आयुर्वेद चिकित्सक अजय गुप्ता बोले - 'बदलते मौसम में बच्चे और बुजुर्गों का रखें विशेष ध्यान'
मौसम में खानपान तथा रहन-सहन के मामले में ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस मौसम में वायरल बुखार के मामले बढ़ गए हैं। बड़ों के साथ बच्चे भी वायरल की चपेट में आ रहे हैं। इसलिए इस मौसम में बच्चों व बुजुर्गों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। इस समय शरद ऋतु प्रकुपित पित्त, शरीर में गर्मी, बुखार जैसा महसूस होना, अत्यधिक दुर्बलता, खट्टी डकार व सीने में जलन जैसी बीमारियों का असर बढ़ जाता है। आयुर्वेद में समस्त ऋतुओं में शरद ऋतु को 'रोगों की माता' कहा है। हाल के दिनों में ओपीडी में आने वाला हर दूसरा तीसरा व्यक्ति सीने में जलन व एसिडिटी से परेशान है। अधिकांश को ऐसा महसूस हो रहा है कि बुखार है लेकिन थर्मामीटर में तापमान सामान्य आ रहा है। सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में क्या करेंगे। अधिकतर चिकित्सक जांच कराकर परेशान हो जाते है क्योंकि जांच में कुछ आ नहीं रहा है। ऐसे में इस मौसम में खानपान तथा रहन-सहन के मामले में विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इस बदलते मौसम में वायरल बुखार के मामले बढ़ गए हैं। बड़ों के साथ बच्चे भी वायरल बुखार की चपेट में आ रहे हैं। इसलिए इस मौसम में बच्चों व बुजुर्गों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय स्थित के कायचिकित्सा व पंचकर्म विभाग के डा. अजय कुमार बताते हैं कि इस मौसम में तमाम परेशानियां होने का कई कारण है। बताया कि पहले तेज धूम, उमस भरी गर्मी व कभी सर्द मौसम होने के कारण सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, गले मे दर्द, थकान जैसी बीमारियां लोगों को परेशान कर रही हैं।
इसका सकते हैं सेवा :
- गाय का घृत व दूध, पित्त -दोष का नाशक है। इसलिए इनका सेवन अधिक करना चाहिए। घी व दूध उत्तम पित्तशामक है। ऐसे में इनका उपयोग विशेष रूप से करना चाहिए।
-इस ऋतु में अनाज में गेहूं, जौ, ज्वार आदि आहार द्रव्यों को लेना चाहिए।
- फलो में अंजीर, पके केले, जामुन, अनार, अंगूर, नारियल, पका पपीता आदि लिया जा सकता है।
- इस ऋतु में खीर, रबड़ी आदि खाना भी लाभप्रद है।
इन चीजों से बचें :
-इस ऋतु में क्षार, दही, खट्टी छाछ, तेल, चर्बी, गरम-तीक्षण वस्तुएं, खारे -खट्टे रस वाली की चीजें नहीं लेनी चाहिए।
- कुल्थी, प्याज, लहसुन, इमली, हींग, पुदीना, तिल, मूंगफली, सरसों आदि पित्तकारक होने से इनका त्याग करना चाहिए।
- दिन में सोना, धुप का सेवन, अति परिश्रम, अधिक कसरत व पूर्व दिशा से आनेवाली वायु इस ऋतू में हानिकारक है । इसलिए इन सभी से बचना चाहिए।
आयुर्वेदिक व घरेलू उपाय :
इन ऋतुजन्य विकारों से बचने के लिए दवाइयों पर पैसा खर्च करने की वजाय कुछ आसान से उपायों व आयुर्वेद की औषधियों के प्रयोग से आप इससे मुक्ति पा सकते है।
- द्राक्षा यानी मुन्नका, सौंफ एवं धनिया मिलाकर बनाया गया शर्बत, पित्त विकारों का शमन करता है।
-पित्त के शमनार्थ आंवला चूर्ण, अविपत्तिकरचूर्ण अथवा त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
-आंवला चूर्ण शरद ऋतु में अत्यन्त लाभदायी है। इससे पित्त दोष का शमन होता है। यह उत्तम रसायन गुण वाला होता है।
-आंवले को शक्कर के साथ खाना चाहिए। आंवला और शक्कर दोनों उत्तम पित्त शामक होते है।
- प्रवाल पंचामृत, उशीरासव, सारिवरिष्ट, आरोग्यवर्धिनी वटी, फलत्रिकादि क्वाथ जैसी औषधियां भी पित्त को शांत करती है लेकिन इनका प्रयोग बिना चिकित्सकीय सलाह के नहीं करें।