'जे का बनै का अहै परधान, उ कभौ नाय देखान'
गांव की सरकार के गठन को लेकर गहमा-गहमी बढ़ती जा
सुलतानपुर : गांव की सरकार के गठन को लेकर गहमा-गहमी बढ़ती जा रही है। जहां देखों वहीं मुखिया और उसके किरदार के साथ अपनी व आसपास की समस्याओं पर चर्चा दिख रही है। पंचायत चुनाव की हकीकत देखने जागरण टीम निकली तो दियरा-लम्भुआ की जर्जर सड़क के पटरी पर पेड़ों की छांव में बैठी कई महिलाओं की बातें सुन हम ठिठक गए। बात चुनावी माहौल की हुई तो अखबार वाला व कैमरा देख कुछ सरमाते, कुछ सकुचाते आदी आबादी की पूरी बात जुंबान पर आ ही गई, जे का बनै का अहै परधान, उ कभौ नाय देखान'।
गोमती नदी के किनारे बसे इस गांव की आबादी करीब साढ़े तीन हजार है। भवनपुर और चौपरायी दो पुरवों को मिलाकर वोटर करीब 1800 है। प्रधान का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है। इसे संयोग कहे या सच्चाई कि जिन महिलाओं से जागरण रूबरू था। वे भी अन्य पिछड़ी जाति की ही थीं। बात चली तो केशा बोली यह गांव मा न पंचायत घर बाय, न बरात घर। अपने आपन कै बात होत बाय, सबकै भला कैसे होये केहू नाय जानत। मिथलेश ने कहा अब ई जान लेव कि सरकार प्रधान मेहरारू बनावा चाहत बाय, लेकिन जे वोट मा खड़ी है, वे सब देखाय नहीं पड़ी। मनसेधुए प्रचार करत अहैं, फिर ओनहीं करिहैं परधानी। सुनीता और प्रभावती ने कहा हींया तो जौन कहा तौन कई देह का वादा करत अहैं, बस जीताए दियो।
राजकुमारी व सीमा ने कहा केहू गांव की भलाई और विकास कै चर्चा नहीं करत। बस नलका कालोनी कै चर्चा सुनात अहैं। गायत्री बोलीं उहौ कमजोरै का नहीं मिलत, जेकरे सब कुछ बाय वहीं कै पूंछ बाए, वहीं का लाभ मिले। तभी उम्रदराज केवला व हीतावती वहां आ गई। और बोली जौने दिन मेहरारूअन (आधी आबादी) अपने वोट कै कीमत जनीहैं एक साथे वोट करियेहैं वहीं दिन से पूरी हमहूं सबका पूरा सम्मान और ऊंचा दर्जा मिले लागे। गंवई समाज में परिवर्तन की इस कसक को सुन देख हम भौचक रह गए।