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काशी मंथन में बोले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान - 'विश्वगुरु उपाधि नहीं बल्कि भूमिका'

आरिफ मोहम्मद खान काशी मंथन के तहत वसुधैव कुटुंबकम तथा एको अहं द्वितीयो नास्ति का सामाजिक संघर्ष विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 23 Dec 2019 10:52 AM (IST)Updated: Mon, 23 Dec 2019 10:52 AM (IST)
काशी मंथन में बोले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान - 'विश्वगुरु उपाधि नहीं बल्कि भूमिका'
काशी मंथन में बोले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान - 'विश्वगुरु उपाधि नहीं बल्कि भूमिका'

वाराणसी, जेएनएन। विश्वगुरु कोई पदवी या उपाधि नहीं है, बल्कि यह भूमिका है। इसके पीछे हमारे ऋषि-मुनियों की कल्पना थी कि दुनिया भर से लोग यहां आएं और भारतीय संस्कृति के आलोक में अपने धर्म को समझें। यह बातें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को कही। वह बीएचयू स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार में काशी मंथन के तहत 'वसुधैव कुटुंबकम तथा एको अहं द्वितीयो नास्ति का सामाजिक संघर्ष' विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। 

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कहा हमने भले दरवाजे बंद किए, लेकिन खिड़कियां हमेशा खुली रखीं। ताजी हवा के झोंके आते रहें इसका प्रबंध किया। हमने आदर्श राजा-महाराजा नहीं बल्कि ऋषि-मुनि रहे। भारतीय दर्शन का सार है कि एक से सब बने और सभी एक में समाहित होंगे। यही हमारी विशेषता भी है। हिंदुस्तानी दृष्टि ये है कि जितने भी प्रयास हुए परमसत्य की अनुभूति के लिए विभिन्न परिवेश में और विभिन्न व्यक्तियों द्वारा उन्होंने एक ही मंजिल पर पहुंचने की कोशिश की। मगर वहां तक पहुंचने के प्रयास में जो भौगोलिक विभिन्नता है उससे मतभेद हुए हैं। 

कौन क्या पढ़ाएगा, इस पर पाबंदी ठीक नहीं

- बीएचयू स्थित संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति को लेकर हुए विरोध पर आरिफ मोहम्मद खान ने दुख जताया। कहा आक्रमणकारियों के शासन ने हमारी सोच को विकृत कर दिया। हम विश्वगुरु की अपनी भूमिका से भटक गए। इस विकृति को दूर करना है तो आलोचना की बजाय अपनी परंपराओं की जानकारी बढ़ानी होगी। 

नफरत से आंदोलन चल सकता है देश नहीं

- सीएए व एनआरसी पर हो रहे विरोध पर कहा कि बंटवारे के समय भी लोगों में नफरत के बीच बोए गए थे। मगर बाद में जिन्ना को एहसास हो गया कि नफरत से आंदोलन चलाया जा सकता है देश नहीं। 

वतन से दूरी के कारण भटके थे युवा 

- केरल के कुछ युवाओं के आइएसआइएस से जुडऩे के सवाल पर कहा कि केरल में रहने वाले नहीं, बल्कि जो युवा रोजगार के लिए लंबे समय से दूसरे मुल्कों में रह रहे थे, उनमें से ही कुछ भटके। कहा केरल की संस्कृति में धर्म के आधार पर कोई विभेद नहीं है। वहां हर त्योहार सब मिलकर उल्लास के साथ मनाते हैं। 

इनकी रही उपस्थिति : स्वागत काशी मंथन के संयोजक व बीएचयू के संयुक्त कुलसचिव मयंक नारायण सिंह, संचालन अदिति सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डा. सुमिल तिवारी ने किया। इस अवसर पर प्रो. डीसी राय, डा. हेमंत गुप्ता, डा. धीरेंद्र राय, विशाल सिंह, चंद्राली मुखर्जी, विक्रात कुशवाहा, अनुजा रंजन, अनिशा, खुश्बू, रजित, देवाशीष गांगुली आदि थे। 

महात्मा गांधी के वादे को दिया कानून का स्वरूप 

दुनिया में जहां कहीं भी लोग प्रताडि़त हुए, भारत की शरण ली। मौजूदा समय में हमारे सीमित संसाधन इस बात की इजाजत नहीं देते कि हम सभी को शरण दे सकें। मगर दुनिया में जो लोग भी प्रताडि़त हो रहे हों सनातन धर्म के अनुयायी होने के नाते हमारे दिल में उनके लिए हमदर्दी होनी चाहिए और यदि संसाधन इजाजत दे तो आगे बढ़कर मदद भी करनी चाहिए। यह बातें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने जागरण संवाददाता मुहम्मद रईस से बातचीत में कही। वह रविवार को बीएचयू में एक कार्यक्रम के सिलसिले में पहुंचे थे। कहा नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं। विरोध करने वालों के प्रति दुर्भावना नहीं, बल्कि सद्भावना रखते हुए उनसे बात करने की और समझाने की जरूरत है। साथ ही उनकी बात भी सुनी जाए। 

किसी की भी नागरिकता नहीं जाएगी 

- दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जिसके पास अपने नागरिकों का रजिस्टर न हो। एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) को लेकर गलतफहमी न पालें। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इससे किसी की भी नागरिकता नहीं जाएगी। आपका मतदाता परिचय पत्र, आधार या अन्य दस्तावेज मान्य होंगे। ये सभी न होने के बावजूद आपके गांव अथवा मोहल्ले के लोगों की गवाही से भी काम चल जाएगा।

महात्मा गांधी के वादे को दिया कानून का स्वरूप

नागरिकता संशोधन कानून बंटवारे के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं द्वारा किए गए वादों को कानूनी जामा पहनाने की महज प्रक्रिया है, जो मौजूदा सरकार ने बखूबी किया है। इस पर प्रश्न उठाने से बचना होगा। यह बातें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने रविवार को कही। वह बीएचयू स्थित मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र सभागार में काशी मंथन के तहत 'वसुधैव कुटुंबकम तथा एको अहं द्वितीयो नास्ति का सामाजिक संघर्ष' विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। 

कहा दुनिया भर का इतिहास उठा कर देख लें, जहां कहीं भी लोग प्रताडि़त हुए, भारत की शरण ली। मगर मौजूदा समय में हमारे सीमित संसाधन इस बात की इजाजत नहीं देते कि हम सभी को शरण दे सकें। मगर दुनिया में जो लोग भी प्रताडि़त हों सनातन धर्म के अनुयायी होने के नाते हमारे दिल में उनके लिए हमदर्दी होनी चाहिए और यदि संसाधन इजाजत दे तो आगे बढ़कर मदद भी करनी चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं। विरोध करने वालों के प्रति दुर्भावना नहीं, बल्कि सद्भावना रखते हुए उनसे बात करने की और समझाने की जरूरत है। उनकी बात सुनी जाए, क्योंकि हर किसी को अपनी बात शांति से रखने का अधिकार है। मन में किसी प्रकार की कटुता बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। 

दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जिसके पास अपने नागरिकों का रजिस्टर न हो। एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) का धर्म से कोई लेना-देना ही नहीं है। इससे किसी की भी नागरिकता नहीं जाएगी। आपका मतदाता परिचय पत्र, आधार या अन्य दस्तावेज मान्य होंगे। ये सभी न होने के बावजूद आपके गांव अथवा मोहल्ले के लोगों की गवाही से भी काम चल जाएगा। 


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