रसोईघर में त्योहार की परंपरा पर आधुनिकता भारी
अब वह दौर गया। जब धनतेरस पर परंपरागत बर्तन गर्म रहता था। जमाना माड्यूलर किचेन का है। जिसमें आटा चक्की रोटी मेकर मिक्सर ग्राइंडर से लेकर फूड प्रोसेसर की जरूरत है। गैस बचाने के लिए नॉन स्टिक बर्तन और इंडक्शन चूल्हे पहली पसंद हैं। आधुनिक किचेन में इस्तेमाल होने वाले इक्यूपमेंट के आगे परंपरागत रसोई के बर्तन कहां ठहरते हैं। ऐसे में धनतेरस पर अब पारंपरिक बर्तनों की मांग बस कामचलाऊ रह गई है। इसके अलावा बाजार पर छाई आर्थिक मंदी की धुंध ने भी विक्रेता और क्रेता का मूड अस्थायी कर रखा है।
जागरण संवाददाता, उन्नाव : अब वह दौर गया जब धनतेरस पर परंपरागत बर्तन बाजार गर्म रहता था। अब जमाना माड्यूलर किचेन का है, जिसमें आटा चक्की, रोटी मेकर, मिक्सर ग्राइंडर से लेकर फूड प्रोसेसर की जरूरत है। गैस बचाने के लिए नॉनस्टिक बर्तन और इंडक्शन चूल्हे पहली पसंद हैं। आधुनिक किचेन में इस्तेमाल होने वाले इक्यूपमेंट के आगे परंपरागत रसोई के बर्तन कहां ठहरते हैं। ऐसे में धनतेरस पर अब पारंपरिक बर्तनों की मांग बस कामचलाऊ रह गई है। इसके अलावा बाजार पर छाई आर्थिक मंदी की धुंध ने भी विक्रेता और क्रेता का मूड अस्थायी कर रखा है।
बर्तन की दुकानदारी में वह रस नहीं रहा। जो कभी नवरात्र, करवा और धनतेरस के दौरान देखने को मिलता था। ग्राहक पहले तो बर्तन की खरीद में महज खानापूरी करते हुए कहीं स्टील के गिलास, कटोरी चम्मच खरीदकर परंपरा की इति करना चाहता है। यदि ज्यादा जरूरत हुई तो किचन में उन मशीनों या उपकरणों को लेना चाहता है तो उनका सहयोग करे और काम में समय बचाए। अधिकतर लोग धनतेरस के दिन बर्तन बाजारों का रुख महज इसीलिए करते हैं कि काम में सहायता करने वाले सामान ले लिए जाएं। इन ग्राहकों के बीच ऐसे भी हैं जो आज भी पुरानी मान्यता व परंपरा को लेकर पीतल, तांबा आदि की खरीद करते हैं लेकिन वह भी तांबे का लोटा, पीतल का भगवान का सिंहासन आदि लेकर ही चल पड़ते हैं। दुकानदारों का कहना है कि एक समय था जब धनतेरस के दिन बाजार में बर्तन खरीददारों के बीच कम से 30 फीसदी लोग कस्कुट, फूल, तांबा व पीतल आदि के ही बर्तन लेते थे। अब इनकी मौजूदगी महज दो फीसदी ही रह गई है।
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चिकित्सकों की सलाह पर लौट रहे खरीदार
- बर्तन व्यापारी शौनक उर्फ लवी गुप्ता बताते हैं कि पीतल तांबा यदि बाजार में मांगा जा रहा है तो इसके पीछे एक बड़ा कारण डॉक्टरों की सलाह है। वह मरीजों को इन बर्तनों में खाना बनाने व पानी पीने आदि की सलाह देते हैं। साथ ही एलम्युनियम व स्टील के बरतनों की कमी बताते हैं। जिससे ग्राहक अपनी सेहत को ध्यान में रखकर पीतल, तांबा, कस्कुट आदि धातुओं के बर्तनों को खरीद रहा है।
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दुकान में सामान भरते लग रहा डर
- बर्तन व्यापारी बताते हैं कि धनतेरस को ध्यान में रखते हुए हम लोग 10 लाख रुपए तक का माल दुकानों में भरवा लेते थे। इस बार ऐसा कुछ नही है। उम्मीद कम है कि भरा गया माल ग्राहकों की डिमांड से कम पड़ेगा।
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त्योहार से एक महीने पहले ही आने लगती थी पैकेट बनाने की डिमांड
- बाजार की चाल ने ग्राहक और दुकानदार दोनों की सेहत खराब कर रखी है। लोग पहले फोन करके बर्तनों का पैकेट बनवा लेते थे। इस प्रकार धनतेरस तक कम से कम एक हजार पैकेट बन जाते थे। इस बार अब तक महज दो पैकेट की ही डिमाण्ड आइ है।
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समय की बचत सबसे बड़ा सहयोग
- किचन में काम करने के दौरान वह सामान जरूरी है जो समय की बचत करे। घर के तमाम काम ऐसे हैं। जो कि किचन के बीच समय निकालकर करने पड़ते हैं। ऐसे मे यदि किचन के अंदर ऐसी मशीन हो जो एक व्यक्ति की तरह काम में मदद करे तो इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है।
- ममता सिंह, गृहणी
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परंपरा और फैशन का रखना पड़ता है ध्यान
- त्योहार की पंरपरा यदि जरूरी है तो किचन की शोभा के लिए फैशन का भी ध्यान रखना पड़ता है। इसलिए रसोईघर में पारंपरिक बर्तनों की मौजूदगी के साथ अन्य सहयोगी मशीनें जिनमें, मिक्सी, आटा मशीन, इंडक्शन, इंडक्शन बर्तन, माइक्रोवेव, सैंडविच मशीन, ब्रेड टोस्टर आदि की भी बेहद आवश्यकता है।
- राखी मिश्रा, गृहणी