बाबा फतेहराम ने काशी में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के आंदोलन काे नाम दिया था 'नक्कटैया', आज भी जारी है परंपरा
लोकमान्य की उपाधि से अलंकृत बाल गंगाधर तिलक ने जिस तरह गणेशोत्सव को सार्वजनिक किया ठीकउसी प्रकार बाबा फतेहराम ने आंदोलन के तौर पर नककटैया शुरू किया।
वाराणसी, जेएनएन। लोकमान्य की उपाधि से अलंकृत बाल गंगाधर तिलक ने जिस तरह गणेशोत्सव को सार्वजनिक उत्सव का रूप देकर इस अवसर को राष्ट्रीय जागरण का एक उपादान बनाया। ठीक उसी तरह मिजाज की फक्कड़ नगरी काशी में भी निपट अक्खड़ एक लंगोट धारी साधु ने भी एक परंपरागत जुलूसी मेले को राष्ट्रीय अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर बरतानवी हुकूमत की दहशत के चलते शहर पर अर्से से तारी मरघटी सन्नाटे को तार-तार बिखेरने का करिश्मा कर दिखाया। बात है अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध की (सन् 1888)। बरतानवी हुकुमत के दमनकारी रवैये से हर ओर मुर्दनी का आलम।
जुबानों पर ताले, जबरन तालाबंदी के चलते बंद पड़े सारे अखबारी रिसाले। शासन के खिलाफ बोलने की कौन कहे, इशारे में अंगुली तक उठाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में जन्मना विद्रोही संत बाबा फतेहराम ने चेतगंज मुहल्ले में आयोजित परंपरागत रामलीला के सबसे मुखर जुलूसी मेले नक्कटैया को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। छोड़ा अपना चुंगी कचहरी वाला चउक-चबूतरा और अपने लठइतों के साथ मैदान में उतर कर अइसा तमाशा रचाया कि बुद्धि में अपने को बुद्ध मानने वाले अंग्रेज भी चारो खाने चित। सोच कर देखिए, दिन रात राम-राम रटने और एकमेव ध्येय लीला को पोसने-पालने के जतन में व्यस्त व मस्त रहने वाले बाबा ने जुक्ति (युक्ति) लगाई तो सूचनाओं और सरोकारों से अर्से से कटी जनता राष्ट्रीय भावनाओं में डूबती उतराती हुई हर हर.. बम-बम। उधर इस रहस्य का सूत्र जोहने में हलकान अंग्रेज अफसरशाही का फूल गया दम।
आध्यात्मिक, सामाजिक व मनोरंजक विषयों से जुड़े पारंपरिक व करतबी लॉग- स्वांग व विमान कब पर्दे के पीछे चले गए पता ही नहीं चला। वाह रे, बाबा का करिश्माई किरदार। वे अब नगर के प्रबुद्धजनों से मश्विरा कर जुलूस में मां की पुकार (भारत माता की झांकी), लहू पुकारेगा (कोड़ों की मार झेलता युवक), बलिदान (आंदोलनकारियों की शहादत) जैसे मुद्दों को रेखांकित करती झांकिया निकालना शुरू किया। ऐसा जोश, ऐसी उमंग कि हर झांकी के साथ उठने वाले हर-हर महादेव के घोष और साथ में भारत मां की जयकारों को सुन मगन मन बाबा अपने खास अंदाज में दाढ़ी खुजाकर मन ही मन मुस्कुराते।
मजे की बात तो यह कि बाबा हर झांकी में अंग्रेजों का दागदार चेहरा दिखाकर बड़े धड़ल्ले से उन्हें उनकी करतूतों का आईना दिखाते और ऐसी दिलेरी कि नक्कटैया का जुलूस उठने के पहले मेले के उद्घाटन का नारियल भी उन्हीं के हाथों फोड़वाते। बताते हैं, नगर के मानिंद बुजुर्गवार 'क्षेत्र की हर दुकान से हर महीने एक-एक पैसा जुटाकर बाबा 12 पैसा सालाना के हिसाब से लीला का चंदा बारहोंमास जुटाते पर उसमें से धेला भी अपने ऊपर न खर्च हो, इसका परहेज हमेशा-हमेशा पूरी दृढ़ता से निभाते।
बाक्स बाबा के नाम का अब तक 'मान' का इंतजार : कहते हैं चेतगंज रामलीला कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार गुप्ता व वरिष्ठ उपाध्यक्ष महेंद्र निगम - बात कड़वी ही सही मगर सच है कि आजादी के दौर में एक नारा लगाकर भी जेल का फाटक देख आए न जाने कितने लोग स्वतंत्रता सेनानी हो गए पर सीना तान ताल ठोंक कर बरतानवी हुकुमत को ललकारने वाले इस क्रांतिवीर संत के नाम को महज एक चुटकी सम्मान भी हम नहीं दे पाए। बावजूद इसके कि काशीवासी कई मर्तबा बाबा को स्वतंत्रता सेनानी का मान मरणोपरांत भी देने की मांग उठाते रहे।