काशी से अयोध्या की टीम किया था मजबूत, मंदिर आंदोलन की बात होते ही बनारसी सिंह जवां हो उठे
कभी काशी तो कभी अयोध्या जहां प्रभु श्रीराम ने जिम्मेदारी दी वाराणसी के खजुरी-पांडेयपुर निवासी बनारसी सिंह यादव (80 वर्ष) ने बखूबी निभाया।
वाराणसी [सौरभ चंद्र पांडेय]। अब तो उम्र की उस दहलीज पर हूं जब हर समय राम नाम लेना अनिवार्य है। ...और ये बात तो उस समय की है जब रगों में राम का ही नाम दौड़ता था। संघ की विचारधारा से ओतप्रोत होकर राम मंदिर आंदोलन में कूद पड़े तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कभी काशी तो कभी अयोध्या जहां प्रभु श्रीराम ने जिम्मेदारी दी उसे बखूबी निभाया।
मंदिर आंदोलन की बात छेड़ते ही खजुरी-पांडेयपुर निवासी बनारसी सिंह यादव (80 वर्ष) की उम्र में भी जवां हो उठते हैं। कहते हैैं आभास तो ऐसे होता है जैसे अभी उम्र केवल 40 ही हुई है। आंखों के तेज को देखकर छह दिसंबर 1992 के कार सेवा आंदोलन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। कहते हैं मुझे तो प्रभु ने काशी से अयोध्या की टीम को मजबूती प्रदान करने की जिम्मेदारी दी थी। हर स्तर पर जहां संगठन कमजोर पड़ता प्रभु श्रीराम द्वारा प्राप्त शक्तियों से पूरी मजबूती से संगठन को बल देने में जुट जाता। जब तक संगठन मजबूत नहीं हो जाता तब तक मुझे चैन नहीं मिलता। संघ का आदेश था सबको साथ लेकर चलना है इसलिए टीम भावना का पूरा ख्याल रखा। आज उसी का प्रतिफल मिला है कि रामलला अपने नए भवन की नींव 5 अगस्त को रख रहे हैं। मेरा सौभाग्य है कि अपने पूरे जीवन को राम के नाम समर्पित कर दिया।
उन्होंने कहा कि मन तो चाहता है कि अयोध्या में रहूं पर स्वास्थ्य कारणों से विवश हूं। अब तो प्रभु श्रीराम ही सहारा हैं, उनका आदेश हुआ और वह बुलाएं तो मंदिर निर्माण के बाद उनकी शरण में जरूर जाऊंगा। लालसा तो एक ही है कि हम बुजुर्गों द्वारा तैयार की गई थाती को आने वाली पीढ़ी संजोकर रखे और जब कभी इस तरह के आंदोलन की बात हो तो हमारा अनुसरण करे।