योजनाओं की भरमार, फिर भी नहीं मिल रहा उपचार
सुलतानपुर : तमाम योजनाएं हैं और पर्याप्त बजट भी। जरूरी संसाधन भी जुटा लिए गए हैं, फिर भी जिले में चि
सुलतानपुर : तमाम योजनाएं हैं और पर्याप्त बजट भी। जरूरी संसाधन भी जुटा लिए गए हैं, फिर भी जिले में चिकित्सा व्यवस्था मुकम्मल नहीं हो पा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह जिम्मेदारों में इच्छाशक्ति की कमी है। जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों की उदासीनता के चलते सरकारी अस्पतालों में मैनपॉवर की किल्लत दूर नहीं हो रही है, जिससे उन्नत किस्म के जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरण बेकार पड़े हैं। जिला अस्पताल व सीएचसी-पीएचसी पर दवा-वैक्सीन का भी टोटा है। आपातकालीन एंबुलेंस सेवा भी खस्ताहाल हो गई है। जिलेवासियों को उच्च चिकित्सा के लिए अभी भी महानगरों के संस्थानों का सहारा लेना पड़ रहा है। ----------------- 15 माह से डॉक्टर का इंतजार कर रहे वेंटिलेटर
जिला अस्पताल की न्यू इमरजेंसी विग में उच्च चिकित्सा संस्थानों जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए सांसद निधि से 55 चिकित्सा उपकरण खरीदे गए थे। इनमें चार वेंटिलेटर भी शामिल थे। 20 जनवरी 2018 से ये अत्याधुनिक उपकरण निष्क्रिय पड़े हैं। 15 माह बीतने को हैं, अभी तक इन्हें सक्रिय नहीं किया जा सका। गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को लखनऊ रेफर कर दिया जाता है।
----------------- ट्रामा सेंटर का जिलेवासियों को नहीं मिल रहा लाभ
अमहट में सीएमओ दफ्तर के बगल साल 2015 में तकरीबन सवा करोड़ रुपये की लागत से मिनी ट्रामा सेंटर की स्थापना की गई थी। इस अस्पताल में सड़क हादसों के शिकार लोगों को त्वरित व बेहतर चिकित्सा मुहैया कराना शासन का मुख्य उद्देश्य था, मगर ऐसा नहीं हो सका। उच्च चिकित्सा संस्थानों जैसी सुविधाओं से लैस ट्रामा में आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं अभी तक शुरू नहीं की जा सकी हैं। जिला अस्पताल प्रशासन का कहना है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों व तकनीकी स्टाफ की कमी ट्रामा सेंटर के संचालन में सबसे बड़ी बाधा है।
-------------------- मरीजों को रेफर कर निभाई जा रही जिम्मेदारी
जिला अस्पताल की इमरजेंसी सेवा में तकरीबन 90 मरीज रोज भर्ती किए जाते हैं। इनमें से अधिकतर की हालत गंभीर रहती है। अस्पताल रिकार्ड के मुताबिक कि रोजाना औसतन 10 मरीज हायर मेडिकल सेंटर रेफर किए जाते हैं। इनमें से ज्यादातर हादसों के शिकार होते हैं, इनका सिर्फ प्राथमिक उपचार किया जाता है। लखनऊ पहुंचने से पहले रास्ते में ही कई घायलों की मौत हो जाती है।
--------------------- 100 बेड के जिला स्तरीय अस्पताल में नहीं हो रहा इलाज
गांवों में रहने वाले लोगों को उनके घर के पास ही जिला स्तरीय चिकित्सा मुहैया कराने के लिए जयसिंहपुर तहसील के बिरसिंहपुर में 100 बेड की क्षमता वाला अस्पताल बनाया गया है। गत फरवरी में ही इसका संचालन शुरू करने का दावा किया गया था, जो फेल रहा। चिकित्सकों के अभाव में स्वास्थ्य विभाग अस्पताल का शुभारंभ नहीं कर सका। लिहाजा क्षेत्र की करीब पांच लाख आबादी इलाज के लिए जिला अस्पताल पर निर्भर है।
------------------- बेकार साबित हो रही एमसीएच विग
जिला महिला अस्पताल में 17.42 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित 100 शैय्या युक्त महिला बाल स्वास्थ्य केंद्र (न्यू एमसीएच विग) बेकार साबित हो रहा है। 24 अप्रैल 2018 को सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसका लोकार्पण किया था, एक वर्ष बीतने को हैं अभी तक महिला अस्पताल पूरी तरह से इसमें शिफ्ट नहीं हो सका। सांसद निधि के तीन करोड़ रुपये से खरीदे गए अत्याधुनिक जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरण धूल फांक रहे हैं।
------------------ जिले की चिकित्सा व्यवस्था पर एक नजर जिला पुरुष अस्पताल- 01, क्षमता- 226 बेड
जिला महिला अस्पताल- 01, क्षमता- 82 बेड
मिनी ट्रामा सेंटर- 01, क्षमता- 06 बेड
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र- 42
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र- 14
एएनएम सेंटर- 243
चिकित्सकों की संख्या- पद-215, तैनाती- 148
एंबुलेंस- 108 सेवा- 23, 102 सेवा- 39, एएलएस सेवा- 04 ------------------
स्वास्थ्य सेवाओं के सु²ढ़ीकरण की जरूरत है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की जिले में भारी कमी है। सभी सीएचसी पर गैर विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती है। सीमित संसाधनों व मैनपॉवर में बेहतर सेवा देने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं।
-डॉ. सीबीएन त्रिपाठी, सीएमओ।