नटराज की नगरी में सजेगा बनारस रंग महोत्सव, बनारस के कलाकारों की भी होंगी प्रस्तुतियां
कोरोना के अर्दब में आने के साथ नटराज की नगरी काशी एक बार फिर अपने रंग में आ गयी है। रविवार को ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी को समर्पित बड़े सांगीतिक आयोजन के बाद अब विशाल रंग मंच भी सजने जा रहा है। इसे बनारस रंग महोत्सव नाम दिया गया है।
वाराणसी, जेएनएन। कोरोना के अर्दब में आने के साथ नटराज की नगरी काशी एक बार फिर अपने रंग में आ गयी है। रविवार को ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी को समर्पित बड़े सांगीतिक आयोजन के बाद अब विशाल रंग मंच भी सजने जा रहा है। इसे बनारस रंग महोत्सव नाम दिया गया है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय वाराणसी व संस्कार भारती काशी की ओर से 27 से 31 जनवरी तक आयोजित महोत्सव में बनारस के साथ ही तीन प्रांतों के रंगकर्मी जुटेंगे।
नागरी नाटक मंडली के शाकुंतल प्रेक्षागृह में पांच खास प्रस्तुतियों के जरिए अपनी कला दिखाएंगे। इसमें हरियाणा का नाट्य ग्रुप थिएटर वाला की और से सीता वनवास मंच पर सजेगा। दिल्ली की द रिवाइन संस्था अंगीरा पेश करेगी। बिहार के आरा से बख्शी विकास ग्रुप डांस ड्रामा बुद्धं शरणम् गच्छामि लेकर आएगा। इसके अलावा बनारस थिएटर ग्रुप गोडसे प्रस्तुत करेगा तो कामायनी रंग संस्था की खास प्रस्तुति होगी गेशे जंपा।
गेशे जंपा में मंच पर उतरेगा तिब्बती शरणार्थियों का दर्द
ख्यात उपन्यासकार नीरजा माधव के चॢचत उपन्यास गेशे जंपा के नाट्य मंचन को लेकर कलाकारों में खूब उत्साह है। इसका रिहर्सल भी शुरू हो गया है। तिब्बती शरणार्थियों और उनकी मुक्ति साधना पर केंद्रित इस उपन्यास का निर्देशन ख्यात रंगकर्मी सुमित श्रीवास्तव कर रहे हैं। तिब्बत आंदोलन इस समय का एक ज्वलंत आन्दोलन है जिस पर विश्व की भी निगाहें टिकी हैं। भारत के लिए तो यह और भी महत्व का मुद्दा है क्योंकि जब तक तिब्बत भारत और चीन के बीच में बफर स्टेट की भूमिका में स्थित था तब तक चीन से भारत की सीमाएं दूर थीं और इसलिए कोई सीमा विवाद भी नहीं था। अब भूल सुधार के दृष्टिकोण से तिब्बत की आजादी पर विश्व समाज विचार कर रहा है। ऐसे में इस नाटक का कई बार मंचन एक जागरण का काम कर रहा है। इस नाटक का मंचन तिब्बती विश्वविद्यालय में भी हो चुका है।