Move to Jagran APP

टाप बाक्स-हम आज अपने पीछे. प्यार का जहां बसा के चले

सुलतानपुर : आसमां के नीचे, हम आज अपने पीछे, प्यार का जहां बसा के चले/ कदम के निशां बनाके

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 May 2018 11:02 PM (IST)Updated: Wed, 23 May 2018 11:02 PM (IST)
टाप बाक्स-हम आज अपने पीछे. प्यार का जहां बसा के चले
टाप बाक्स-हम आज अपने पीछे. प्यार का जहां बसा के चले

सुलतानपुर : आसमां के नीचे, हम आज अपने पीछे, प्यार का जहां बसा के चले/ कदम के निशां बनाके चले। सचिनदेव वर्मन के सुरों से सजे ज्वैलथीप के इस मशहूर गीत के रचयिता विद्रोही तेवर के रोमांटिक शायर मजरूह सुलतानपुरी की 24 मई को 18 वीं बरसी है। स्व.मजरूह ने करीब पांच दशकों तक बॉलीवुड में एकछत्र राज किया। युवा अवस्था में हकीमी से अपना कॅरियर शुरू करने वाले इस अदीब को शेर-ओ-शायरी व बॉलीवुड का ग्लैमर मुंबई खींच ले गया। और फिर देखते ही देखते वे असरार हुसैन खां ने कब मजरूह सुलतानपुरी के नाम से मशहूर हो गए.कुछ पता ही नहीं चला।

loksabha election banner

सुलतानपुर जिला मुख्यालय से महज बारह किमी के फासले पर स्थित एक छोटा सा गांव है गजेहडी़। इसी माटी की उपज मजरूह के वालिद ब्रिटिश हुकूमत के दौर में पुलिस कांस्टेबिल थे। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे मजरूह की पढ़ाई-लिखाई आजमगढ़, अलीगढ़ आदि शहरों में हुई। पिता को भी ये इल्म नहीं था कि उनका बेटा शेरो शायरी की दुनिया में नाम करेगा। सो उन्होंने सुलतानपुर शहर में उनके लिए हकीमी का एक दवाखाना खोल दिया। लेकिन उनका मन नहीं लगा। उर्दू अदब और शेरो शायरी में तल्लीन रहने वाली वामपंथी विचारधारा से प्रभावित मजरूह कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में हिस्सा लेने लगे। इसी दौरान उन्हें 40 के दशक के शुरुआती दिनों में मुंबई में आयोजित एक कुल¨हद मुशायरे में शिरकत करने का मौका मिला। जिसमें नौशाद अली, अब्दुल हफीज कारदार, शाहिर लुधियानवी जैसे तमाम फिल्म जगत की हस्तियां भी मौजूद थीं। इस युवा शायर की प्रतिभा को पहली बार इसी मुशायरे में आंका गया और फिर मजरूह ने पलट कर पीछे नहीं देखा। 1946 में आई मशहूर फिल्म शाहजहां में केएल सहगल के गाए गीत'जब दिल ही टूट गया..'से उन्होंने शोहरत के नए सोपान गढ़े। रफी, लता, मुकेश, किशोर, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, आशा भोसले, गीता दत्त, सुरैया समेत तमाम मशहूर गायक-गायिकाओं ने मजरूह के गीतों को अपने सुरों से सजाया। वक्त के साथ कदमताल करने में भी कभी वे पीछे नहीं रहे। कयामत से कयामत तक का मशहूर नगमा ..पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा या फिर .पहला नशा, पहला खुमार अथवा .आज मैं ऊपर आसमां नीचे जैसे नए जमाने के गीत। जब तक मजरूह रहे उनकी बॉलीवुड में तूती बोली। जीवन के उत्तरार्ध में फिल्म जगत का सर्वोच्च दादा साहब फालके पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया गया। पांच दशक की अवधि में करीब साढ़े तीन हजार फिल्मी नगमों के जरिए कई बार उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी हासिल हुआ। नई पीढ़ी के तमाम फनकारों के लिए वे प्रेरणा बने तो उर्दू अदब में भी अपने विद्रोही तेवर के शेरो शायरी के लिए जाने गए। 24 मई सन् 2000 को वे इस दुनिया से जुदा हो गए। बावजूद इसके आज भी अपने सदाबहार गीतों के जरिए वे अमर हैं..।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.