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महिला आइएएस अधिकारी की नई सोच ने सुझाया, ‘देवियों’ ने कर दिखाया

बलिया की जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल ने बताया कि अभी तक ऐसा प्रयोग सिर्फ बलिया में हुआ है। परियोजना को प्रदेश में माडल के रूप में विकसित किया जा रहा है। जलकुंभी का निस्तारण हो महिलाओं को रोजगार भी मिले इसलिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Sun, 02 Oct 2022 11:06 AM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 11:06 AM (IST)
महिला आइएएस अधिकारी की नई सोच ने सुझाया, ‘देवियों’ ने कर दिखाया
बलिया के 16 स्वयं सहायता समूह की 240 महिलाओं का जीवन बदल रहा है।

संग्राम सिंह, बलियाः कभी पूर्वांचल के पिछड़े जिलों में शुमार किए जाने वाले उत्तर प्रदेश के बलिया की ग्रामीण महिलाएं अब अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं। इस पहल को जन्म दिया है एक महिला आइएएस अधिकारी के नए सोच ने जिसे पूरा किया है इन देवियों ने। बलिया की जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल ने जलकुंभी से जैविक खाद बनाने का विचार साझा किया तो महिलाओं ने इसे तत्काल लपक लिया और अब अनूठे प्रयोग के जरिये प्रदेश के किसानों को भी लाभ पहुंचाने जा रही हैं।

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जिले के दुबहड़ विकास खंड के सरयां गांव के जय मां काली महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष छठी देवी तीन साल पहले समूह से जुड़ीं। इससे पहले स्वावलंबी बनने के सोच से कभी घर की दहलीज नहीं लांघी थी। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पति गुजरात की एक वस्त्र निर्माता कंपनी में काम कर आजीविका के लिए संघर्षरत थे, लेकिन छठी देवी की पहल से अब हालात बदलने लगे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी सरयां गांव की अर्चना महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष मीना देवी की भी है। इसी तरह बलिया के 16 स्वयं सहायता समूह की 240 महिलाओं का जीवन बदल रहा है।

पर्यावरण का खतरा और जलजमाव भी किया कम

जलीय जीवों और पर्यावरण के लिए खतरा बन चुकी जलकुंभी से जैविक खाद बनाकर इन महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की नई राह तो गढ़ी ही, जल में पनप रहे खतरे को भी कम किया। जिलाधिकारी ने इन महिलाओं को प्रशासनिक तंत्र से हर संभव मदद दिलाई। अब जलकुंभी से कंपोस्ट बनाकर 23 गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। जलकुंभी से कंपोस्ट बनाने का अनूठा प्रयोग उत्तर प्रदेश में पहली बार किया जा रहा है। इससे जलकुंभी के चलते बलिया के जाम पड़े 19 किमी लंबे कटहल नाले को भी नवजीवन मिलेगा। 27 गांवों की 1,300 हेक्टेयर कृषि भूमि पर दशकों से होने वाले जलजमाव से भी राहत मिलेगी।

ग्राम पंचायत निधि से मिली मदद

जलकुंभी से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया में एक गड्ढा खोदने की लागत करीब चार हजार रुपये आ रही थी। डीएम सौम्या अग्रवाल ने इस प्रयोग को मनरेगा से जोड़ते हुए ग्राम पंचायत निधि से धनराशि उपलब्ध कराई। डीएम बताती हैं कि जिले के नालों-जलाशयों में जलकुंभी की समस्या समस्या पुरानी है। देउली गांव के भ्रमण के दौरान किसानों से सुझाव मिला कि इससे जैविक खाद बनाई जा सकती है। इस पर विचार कर ग्राम प्रधानों को जोड़ा गया और महिलाओं के संकल्प से हम सफल हुए।

जलकुंभी कंपोस्ट ज्यादा प्रभावी

संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) की रिपोर्ट के अनुसार अन्य जैविक खादों की अपेक्षा जलकुंभी कंपोस्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा तीन गुना अधिक होती है। अब इस खाद को बाजार देने के लिए जिला प्रशासन ने इफको के साथ एमओयू (मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग) पर हस्ताक्षर किए हैं। इफको कंपोस्ट की पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग करेगा। संभावित रेट 40 रुपये किलो प्रति किलो तय हुआ है।

बलिया की जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल ने बताया कि अभी तक ऐसा प्रयोग सिर्फ बलिया में हुआ है। परियोजना को प्रदेश में माडल के रूप में विकसित किया जा रहा है। जलकुंभी का निस्तारण हो, महिलाओं को रोजगार भी मिले, इसलिए यह प्रोजेक्ट शुरू किया।


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