दगाइए व बाटी चोखा की पार्टी सजाइए। वैसे भी शूलटंकेश्वर के बाद कैथी में भी अब वाटर स्पोर्ट्स की तैयारी की जा रही है।
बुलाती हैं धरोहरें
धरोहरों से साक्षात्कार के शौकीन हैं तो इस शहर में सारनाथ के बाद भदैनी में रानी लक्ष्मीबाई जन्मस्थली और तुलसीघाट जहां गोस्वामी तुलसीदास ने मानस की चौपाइयों को पूरा किया, एकसाथ देखने को मिल जाएगा। पंचगंगा घाट पर माधवराव का धरहरा तो मान मंदिर में वेधशाला जहां श्रव्य -दृश्य तकनीक से समूचा बनारस भी देखा जा सकता है। राजघाट पर लाल खां का रौजा और इसके ही पास वह स्थान जहां पुरा विशेषज्ञों ने बनारस की प्राचीनता को तलाशा, उसे भी देख सकते हैं। यहां नजदीक ही प्राचीन व ऐतिहासिक आदिकेशव मंदिर का भी दर्शन हो जाएगा। रामनगर में काशी नरेश का दुर्ग व पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री की स्मृतियों को महसूस कर सकेंगे। इसके अलावा लहरतारा व कबीरचौरा में श्रमसाधक संत कबीर दास की स्थली, शिवाला में अघोराचार्य कीनाराम तो पड़ाव पर अघोराचार्य भगवान राम की स्थली भी अनूठा अनुभव दे जाएगी।
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