अंतरजनपदीय स्तर पर खैर की हो रही थी तस्करी
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सुलतानपुर : थाना परिसर से सटी प्लाई फैक्ट्री से गुरुवार को बरामद 150 ¨क्वटल से अधिक प्रतिबंधित खैर (कत्था) की लकड़ी के स्रोत का पता भले ही अब तक उत्तरदायी विभाग नहीं लगा पाया हो, लेकिन यहां से अंतरजनपदीय स्तर पर प्रतिबंधित खैर व अन्य लकड़ी की तस्करी करने के संकेत मिले हैं। सूत्रों के अनुसार अक्सर रात के वक्त सामान्य लकड़ियों के बीच में रखकर इसे दूसरे जनपदों में पहुंचाया जा रहा था। इस तस्करी में कई स्थानीय अधिकारियों द्वारा मदद किए जाने की भी आशंका है। क्योंकि बगैर संरक्षण के लगातार कई वर्षों से इतने बड़े पैमाने पर तस्करी को अंजाम देना संभव नहीं था। मामला खुलने के बाद अब इसकी तह में जाने के बजाए जिम्मेदार अधिकारी इसे दबाने में जुटे हैं। हालत यह है कि लकड़ी बरामदगी के तीन दिन बाद भी इसका सही वजन व कीमत न तो पुलिस बता पाई है और न ही वन विभाग के लोग। शनिवार को इसकी कीमत तय करने के लिए लखनऊ से टीम आने की बात की जा रही थी, लेकिन वह भी नहीं आए।
गोसाईगंज थाने से चंद कदम दूर स्थित इस प्लाई फैक्ट्री को वन विभाग ने इसके मालिक के आवेदन पर एक वर्ष पूर्व ही बरेली स्थानांतरित कर दिया था। कागजों पर स्थानांतरित होने के बावजूद अधिकारियों की नाक के नीचे यह अवैध फैक्ट्री चलती रही और इसी आड़ में प्रतिबंधित लकड़ी की तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती रही। तस्करी के तार कई जिलों से जुड़ने के संकेत मिल रहे हैं। गुरुवार की रात इस फैक्ट्री पर छापामारी के बाद यह खेल सामने आ गया।
एक दूसरे पर दोष मढ़ रहे अधिकारी
डीएफओ एसएस पांडेय ने कहा कि तराई के जिलों बहराइच व लखीमपुर में खैर के वृक्षों की अधिकता है। प्रथम दृष्टया बरामद लकड़ी इन्हीं जिलों से आई है। ट्रांसपोर्टेशन के दौरान पुलिस की सक्रियता न होने से लकड़ी यहां तक पहुंची। इसका मूल्य और स्त्रोत के लिए विशेषज्ञों का दल गठित किया गया है। वहीं थानाध्यक्ष गोसाईगंज कुंवर बहादुर ¨सह ने कहा कि शुक्रवार को दबिश देकर फैक्ट्री मालिक वंशबहादुर वर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया है। यह वन विभाग की जिम्मेदारी है कि लकड़ी कहां से आई और कहां इसे भेजा जा रहा था, इसकी पड़ताल करे।