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Air Pollution in Varanasi : धुएं से ढका वाराणसी का आसमान, सूर्य की किरणें रही बेअसर

जानकर हैरानी होगी कि यह प्रदूषण वाहन और कारखोनों का नहीं बल्कि पंजाब व हरियाणा से आया पराली का धुआं था। यह इतना घना था कि घर से बाहर निकलते ही आंखों में जलन एलर्जी की समस्या लोगों को आने लगी है। वाराणसी में प्रदूषण का हाल ठीक नहीं है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 10:14 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 05:18 PM (IST)
Air Pollution in Varanasi : धुएं से ढका वाराणसी का आसमान, सूर्य की किरणें रही बेअसर
घर से बाहर निकलते ही आंखों में जलन और एलर्जी की समस्या लोगों को होने लगी।

वाराणसी, जेएनएन। बनारस में रविवार को दिल्ली जैसा वायु प्रदूषण का नजारा देखने को मिला। सुबह से लेकर शाम और पूरी रात तक इतनी धुंध हवाओं में मिल गई थी कि सूर्य का प्रकाश भी धरती तक बड़ी मुश्किल से पहुंच पा रहा था। पतंग उड़ाने वाले बच्चों से लेकर सड़क के राहगीरों ने इसे एक तरह का प्रकोप माना। यह जानकर हैरानी होगी कि यह प्रदूषण वाहन और कारखोनों का नहीं, बल्कि पंजाब और हरियाणा से आया पराली का धुआं था। यह इतना घना था कि घर से बाहर निकलते ही आंखों में जलन और एलर्जी की समस्या लोगों को आने लगी। रविवार को बनारस का एयर क्वालिटी इडेंक्स 322 रहा, जो कि पिछले दिनों के मुकाबले काफी ज्यादा रहा। सोमवार को सुबह से ही प्रदूषण की स्थिति बेहतर नहीं दिख रही है। लोगों को सांस लेने में भी दिक्‍कत हो रही है।

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हालांकि दिल्ली के 435 से और लखनऊ के 394 के आंकडें से यह काफी कम था। बीएचयू के पर्यावरणविद और मौसम विज्ञानी प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि आज बनारस के इस धुंध में एक गंध भी थी, जो कि पराली के जलने जैसी है। यह प्रदूषण पूरी तरह से फसल अवशेषों के जलाने से फैल रहा है, जो कि पश्चिमी यूपी से होते हुए अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के रास्ते बिहार में भी प्रवेश कर गया है। उन्होंने बताया यह सामान्य प्रदूषण के अलावा यह स्माग आगे भी चार-पांच दिन तक जारी रहेगा। वहीं दिवाली में पटाखों के प्रदूषण से यह स्थिति और भी भयावह होगी। यदि तीन-चार दिन तक हवा नहीं चली या फिर तापमान नहीं बढ़ा, तो यह प्रदूषण और भी खतरनाक हो सकता है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के प्रदूषण से श्वांस, ह्दय व अस्थमा रोगियों की दिक्कतें बढऩे वालीं हैं। इसके अलावा कोरोना के बीच यह हवा और भी जहरीली साबित होने वाली है।बीएचयू के युवा मौसम विज्ञानी भरतजी मेहरोत्रा ने एक शोध के हवाले से बताया कि पिछले कई दिनों से सूर्य के किरणों की विजिबिलटी घट रही थी और रविवार को यह अपने चरम पर पहुंच गई। इस धुंध में कार्बन की मात्रा काफी ज्यादा है, जो कि वातावरण के लिए प्रत्यक्ष तौर पर ग्रीन हाउस का काम करेगी। सरकार ने नीतिगत स्तर पर सारे हथकंडे तो अपना रही है, लेकिन जमीन पर कोई विशेष लाभ होता नहीं दिखाई दे रहा है।

बनारस में बढ़ गई धूल की समस्या

बनारस में धूल उडऩे की समस्या से हर शहरी बेहद पीडि़त है। पाडेंयपुर से दौलतपुर, गौदौलिया से चौक, बेनियाबाग से लहुराबीर, लहरतारा से बौलिया और लंका सामनेघाट पर तो धूल के अंबार से रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है। यह दिक्कत काफी चरम पर है। निर्माण कार्य कर रहीं कंपनियों द्वारा न तो पानी का छिड़काव किया जा रहा है और न ही उन्हें ढंका जा रहा है। वहीं प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड द्वारा जारी आदेशों व निर्देशों का पालन भी न के बराबर हो रहा है। यदि यह स्थिति ऐसी ही जारी रही तो बनारस के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी काफी समस्याएं आएंगी।हालांकि बोर्ड के अधिकारी सड़कों व होटलों के किनारे पेड़ों पर जमी धूल को उड़ाने में भारी मशक्कत कर रहे हैं, मगर अभी बनारस को प्रदूषणरहित बनाने में यह प्रयास नाकाफी हैै।

वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए पांच स्प्रिंकलर

वायु प्रदूषण को लेकर नगर आयुक्त गौरांग राठी बेहद सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने जोनल अधिकारियों को आदेशित किया है कि जहां भी निर्माण कार्य हो रहा है वहां की नियमित निगरानी करें। इसके लिए कार्यदायी कंपनी से पानी का छिड़काव कराएं। जिन सड़कों पर धूल उड़ रही है वहां पर नगर निगम प्रशासन की ओर से पानी का छिड़काव कराया जाएगा।

नगर आयुक्त ने बताया कि पानी के छिड़काव के लिए पांच नए स्प्रिंकलर मंगाए गए हैं। नगर निगम की तकनीकी टीम ने स्प्रिंगल की गुणवत्ता की जांच कर रिपोर्ट सौंप दी है जिसके आधार वर्क आर्डर हो चुका है। 10 से 15 दिन में स्प्रिंकलर नगर निगम प्रशासन को मिल जाएगा। इसके बाद पानी के छिड़काव को लेकर संसाधनों की कमी नहीं रहेगी। वर्तमान में पुरानी व्यवस्था के तहत पानी का छिड़काव किया जा रहा है।

हो रही आदेश की अवहेलना

नगर में विकास कार्य तेजी से हो रहा है। वहीं, निजी मकान व मल्टी स्टोरी बिल्डिंंग भी बनाई जा रही है। इस दौरान मानकों की अनदेखी हो रही है। नगर आयुक्त के आदेश की अवहेलना की जा रही है। न तो पानी का छिड़काव किया जा रहा है और न ही निर्माण स्थल को ढंका जा रहा है। परिणाम, इलाके में धूल के कण वायु प्रदूषण स्तर को बढ़ाने का काम कर रहे हैं।


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