'सेवासदन' उपन्यास के सौ वर्ष पूरे, मुंशी प्रेमचंद की काशी ने उनकी कृति पर किया मंथन
मुंशी प्रेमचंद की लमही ने अनोखे ढंग से उनकी कृति को रविवार को सम्मान दिया। दरअसल मुंशी प्रेमचंद की कृति सेवासदन उनका चर्चित उपन्यास है जिसके सौ वर्ष पूरे हो गए।
वाराणसी, जेएनएन। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लमही ने अनोखे ढंग से उनकी कृति को रविवार को सम्मान दिया। दरअसल मुंशी प्रेमचंद की कृति सेवासदन उनका चर्चित उपन्यास है जिसके सौ वर्ष पूरे हो गए। मुंशी जी ने सेवासदन उपन्यास वर्ष 1916 में उर्दू भाषा में लिखा था। बाद में सन 1919 में उन्होंने इसका हिन्दी अनुवाद स्वयं ही किया था। उनकी कृति उर्दू में बाज़ारे-हुस्न नाम से इससे पूर्व मौजूद थी मगर चर्चा में आने के बाद उनहोंने इसका हिंदी अनुवाद भी किया।
सेवासदन का सार : मुंशी जी की कृति सेवासदन में नारी जीवन की चुनौतियों संग धर्माचार्यों, धनपति, समाज सुधारकों सहित तमाम उस समय के सामाजिक विकृतियों का चित्रण किया गया है। कथानक की नायिका सुमन अतिरिक्त सुखभोग की आस में सबकुछ लुटाने के बाद सामाजिक हालातों की स्थिति समझ पाती है तब तक बहुत देर होने की वजह से बदलावों के प्रति नए सिरे से नजरिया बदल देती है। वहीं उसका पति साधु वेश में अपने कृत्यों का प्रायश्चित करता है। मुंशी जी के इस चर्चित उपन्यास पर कुछ विदेशी लेखकों का भी प्रभाव माना जाता रहा है।
काशी में सेवासदन पर आयोजन : प्रेमचंद के उपन्यास सेवा सदन के 100 वर्ष पूरे होंने के उपलक्ष्य में मुंशी प्रेमचंद मार्गदर्शन केंद्र लमही में राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। कहा कि प्रेमचंद की लेखनी बहुत संतुलित थी। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज का वास्तविक चित्रण किया है। अपने उपन्यास सेवा सदन के माध्यम से बताया कि नारी क्या है, उसकी समस्याएं क्या है। सेवा सदन के 100 वर्ष नारी चेतना की अभिव्यक्ति विषयक संगोष्ठी का आयोजन तीन सत्रों में किया गया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ. इंदीवर, द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ. बाबूराम त्रिपाठी व समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. सदानंद सिंह ने की।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिंदुस्तान अकेडमी प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह रहे। कार्यक्रम में डॉ. नीरज खरे, डॉ. ज्योति सिंह, डॉ. मनोज कुमार सिंह, डॉ. हरेंद्र नारायण सिंह, प्रो. शांति स्वरूप सिंह, डॉ. ज्योति सिंह आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राम सुधार सिंह ने किया।