बनारस रंग महोत्सव : सीता के कष्ट और राम की दुविधा के बीच विस्मित हुए काशीवासी
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) और संस्कार भारती की ओर से आयोजित बनारस रंग महोत्सव के पहले दिन बुधवार को आगा हश्र कश्मीरी के नाटक सीता वनवास का नागरी नाटक मंडली के शाकुंतल प्रेक्षागृह में मंचन हुआ। इस दौरान हरियाणा की संस्था थिएटर वाला के कलाकारों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी।
वाराणसी, जेएनएन। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) और संस्कार भारती की ओर से आयोजित बनारस रंग महोत्सव के पहले दिन बुधवार को आगा हश्र कश्मीरी के नाटक सीता वनवास का नागरी नाटक मंडली के शाकुंतल प्रेक्षागृह में मंचन हुआ। इस दौरान हरियाणा की संस्था थिएटर वाला के कलाकारों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी। प्रेक्षागृह में खड़े होकर नाटक देख रहे दर्शक नाटक की सफलता की कहानी खुद बयां कर रहे थे। जनता की ओर से सीता पर सवाल उठने के बाद राम का राजा और पति के बीच का द्वंद्व देखते ही बन रहा था। इसके बाद सीता के वनवास गमन और राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ के आयोजन को बड़े सुंदर तरीके से पेश किया गया है।
मंच सज्जा : नाटक के अनुसार मंच सज्जा बेहतरीन थी। हर दृश्य के बाद बदलाव भी संवाद के अनुरूप शानदार रहा। मंच सज्जा की सबसे बड़ी विशेषता थी कि इससे कलाकारों का अभिनय और उभरकर सामने आया।
संगीत : आनंद किशोर मिश्र, आनंद कुमार, प्रांजल सिंह और अभिषेक मिश्रा ने प्रस्तुति में वाद्य यंत्रों का का सटीक प्रयोग किया। इस दौरान संवादों के बीच किसी भी वाद्य यंत्र का न बजना भी संगीत के पक्ष को उभार रहा था। लव-कुश के संवाद का दृश्य इसका सटीक उदाहरण रहा।
आगा हश्र कश्मीरी : आगा हश्र का असली नाम आगा मुहम्मद शाह था। उनके पिता व्यापार के सिलसिले में कश्मीर से बनारस आये और यहीं बस गए। यहां नई सड़क स्थित गोविंद कलां मोहल्ले के, नारियल बाजार में एक अप्रैल 1879 को इनका जन्म हुआ था। नाटक की दुनिया में इनका योगदान अभूतपूर्व है।
आज का आयोजन
मध्यप्रदेश के लोक रंग समिति द्वारा हास्य से भरपूर बोधायन की प्रसिद्ध रचना भगवदज्जुकम का मंचन किया जाएगा। इसकी परिकल्पना और निर्देशन द्वारिका दाहिया का होगा। नाटक 6:30 बजे शाम को शुरू होगा।
नाटक के बारे में :
आगा हश्र कश्मीरी का एक अत्यन्त मार्मिक नाटक है. इसका कथानक ''उत्तर रामायण' से पूर्णतया प्रेरित है । नाटक में हिन्दी और उर्दू दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है जो कि नाटक को रामायण की सामान्य भाषा से अलग एवं रुचिकर बनाता है। सीता वनवास समकालीनता और आधुनिकता का श्रेष्ठ नमूना है । इसके ज़रिए नाटककार ने एक समूह विशेष के स्त्री समाज को पुरुष के स्वामित्व स्वभाव का शिकार दिखाया है । जो कि स्त्री को सिर्फ कुटुम्ब और बच्चों की सेवा करने वाली दासी समझता है। वहीं नाटक के दूसरे पहलू में जब अयोध्या की कुछ सशंकित और खुद को विवेकशील समझने वाली प्रजा द्वारा सती सीता के चरित्र पर प्रश्न उठाने पर श्री राम को सीता के निष्कलंक और निष्पाप होते हुए भी उनका परित्याग कर वन में छोड़ना पड़ता है। लव कुश द्वारा किये गए प्रश्नों ने कि श्रीराम धन, बल, ज्ञान के पास होते हुए भी प्रेम का दान क्यों नही दे पाये, किस न्यायाधीश के समक्ष सीता के सत्य असत्य का विचार किया, श्रीराम के अंतर्द्वन्द और आत्मग्लानि को बढ़ा दिया ,उन्हें अपना सिंहासन जलती चिता प्रतीत हुआ | सीता के पुन: आगमन के पश्चात भ्रमित और खुद को विवेकशील समझने वाली प्रजा ने सती के सत्य की परीक्षा की मांग की जिससे क्रोधित होकर सीता माँ वसुन्धरा की गोद मे समा जाती हैं । इस नाटक में आज की आधुनिकता ऐसे साफ देखी जा सकती है कि जिस तरह आज कुछ व्यक्ति विशेष अपने आप को विवेकशील समझकर अपनी ही देश की संस्कृति के सत्य पर सवाल उठा देता है तो संस्कृति का रसातल में जाना तय है । जैसा की इस नाटक की एक पंक्ति में सार्थक भी होता है "किस तरह जीता रहेगा राम (देश) , गर सीता( संस्कृति) नहीं ।