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रामायण काल की थाती संजोए है परियर

अनिल अवस्थी उन्नाव गंगा तट पर परियर और बिठूर क्षेत्र रामायण काल की कई थाती संजोए हैं। यहा

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 11:42 PM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 07:27 AM (IST)
रामायण काल की थाती संजोए है परियर
रामायण काल की थाती संजोए है परियर

अनिल अवस्थी, उन्नाव:

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गंगा तट पर परियर और बिठूर क्षेत्र रामायण काल की कई थाती संजोए हैं। यहां कई प्राचीन मंदिर आकर्षण का केंद्र हैं, जबकि 14 कोसी परिक्रमा भी होती है। मान्यता है कि माता जानकी यहीं धरती में समाई थीं।

परियर में भूमेश्वर महादेव मंदिर, जानकी कुंड, बलखंडेश्वर महादेव रामायण काल के माने जाते हैं। भिनकीपुर धाम के महंत स्वामी रामस्वरूप ब्रह्माचारी बताते हैं, बालू के शिवलिग वाले भूमेश्वर मंदिर की स्थापना लव और कुश से युद्ध करने से पहले भरत ने की थी। यहीं से प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल दशमी को बिठूर की 14 कोसी परिक्रमा शुरू होती है।

खोदाई में मिल चुके अवशेष

पूर्व विधायक व जानकी कुंड के पूर्व प्रबंधक बजरंगबली ब्रह्माचारी ने विधानसभा में परियर को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग भी उठाई थी। वर्ष 1967 से 1968 के बीच महारण झील में खोदाई के दौरान अष्टधातु के बाण, ढाल व दूसरे अस्त्र-शस्त्र के अवशेष मिले थे, जो जानकी मंदिर में सुरिक्षत हैं। उत्तर प्रदेश शासन ने परियर को पर्यटन स्थल घोषित करने के साथ श्रीराम सर्किट योजना में भी शामिल किया है।

कण-कण में धरती माता व सीता का अमिट प्रेम

परियर की धरती पर मां सीता का पुत्र प्रेम और धरती मां का पुत्री प्रेम कण-कण में दिखता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, महारण झील के पास अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोके जाने के बाद हुए युद्ध मे अयोध्या की सेना और भाइयों के परास्त होने पर श्रीराम लव और कुश के सामने रणभूमि परियर में आए थे। श्रीराम ने जब मां सीता से अयोध्या चलने का आग्रह किया, तब उनकी तीन बार करुण पुकार पर धरती मां स्वर्ण सिंहासन में उन्हें साथ ले गई थीं। उसी भू-वास स्थल के पास एक कुआं है, जिसे जानकी कुंड मानकर भक्त पूजा करते हैं। मां सीता अधिष्ठात्री देवी, जानकी जयंती पर लगता मेला

परियर स्थित जानकी मंदिर में प्रतिवर्ष मेला लगता है। जानकी कुंड परियर ट्रस्ट के प्रबंधक ठठिया वाले गुरु जी बताते हैं कि मंदिर में श्रीराम की कोई मूर्ति नहीं है। त्रेतायुगीन सिद्ध शक्तिपीठ मंदिर में मां सीता ही अधिष्ठात्री देवी के रूप में स्थापित हैं। जानकी कुंड से स्वत: फूटी जलधार से यह मूर्ति निकली थी। पौराणिक नाम था परिहरि

त्रेतायुग में बिठूर ही महर्षि वाल्मीकि के आश्रम का केंद्र था। उसे परिहरि के रूप में प्रसिद्धि मिली। लव-कुश की शिक्षा-दीक्षा के बाद क्षेत्र का खासा महत्व हो गया। यही परिहरि बाद में परियर कहा जाने लगा।


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