Buddha Purnima 2022 : भगवान बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए 2500 साल पहले साधना का बड़ा केंद्र था विंध्य क्षेत्र
Buddha Purnima 2022 भगवान बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए मीरजापुर क्षेत्र में 2500 साल पहले विंध्य का पूरा ही क्षेत्र साधना का बड़ा केंद्र था। इसके साक्ष्य सदियों के बाद आज भी विंध्य के क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं।
मीरजापुर [मिलन गुप्ता]। कुशीनगर, लुम्बिनी, बोधगया व सारनाथ के अलावा भगवान बुद्ध का मीरजापुर से भी सीधा जुड़ाव रहा है। आज से लगभग 2500 साल पहले भगवान व उनके अनुयायियों के लिए विंध्य क्षेत्र साधना का केंद्र हुआ करता था। हालांकि उस समय मीरजापुर अस्तित्व में नहीं था। यह क्षेत्र बुद्धकालीन सुम्सुमार गिरि का भग्ग गणराज्य के अंतर्गत आता था जिसमें वर्तमान सोनभद्र का भूभाग भी शामिल था। बुद्ध ने अशांत वातावरण में यहां से भी शांति की ज्योति जलाई और बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
केबीपीजी कालेज के प्राचीन इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. केएम सिंह का कहना है कि पालि बौद्ध साहित्य में वर्णित सुम्सुमार गिरि के भग्ग गणराज्य गंगा एवं सोन नदी के मध्य स्थित था। भग्ग (भर्ग-भर) गणराज्य की सीमाएं पश्चिम में कौशांबी एवं पूरब में सासाराम को स्पर्श करती थी। इस गणराज्य के राजनीतिक केंद्र कांतिपुरी थी। डा. राजबलि पांडेय कांतिपुरी की पहचान चरणाद्रि (चुनार) से करते हैं जबकि डा. केपी जायसवाल वर्तमान मीरजापुर नगर के पास गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित कंतित से करते हैं। प्रो. सिंह का मानना है कि चुनार क्षेत्र से बस्तियों एवं सभ्यता के अवशेष क्रम से नहीं मिलते हैं जबकि कंतित एवं उसके आसपास के क्षेत्र से पुरातात्विक अवशेष आदि बुद्ध के समय से क्रमवार मिलते हैं। अतएव राजनीतिक केंद्र कांतिपुरी ही रही होगी। इससे स्पष्ट होता है कि गणतंत्रीय राज्य विंध्य के मीरजापुर पठार (मीरजापुर-सोनभद्र) में स्थित था। इस क्षेत्र से शैव, शक्ति उपासना के साथ ही बौद्ध धर्म से संंबंधित मूर्तियां भी यत्र-तत्र बिखरी हुई आज भी मिलती हैं।
भगवान बुद्ध ने आठवां वर्षावास भेसकलावन में व्यतीत किया : बौद्ध काल के दौरान विंध्य का यह सोनांचल अपने भीषण वन के लिए प्रसिद्ध था। वनों से अाच्छादित शांत एवं रमणीय वनांचल बुद्ध एवं उनके अनुयायियों के लिए ध्यान-साधना के लिए सर्वथा अनुकूल थी। प्रो. सिंह के अनुसार भगवान बुद्ध का भग्ग गणराज्य से विशेष लगाव था। इस अंचल में बुद्ध ने प्रवास किया था। इसके अतिरिक्त अनेक स्थविरों ने भी भ्रमण किया, जिसके संदर्भ में बौद्ध साहित्य में प्रमाण मिलते हैं। बौद्ध साहित्य थेरगाथा तथा संयुक्त निकाय से ज्ञात होता है कि भगवान बुद्ध ने अपना आठवां वर्षावास भग्ग गणराज्य में स्थित भेसकलावन के मृगदाव में व्यतीत किया था, जहां नकुल पिता ने बुद्ध् से भेंट की थी। बुद्ध इस मृगदाव में भ्रमण काल में अक्सर ठहरते रहे। इसी भेसकलावन में बौद्ध स्थविर श्रीमांड ने प्रवज्या प्राप्त की थी। इसके अलावा बौद्ध स्थविर महामोग्ग्लन ने मार को पराजित कर ज्ञान-ग्रहण किया था। बौद्ध धम्म में वर्षावास का ज्यादा महत्व है। वर्षावास के तीन माह में भिक्षु एवं श्रमणेतर संघ विहार में रहकर बौद्ध धम्म की बारीकियों का अध्ययन मनन करते हैं। वर्षावास आषाढ़ पूर्णिमा के दिन शुरू होता है और आश्विनी पूर्णिमा को समाप्त होता है।
इन क्षेत्रों का भी बुद्ध ने किया भ्रमण : भगवान बुद्ध ने अपना पहला वर्षावास 527 ई.पू. सारनाथ के ऋषीपतन में किया था। विंध्याचल क्षेत्र में सुम्सुमार गिरि के अतिरिक्त सहजाती (यमुना के दक्षिणी तट पर स्थित भीटा), पारिलेय्यक वन, भद्दवती व चालिका में भगवान बुद्ध ने चारिका (भ्रमण) किया था। ये सभी विंध्य क्षेत्र के अंतर्गत आते थे जो वर्तमान में मीरजापुर व सोनभद्र का भूभाग है। विनय पिटक के चुल्लवग्ग से ज्ञात होता है कि वत्स नरेश उदयन के पुत्र राजकुमार बोधि सुम्सुमार गिरि के भग्ग गणराज्य में नवनिर्मित कोकनद प्रासाद में भगवान बुद्ध का स्वागत किया था। बुद्ध के समय ही उदयन ने भग्ग गणराज्य को अधीन किया था।
भगवान बुद्ध ने भग्ग गणराज्य से किया बौध धर्म का प्रचार : केबीपीजी कालेज के प्राचीन इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डा. इंदुभूषण द्विवेदी कहते हैं कि छठीं शताब्दी ई.पू. में द्वितीय नगरीकरण की प्रक्रिया चल रही थी। सर्वत्र मत्स्यन्याय की स्थिति विद्यमान थी। उसमें कोई भी राजतंत्र ऐसा नहीं था जो केंद्रीय शासन व्यवस्था को स्थापित कर सके। ऐसे में चारों तरफ अशांति फैली हुई थी। उस समय बुद्ध ने बौध धर्म का उपदेश देकर शांति व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया। डा. द्विवेदी का मानना है कि भेसकलावन संभवत: चुनार के दक्षिण में स्थित भिस्कुरी गांव ही रहा होगा।