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कोरोना की दवा 2-डीजी के मुख्य अविष्कारक डा. अनिल मिश्र के बलिया के घर में जश्न सा माहौल

कोरोना की दवा 2-डीजी के मुख्य अविष्कारक डा.अनिल मिश्र की उपलब्धि से बलिया निहाल है। सिकंदरपुर स्थित उनके मिश्रचक गांव के लोग भी गाैरन्वित महसूस कर रहे हैं। उनके घर पर जश्न का माहौल है। ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने वाले डा. अनिल की सादगी के लोग कायल हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 07:53 PM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 07:53 PM (IST)
कोरोना की दवा 2-डीजी के मुख्य अविष्कारक डा. अनिल मिश्र के बलिया के घर में जश्न सा माहौल
कोरोना की दवा 2-डीजी के मुख्य अविष्कारक डा.अनिल मिश्र की उपलब्धि से बलिया निहाल है।

बलिया, जेएनएन। कोरोना की दवा 2-डीजी के मुख्य अविष्कारक डा.अनिल मिश्र की उपलब्धि से बलिया निहाल है। सिकंदरपुर स्थित उनके मिश्रचक गांव के लोग भी गाैरन्वित महसूस कर रहे हैं। उनके घर पर जश्न का माहौल है। ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने वाले डा. अनिल की सादगी के लोग कायल हैं। वे घर, परिवार के साथ समाज व राष्ट्र के प्रति भी संवेदनशील रहते हैं। विषम परिस्थितियों में उन्होंने घर भी संभाला और कॅरियर की ऊंचाइयों को प्राप्त करते गए। पीएचडी करने के दौरान स्कालरशिप में मिलने वाले तीन हजार रुपये में वे दो हजार घर पर भेज देते थे।

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डा. अनिल पांच भाई व बहन हैं। वे दूसरे नंबर पर हैं। सबसे छोटे भाई सुधीर मिश्र शिक्षक हैं। वे बताते हैं कि भैया बचपन से ही बहुत चंचल स्वभाव के हैं। वे सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। आज भी खाने के बाद थाली स्वयं धोकर रखते हैं। साफ-सफाई को लेकर बेहद सजगता बरतते हुए दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। अनुशासन ही उनके जीवन का मूल मंत्र है।

सात सितंबर 1987 को परिवार पर हुआ वज्रपात

सात सितंबर 1987 का दिन डा. अनिल के परिवार के लिए असहनीय पीड़ादायक रहा। मझले भाई अजय मिश्र स्नान के बाद घर के बाहर बने मंदिर में पूजा करने जा रहे थे। तभी कपड़ा फैलाने वाले तार में करेंट प्रवाहित होने से वे उसकी चपेट में आ गए। इस पर पिता विजय शंकर मिश्र उन्हें बचाने पहुंचे। इसमें दोनों की जान चली गई। उस समय डा. अनिल काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान से पीएचडी कर रहे थे, जो 1988 में पूरी हुई। उन्हें स्कालरशिप में तीन हजार रुपये मिलते थे। इसमें से दो हजार वे घर पर भेज देते थे। हाईस्कूल तक की पढ़ाई उन्होंने सिकंदरपुर से ही की थी। इसके बाद देवरिया से बीएससी व गोरखपुर से एमएससी की डिग्री हासिल की।

मेरा बेटा शुरू से होनहार रहा

मेरा बेटा शुरू से होनहार था। वह पढ़ाई के प्रति हमेशा सजग रहता था। वह हमारे घर का सूरज है। उसने हम सभी का मान बढ़ाया है। मुझे बेटे पर गर्व है।

- सुशीला देवी, डा. अनिल की मां।


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