गोरखपुर के गोरक्षपीठ में बाबा दरबार के अर्चकों ने सीएम की मौजूदगी में की सप्तर्षि आरती
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर में नित्य संध्याकाल में होने वाली सप्तर्षि आरती शारदीय नवरात्र की अष्टमी को गोरक्षपीठ में हुई। सप्तर्षि आरती ब्राह्मण मंडल के सदस्यों ने गोरखपुर में गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में आरती के समस्त विधान पूरे किए।
वाराणसी, जेएनएन। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में नित्य संध्याकाल में होने वाली सप्तíष आरती शारदीय नवरात्र की अष्टमी को गोरक्षपीठ में हुई। सप्तíष आरती ब्राह्मण मंडल के सदस्यों ने गोरखपुर में गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में आरती के समस्त विधान पूरे किए। गोरक्षनाथ पीठ में सप्तíष आरती कराने के लिए ब्राह्मणों के चयन से लेकर आरती संपन्न कराने तक की पूरी व्यवस्था महामंडलेश्वर संतोष दास महाराज सतुआ बाबा ने कराई। काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास में यह पहला मौका रहा जब काशी के बाहर सप्तíष आरती कराई गई। सतुआ बाबा ने कहा कि काशी और विश्वनाथ दरबार का गोरक्षपीठ से प्रगाढ़ रिश्ता रहा है। सिद्धपीठ में बाबा की आरती रिश्ते को मजबूती देगी।
गोरक्षपीठ में सप्तर्षि आरती करने वालों में रामानंद, राजन मिश्र, दयाशकर, कृष्णानंद, संतोष दुबे, भट्टजी और शिवजी महाराज शामिल रहे। काशी विश्वनाथ मंदिर और सप्तर्षि आरती की प्राचीन परंपरा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में नित्य पांच आरती की जाती है। इसमें सायंकाल की जाने वाली सप्तर्षि आरती बेहद खास है। द्वादश ज्योतिìलगों में से सिर्फ श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में ही सप्तíष आरती का अनुष्ठान किया जाता है। लगभग 300 वर्ष पुरानी आरती की यह परंपरा राजघरानों के सहयोग से की जाती रही है। इसे उनके प्रतिनिधि अर्चक निभाते रहे। फिलहाल ग्वालियर, मैसूर, जामनगर, उदयपुर, नागोद और भुल्लनपुर (वाराणसी) के साथ ही शनि मंदिर, डा. कुलपति तिवारी और प्रधान अर्चक गुड्डू महाराज की डलिया सप्तर्षि आरती के लिए प्रतिदिन मंदिर जाती है।
महंत डा. कुलपति तिवारी ने कहा कि महंत परिवार के सदस्यों द्वारा दीक्षित मंत्र से सप्त ऋषियों का आह्वान बाबा दरबार में प्रत्येक दिवस किया जाता है। इस विशिष्ट विधान के कारण ही सप्तíष आरती द्वादश में से सिर्फ विश्वनाथ ज्योतिìलग की, की जाती है। सप्तíष आरती का गोरक्षनाथ पीठ में होना समाज की धाíमक भावनाओं में ऐतिहासिक परिवर्तन का संकेत है। यही नहीं संकठा घाट स्थित आत्मावीरेश्वर को काशी विश्वनाथ की आत्मा माना गया है इसलिए आत्मावीरेश्वर मंदिर में भोग और आरती के समस्त विधान काशी विश्वनाथ मंदिर के विधान के अनुसार ही होते हैं।