फिर लौटा दोना-पत्तल व मिट्टी के बने कुल्हड़ों का दौर
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सुलतानपुर : पॉलीथिन व प्लास्टिक से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान के मद्देनरजर सुप्रीम कोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल(एनजीटी) के आदेशों पर अमल करते हुए सरकार ने भले ही कानून बनाया लेकिन उसका कड़ाई से पालन होता नहीं दिख रहा। इसके बावजूद स्वयं जागरूक होकर नागरिकों ने पर्यावरण की ¨चताओं को समझते हुए पुराने पारंपरिक तरीकों की ओर लौटने लगे हैं। लिहाजा एक बार फिर हरे-हरे पत्तों के बने दोना-पत्तल के अलावा मिट्टी के कुल्हड़ों का दौर वापस आने लगा है। लिहाजा विभिन्न भोजों से लेकर चाट, समोसे की दुकानों तक अब मिट्टी के बने कुल्हड़ व हरे पत्तों के बने दोने-पत्तल दिखने लगे हैं। यह आम लोगों को आकर्षित भी कर रहा है। एक को देखकर दूसरे दुकानदार व लोग भी अपने यहां इन्हीं पारंपरिक वस्तुओं के इस्तेमाल पर जोर देने लगे हैं।
इससे पूर्व शादी-विवाह व अन्य आयोजनों से लेकर विभिन्न जलपान की दुकानों तक प्लास्टिक व फाइबर के बने चाय के कप, गिलास व दोना-पत्तल ही हावी हो गए थे। इससे कुम्हारों के अलावा दोने-पत्तल का व्यवसाय करने वालों का भी कारोबार चौपट हो गया था। हालत यह हो गई कि ऐसे व्यवसायियों को अपना परिवार पालना मुश्किल हो गया। तब उन्होंने अपना कोई न कोई दूसरा व्यवसाय शुरू कल लिया। मोतिगरपुर कस्बे में संतोष मोदनवाल की चाय की दुकान पर मिट्टी के कुल्हड़ व पत्ते के बने दोने में चाय व समोसे मिलते दिखे। वहीं सियाराम मिष्ठान्न भंडार पर भी मिट्टी का कुल्हड़ दिखा, इंटरसिटी रेस्टोरेंट पर शीशे के गिलास का अधिक उपयोग होता पाया गया। पांडेयबाबा बाजार में विजय टी सेंटर, भारत चाय सेंटर, मुन्नीलाल चाय की दुकान आदि जगहों पर लोग मिट्टी के बर्तन व पत्ते के दोने में चाय नाश्ता करते रहे तथा लोग इस बात की प्रशंसा भी कर रहे हैं। शाहपुर लपटा निवासी देवता शुक्ला कहते हैं कि पहले के समय में लोग अधिक से अधिक मिट्टी के बर्तन व पत्ते का उपयोग करते थे, जिससे प्रदूषण से नहीं होता था। अब इन्हीं चीजों का प्रयोग करना चाहिए। किसान संजय वर्मा कहते हैं कि प्लास्टिक के बर्तन देशी खाद में मिलकर खेतों में चले जाते थे, वह बहुत नुकसान करते थे। दोने पत्तल व मिट्टी के बर्तनों के उपयोग से खेतों में उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी। प्लास्टिक है सेहत का दुश्मन
मनुष्य हो या पशु-पक्षी अथवा पेड़-पौधे.यह प्लास्टिक व पालीथीन सभी की सेहत के लिए हानिकारक है। प्लास्टिक की थैलियों में फेंके हुए हरी सब्जियों के छिल्के व निष्प्रयोज्य खाद्य सामग्री आदि खाने से पशुओं की आंत व आहारनाल रोगग्रस्त हो जाती है। जमीन में पड़े पालीथीन व प्लास्टिक मिट्टी का रंध्र बंद कर देता है तथा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया नहीं होती तथा जमीन अनुपजाऊ होने लगती है। वहीं पौधों की जड़ों में प्लास्टिक के पहुंचने से पेड़ पौधे भी रोगों से ग्रसित होकर सूख रहे हैं। इसलिए लोगों को प्लास्टिक प्रयोग से तौबा करना होगा।