उड़ाते थे खिल्ली, कहते थे शेखचिल्ली, अब उसी से सीख रहे बीन्स की खेती का कौशल
बलिया के द्वाबा में किसान परम्परागत खेती से हटकर अब सब्जियों की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
बलिया, जेएनएन। द्वाबा में किसान परम्परागत खेती से हटकर अब सब्जियों की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस क्षेत्र के टोला बाजराय में सिताबदियारा क्षेत्र के कई किसान इसका उदाहरण बने हैं। उनमें से एक किसान हैं पुरेंद्र पांडेय जो बीन्स की खेती कर रहे हैं। पंजाब और झाड़खंड राज्य में बहुतायत मात्रा में पैदा होने वाली बींस फली की खेती, द्वाबा में भी में पसंद की जा रही है।
बीएसटी बांध से पांच सौ मीटर की दूरी पर पांच बीघा में बीन्स की खेती किए किसान पुरेंद्र पांडेय बताते हैं कि प्रयोग के तौर पर उन्होंने यह खेती पहली बार 2018 में की, तब आसपास के किसान उन पर हंस रहे थे लेकिन उत्पादन देख बहुत से किसान उनसे बीन्स की खेती की सीख लेने भी पहुंच रहे हैं। बींस फली की खेती करने के लिए सबसे पहले आलू की तरह खेत तैयार किया जाता है।
इसके बाद 1.5 फीट की दूरी पर लाइन बनाकर 10 इंच की दूरी पर बीज बोए जाते हैं। बीज बोते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि खेत में पर्याप्त नमी जरूर हो। इसलिए बोआई के साथ ही खेत के हिसाब से नाली भी बना दी जाती है। वे बताते हैं कि लोबिया, सेम व चायनीज फली के नाम से विख्यात बीन्स फली का प्रयोग शादी समारोहों में मिक्स वेज सब्जी में अब सबसे अधिक हो रहा है। डाक्टर बताते हैं कि इसकी सब्जी खाने से शुगर की बीमारी कुछ हद तक शांत रहती है।
यह है देखभाल का तरीका : उन्होंने बताया कि जब मिट्टी में बीज का जमाव हो जाता है तो 15 दिनों के अंदर कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। बीन्स फली का बीज लखनऊ में 700 रुपए प्रति किलो की दर से मिलता है। एक एकड़ में तीन किलो के आस पास बीज लगाया जाता है। यानी बीन्स फली की एक एकड़ खेती करने में लगभग छह से आठ हजार रुपए की लागत आती है। इसके अलावा यदि खेत लगान पर है तो खर्च में छह हजार और जोड़ लिया जाता है। अक्टूबर महीने ने बोई जाने वाली यह फसल, जनवरी महीने के अंत से फल देने लगती हैं।