आंखों में मां की सूरत व आंसू संग मालगाड़ी से जूझते हुए श्राद्ध देने घर पहुंच रहे CAF जवान
मां के निधन के बाद उनकों श्राद्ध देने के लिए रायपुर से मीरजापुर के लिए निकले सीएएफ के जवान संतोष यादव।
मीरजापुर [सतीश रघुवंशी]। अब आंखों में है तो सिर्फ मां की सूरत और आंसू की धारा। इसी सहारे कट रहा धान की ट्रकों व कोयले की मालगाड़ी में 1400 किमी का लंबा संघर्षपूर्ण सफर। इस विश्वव्यापी लाकडाउन ने तो मानों सीएएफ संतोष यादव का सब कुछ छिन लिया हो। राहों में ठोकरें खाते हुए ट्रक व मालगाड़ी चालकों के आगे हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते हुए चुनार के सीखड़ निवासी संतोष यादव तीन दिनों में 1100 किमी का सफर तय कर गुरुवार को सतना रेलवे स्टेशन पहुंचे। इसके बाद कुछ न सूझा तो सोचे कि शायद अपने जिले के सांसद व अन्य जनप्रतिनिधियों से गुहार काम आ जाए, लेकिन किसी की कान में उनकी गुहार नहीं गूंजी। सो वह मां को दो अजुरी पानी (श्राद्ध) देने के लिए सतना स्टेशन पर ही अगली मालगाड़ी के इंतजार में आंशूओं की धारा के बीच टकटकी लगाए रहे।
मीरजापुर जनपद के सीखड़ गांव निवासी छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के जवान संतोष यादव के लिए लॉकडाउन संघर्ष की एक ऐसी दास्तां बन गई जिसे लोग बरसों याद रखेंगे। बीते पांच अप्रैल को संतोष की मां राजकुमारी यादव की मृत्यु हो गई। बेटे को सूचना मिली तो मां के अंतिम दर्शन की चाहत हूक बनकर मन में उभरने लगी। ट्रेनें बंद, बसें बंद लेकिन जवान के जज्बे ने सैकड़ों मीलों का सफर टुकड़ों में तय करने की ठानी। पहले ट्रकों से फिर दर्जनभर मालगाडिय़ां बदलकर वे गुरुवार को सतना तक पहुंचे हैं। संतोष का कहना है कि यहां से मोटरसाइकिल भी मिल जाए तो वे चंद घंटों में घर पहुंच जाएंगे। चुनार के सीखड़ गांव निवासी सीएएफ (छत्तीसगढ़ आमर्ड फोर्स) जवान संतोष यादव पुत्र जयप्रकाश यादव सबसे बड़े बेटे हैं। बीते पांच अप्रैल को वाराणसी के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मां की मृत्यु हो गई। जब यह सूचना मिली तो वे पूरी रात अपनी बैरक में रोते रहे।
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में धनोरा कैंप की 15वीं बटालियन में तैनात संतोष को सशस्त्र बल के जवानों ने समझाया लेकिन एक बेटे के लिए मां के अंतिम दर्शन की चाहत के आगे किसी का बस नहीं चला। अधिकारियों से छुट्टी मांगी तो सभी ने कहा कि आखिर जाओगे कैसे? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि छुट्टी दीजिए, रास्ता तय कर लूंगा। संतोष ने बताया कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से उनका कैंप पांच सौ किमी दूर है। यह दूरी उन्होंने धान की कई ट्रकों पर बैठक कर किसी तरह पूरी की और रायपुर स्टेशन पहुंचे। यहां कोयला लदी मालगाड़ी के ड्राइवर से मिन्नत कर बैठे और बिलासपुर आए। फिर यहां कई घंटे मालगाड़ी का इंतजार किया और कटनी तक पहुंचे। बुधवार की रात करीब नौ बजे संतोष कटनी पहुंचे लेकिन उनका इंतजार बढ़ता गया। कोई मालगाड़ी नहीं मिली और गुरुवार को एक मालगाड़ी से वे सतना तक आए हैं। दैनिक जागरण से बात करते हुए संतोष ने कहा कि उन्होंने अपने जिले के कुछ जनप्रतिनिधियों से मदद मांगी लेकिन कोई मदद नहीं मिली। वे कहते हैं कि हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर ली है और अब हर हाल में घर पहुंचना है। उन्होंने उत्साह से कहा कि यहां से कोई बाइक भी मिल जाए तो वे मीरजापुर तक आसानी से पहुंच जाएंगे व मां के श्राद्ध में शामिल होंगे। फिलहाल वे मदद की आस लिए अपने हौसले के बल पर आगे का रास्ता तय कर रहे हैं।
माई के तबीयत खराब बा, अइबे ना बच्ची
मां के निधन से दो दिन पहले तीन अप्रैल को संतोष ने मां को फोन किया तो वह बोली, 'माई क तबीयत खराब बा, अइबे ना बच्ची। अब हम मरी जाबै तबै अइबे का। यह बताते हुए संतोष बिफर पड़ा, बोला- अब तो मेरी मां भी चली गई और हम उससे वादा किए थे कि लाकडाउन खत्म हो जाएगा तो जरूर मिलने आउंगा। लेकिन मां की बात सच निकली और वह हम सभी को छोड़कर चली गई। आखिर हमें लाकडाउन में ही जूझते हुए दो अजुरी पानी देने के लिए हर हाल में पहुंचना ही है।
भाई भी नहीं पहुंच पाया घर
सीआरपीएफ के जवान संतोष यादव ने बताया कि उनका छोटा भाई सुरेश यादव मुंबई में है। यदि वह आएगा भी तो 14 दिनों तक क्वारंटाइन रहना होगा और क्रियाकर्म में शामिल नहीं हो पाएगा। इसलिए संतोष ने उसे मुंबई में ही रुकने के लिए कहा और खुद ही घर आने की ठानी। संतोष कहते हैं कि वे मेडिकली फिट हैं और यूनिट से उन्हें सभी तरह के सर्टिफिकेट व कागज मिले हैं। उनकी बस एक ही इच्छा है कि वे जल्द से जल्द घर पहुंच जाएं।
परिवार के लोग बढ़ा रहे हौसला
संतोष के पिता जयप्रकाश यादव पत्नी की मृत्यु से गमगीन हैं लेकिन उनके चाचा ओमप्रकाश हौसला दे रहे हैं। संतोष के चाचा ओम प्रकाश लगातार उनसे संपर्क में हैं और आगे बढऩे की प्रेरणा भी दे रहे हैं। बहन भी भाई की सलामती व जल्द घर आने की उम्मीद में बार-बार फोन करती हैं।