माटी है अनमोल, ये समझें इसका मोल
सुलतानपुर तेरी मिट्टी में मिल जावां गुल बनकर मैं खिल जावां इतनी सी है दिल की आरजू । तेर
सुलतानपुर : तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनकर मैं खिल जावां, इतनी सी है दिल की आरजू । तेरी नदियों में बह जावां, तेरे खेते में लहरावां, इतनी सी है दिल की आरजू .. केसरी फिल्म का यह गीत उन प्रवासियों पर सटीक बैठ रहा है जो दशकों पहले अपनी माटी को दूसरे के हाथ सौंपकर बेहतर भविष्य की कामना लिए दूसरे प्रदेश गए थे। कोरोना संक्रमण काल में जब परिस्थितियां बदली तो वह फिर वापस लौट आए और खेतों को वापस लेकर खुद ही फसल उगाने की तैयारी में जुट गए है। वही माटी आज उनके लिए अनमोल बन गई है और इसी के रास्ते व आíथक रूप से मजबूत बनने की ओर कदम बढ़ाया है।
भदैंया विकास खंड के अभियाखुर्द निवासी प्रताप नारायण पांडेय दो दशक पहले गांव के ही अरविद पांडेय को अधिया (बटाई) पर खेत सौंपकर मायानगरी मुंबई में जाकर बस गए थे। वहां टूर और ट्रैवल कंपनी में बतौर एजेंट नौकरी की। इस बार होली के अवकाश पर घर आए और लॉकडाउन के दौरान गांव में ही फंस गए। समयावधि बढ़ने से मन बदल गया और वापस जाने की योजना ठंडे बस्ते में डालकर अपना खेत वापस ले लिया। अब वह अपनी मेहनत से उसमें धान की फसल तैयार करने की ठान ली है। इसी गांव के दयानंद तिवारी आधा जीवन मुंबई में टैक्सी चलाकर बिता दिए। अब घर लौटे हैं तो अपना खेत वापस लेकर धान की फसल लगाने को पानी भर रहे हैं। इसी विकास खंड के मिश्रपुर पुरैना के अहिरन पुरवा के रामबली यादव दशक भर से गुजरात के नौसारी में लघु उद्योग पपड़ बनाने की फैक्ट्री लगाकर कमाई कर रहे थे। कोरोना में जब परिस्थितियां बदलीं तो गांव लौटे और अपनी खेती में फिर से पुराना अनुभव लगा दस बीघा खरबूजे की खेती शुरू की है। रामबली कहते है कि खेती को आधार बन खुद आíथक उन्नति की ओर बढ़ेंगे।