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ददरी मेला स्‍थल नंदी ग्राम में 22 लाख का भैंसा बना आकर्षण का केंद्र, सजने लगा गदहों का बाजार

Dadari Fair in Ballia गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के लिए ऋषि मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है भृगु क्षेत्र का ददरी मेला। महर्षि भृगु ने सरयूू नदी की जलधारा को अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में मिलाया गया था।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 06:10 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 06:10 AM (IST)
ददरी मेला स्‍थल नंदी ग्राम में 22 लाख का भैंसा बना आकर्षण का केंद्र, सजने लगा गदहों का बाजार
ददरी मेले के ऐतिहासिक नंदी ग्राम में एक से बढ़कर एक पशु उतरने लगे है।

बलिया, जेएनएन। गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के लिए ऋषि मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है भृगु क्षेत्र का ददरी मेला। महर्षि भृगु ने सरयूू नदी की जलधारा को अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में मिलाया गया था। इन्हीं के नाम पर ऐतिहासिक ददरी मेले का आयोजन हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद से दी शुरू हो जाता है। प्राचीन मेले की परम्परा के मुताबिक पहले नन्दी ग्राम मेले का आयोजन होता है। इसके बाद मीना बाजार कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद शुरू हो जाता है। मुगल सम्राट अकबर ने प्राचीन और पौराणिक मेले में मनोरंजन के लिए मीना बाजार शुरु कराया था।

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मानाा जाता है कि सन्1302 में बख्तियार खिलजी ने अंगदेश (वर्तमान बिहार) को काटकर वर्तमान बलिया बनाया। यह भृगु क्षेत्र अकबर और औरंगजेब के शासनकाल 1707 तक ऐसे ही उनके जागीरदार लोगों के अधीन रहा। मेले की व्यवस्था संत लोग ही करते रहे। 1739 से 1764 तक इसे काशी के राजा बलवन्त सिंह का संरक्षण मिला। 1798 में जब गाजीपुर जिला बनाया गया तब बलिया तहसील बनाया गया। उसी समय से कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और ददरी मेले का प्रबन्ध गाजीपुर के जिलाधिश के निर्देशन में परगनाधिकारी बलिया ने किया।

एक नवम्बर 1879 में जब बलिया को जिला बनाया गया तब से बलिया के जिलाधिकारी के निर्देशन में इस मेले की समस्त शासकीय व्यवस्था जिला प्रशासन व नगर पालिका बलिया द्वारा की जाने लगी। संतों का प्रवचन मेले की प्रमुख पहचान थी जिसे प्रशासनिक उदासीनता से बन्द कर दिया गया था। सन् 2000 में संतों के प्रयास से धर्म परायण धार्मिक सत्‌संग, प्रवचन और गंगा आरती शुरू की गई जिससे ऐतिहासिक ददरी मेला एक बार फिर अपने स्वरूप में लौटने लगा। मेले के पहले दिन की पूर्व संध्या पर गंगाघाट पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन भव्य आरती की जाती है। गंगा-तमसा के तट पर पूरे कार्तिक मास संत कल्पवास करते है।

मेले में आने लगे कीमती पशु

ददरी मेले के ऐतिहासिक नंदी ग्राम में एक से बढ़कर एक पशु उतरने लगे है। गाय, भैंस, बछड़ों के अलावा गदहों का भी मेला सजने लगा है। इस समय  22 लाख रुपये का भैंसा आकर्षण केंद्र बना हुआ है। मुर्रा नस्ल का यह भैंसा काफी मजबूत है। मेले में मनियर सुल्तानपुर के हृदयानंद यादव अपने इस भैंसे के साथ मेले में डेरा डाले हुए है। इसके साथ एक तीन लाख की भैंस भी है। नगर पालिका परिषद के ईओ दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने भी इस भैंस को देखा। साथ ही इसके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी ली। पशु मालिक ने बताया कि इस भैंसे को मक्के की भात, चोकर एवं भूसा खिलाते हैं, हरा चारा देते है। यह उत्तम मुर्रा नस्ल का है और इससे पैदा होनेे वाले बच्चे काफी मजबूत होते है। इसकी मांग  रोहतक, हरियाणा से आई थी। 


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