Move to Jagran APP

भाई के कलाई की शोभा बढ़ाएगी समूह के बहनों की राखियां, आत्मनिर्भर बनाने की कवायद

रक्षाबंधन पर्व पर समूह के बहनों की राखियां भाई के कलाई की शोभा बढ़ाएंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं स्वदेशी राखियां बना रहीं हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 08:40 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 08:40 AM (IST)
भाई के कलाई की शोभा बढ़ाएगी समूह के बहनों की राखियां, आत्मनिर्भर बनाने की कवायद
भाई के कलाई की शोभा बढ़ाएगी समूह के बहनों की राखियां, आत्मनिर्भर बनाने की कवायद

मीरजापुर, जेएनएन। रक्षाबंधन पर्व पर समूह के बहनों की राखियां भाई के कलाई की शोभा बढ़ाएंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं स्वदेशी राखियां बना रहीं हैं। इसके चलते रक्षाबंधन पर्व पर बहनें अपने भाई की कलाई पर चीन में बनी राखी नहीं बांधेंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वदेशी सामानों को बढ़ावा देने के साथ ही आत्मनिर्भर बनाने की कवायद की जा रही है। राखी बनाने की कला में माहिर गैर प्रांत से आए प्रवासियों की रोजगार के साथ ही आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकेगी।

prime article banner

लद्दाख की गलवन घाटी में चल रहे तनाव के बाद से चीन और चीनी सामानों के खिलाफ बने माहौल में चीनी सामानों के बहिष्कार के साथ ही स्वदेशी सामानों के उपयोग को प्रेरित किया जा रहा है। इसमें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के समूह की महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं। राखी का त्योहार आते ही बाजारों में पहले से ही चीनी राखियां छा जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। चीन की आर्थिक स्थिति को तोडऩे के लिए सरकार द्वारा अब स्वदेशी को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत समूह की महिलाओं के माध्यम से ऐसे उत्पाद को प्रत्येक जनपद स्तर पर ही तैयार कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

स्टाल लगा राखी बेचेंगी समूह की महिलाएं

डीडीएम दशरथ मिश्रा ने बताया कि वर्तमान समय में लगभग 5 से 10 समूहों की महिलाओं द्वारा राखियों को तैयार किया जाएगा। समूह की महिलाओं द्वारा जिला मुख्यालय, विकास भवन, कचहरी, बीएसएनएल कार्याल, ब्लाक परिसर सहित महत्वपूर्ण बाजारों में स्टाल लगाकर स्वत: तैयार राखी को बेचा जाएगा।

मीरजापुर में सक्रिय हैं 84 हजार महिलाएं

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह की महिलाओं ने सफलता का परचम लहराया है। मीरजापुर में वर्तमान समय में 8049 समूह सक्रिय हैं। जिसमें लगभग 84 हजार 300 महिलाएं सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं। समूह की महिलाएं कैंटीन, ई रिक्शा, कालीन बुनाई आदि क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं।

महिलाओं को गांव में ही घर बैठे रोजगार

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा राखी तैयार कराया जाएगा। इससे समूह की महिलाओं खासकर कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन में गैर प्रांत से आने वाले लोगों और महिलाओं को गांव में ही घर बैठे रोजगार मिलेगा साथ ही स्वावलंबी बन सकेंगे।

- डा. घनश्याम प्रसाद, उपायुक्त स्वत. रोजगार, मीरजापुर।

महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में प्रोत्साहन प्रदान करेगा

मीरजापुर के राखी के होल सेलर व फुटकर दुकानदारों से उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल अनुरोध करता है कि स्वदेशी और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा निर्मित राखियों का प्रयोग और बिक्री करें। इससे समूह की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में प्रोत्साहन प्रदान करेगा साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में स्वदेशी भागीदारी सुनिश्चित करेगा।

- शत्रुधन केसरी, प्रांतीय उपाध्यक्ष व नगर अध्यक्ष उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल।

चाइना को सबक सिखाने के लिए व्यापारियों ने भी कसी कमर

कोरोना महामारी ने रक्षाबंधन के त्योहार को भी नहीं बख्शा है। रक्षाबंधन को लेकर भाई-बहनों में काफी उत्साह है तो वहीं दुकानदारों में भय की स्थिति बनी हुई है। ज्यादातर बहनें भाई की कलाई में राखी बांधने के लिए अपने हाथ से ही रक्षा सूत्र बनाने में जुटी हुई हैं। उधर नागरिकों के साथ ही अब व्यापारियों ने भी देश को आत्मनिर्भर बनाकर चीन को सबक सिखाने को ठान ली है। इसलिए चीनी सामानों की ओर से मुंह मोड़ स्वदेशी पर जोर दे रहे हैं। इससे रोजगार बढऩे के साथ ही नए भारत का निर्माण होगा।

प्रदेश सरकार की ओर से सप्ताह में पांच दिन दुकानें खोलने का आदेश जारी है। इसे लेकर थोक व फुटकर राखी विक्रेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। व्यापारियों का कहना है कि सप्ताह के पांच दिनों में कितना व्यापार होगा और होगा या नहीं, यह सबसे बड़ी मुसीबत है क्योंकि रक्षाबंधन के पहले दो दिन तक बंदी ही रहेगी। वहीं एक तरफ कोरोना भय से बहनों ने घर में ही भाइयों की कलाई में बांधने के लिए रक्षा सूत्र बना रही हैं।

सिविल लाइन तिराहे पर दुकान लगाकर राखी बेचने वाले ङ्क्षपटू केशरवानी ने बताया कि कोरोना महामारी के चलते व्यापार का तरीका बदल गया है। पिछले साल के अपेक्षा इस वर्ष राखी का व्यापार आधा ही रह गया है। क्योंकि पिछले वर्ष चाइना से भारत में राखियों का व्यापार होता था लेकिन इस वर्ष हम व्यापारियों ने चाइना की राखियों का बहिष्कार कर दिया है। इससे चाइना राखियों के एवज में इंडियन राखियों की कीमत में कुछ ही पैसों का फर्क आ रहा है। राखी विक्रेता रतन सोनकर ने बताया कि रक्षाबंधन त्योहार पर सबसे ज्यादा पसंद बच्चों की होती है। रेशम का धागा, जरी राखी, मोती राखी, जर्कन नग राखी, मारवाडिय़ों में प्रचलित लुम्बा राखी व बच्चों की पसंद में छोटा भीम, डोरेमोन, सुपरमैन व लाइट जडि़त राखी की मांग ज्यादा रहती है। वहीं संतोष ने बताया कि हर वर्ष किसी तरह पैसा जुटाकर राखी बेचता था और उससे बहन को उपहार देने के लिए पैसे निकल जाते थे लेकिन इस बार राखी नहीं बेचेंगे, क्योंकि उससे पहले दो दिन की बंदी रहेगी। अगर राखी ला दिए और बिका ही नहीं तो हमारा पैसा साल भर के लिए फंस जाएगा। राखी विक्रेता विजय ने बताया कि रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को सभी धर्मो से जुड़े लोग बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं। सर्वाधिक रेशम धागा से बनी राखी का डिमांड रहता है। इसके अलावा कड़ा राखी, रंग-बिरंगे मोती राखी, चांदी राखी व बच्चों की कार्टून राखी की मांग रहती है। कहा कि कोरोना महामारी ने सभी त्योहारों की रौनक को फीका कर दिया है। इससे हमारे व्यापार में भी बिन मौसम बरसात की तरह ही संकट के बादल छा गए हैं। छात्रा बेबी प्रजापति, रूबी गुप्ता, पूजा चौहान, अन्नू प्रजापति ने बताया कि पहले तो हम अपने भाईयों के लिए बाजारों में घूमकर नए-नए प्रकार की राखियां लाते थे लेकिन इस बार कोरोना महामारी के भय से हमने घर में ही राखी बनाई है। जिसे बांधने में मन में किसी प्रकार का भय नहीं रहेगा। बताया कि एक राखी तैयार करने में 30 मिनट का समय लगा। इसकी लागत बाजार की राखियों से कम है। उनकी इस एक राखी बनाने में 20 से 25 रुपये तक की लागत आई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.