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संकेतक न डिवाइडर, अनदेखी बन रही हादसों का कारण

दुर्घटना बहुल कौन सा क्षेत्र है इसकी पड़ताल तो हुई है पर इन स्थानों पर सावधानी बरतने के कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 10:34 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 10:34 PM (IST)
संकेतक न डिवाइडर, अनदेखी बन रही हादसों का कारण
संकेतक न डिवाइडर, अनदेखी बन रही हादसों का कारण

सुलतानपुर : जिले की अधिकांश सड़कें दशकों पुरानी हैं। आधुनिक निर्माण तकनीक का इनमें इस्तेमाल नहीं किया गया है। जमीनें अधिग्रहीत कर ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कें मनमाने ढंग से बनाई गई हैं। एकल यातायात व्यवस्था वाली इन सड़कों पर न तो बीच में डिवाइडर संकेत खींचे गए हैं और न ही किनारों पर सफेद पट्टी बनाई गई है। दुर्घटना बहुल कौन सा क्षेत्र है इसकी पड़ताल तो हुई है, पर इन स्थानों पर सावधानी बरतने के कोई व्यवस्था नहीं की गई है। हालात यह है कि नहरों की पटरियों पर बनाई गई सड़कों पर तमाम अंधे मोड़ हैं, जिनसे अक्सर हादसे होते हैं और वाहन नहरों में गिरते हैं।

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शहर में भी है दयनीय हालत : शहरी यातायात व्यवस्था में भी सड़कें बाधा बन रही हैं। संकरी सड़कों पर अतिक्रमण है और फुटपाथ गायब हैं। वाहनों के लिए पार्किंग स्टैंड न होने से सड़क के किनारे इन्हें खड़ा किया जाता है। ऐसे में तेज रफ्तार दो पहिया वाहन लोगों के लिए खतरे और दुर्घटना का सबब बनते हैं। पूरे शहर में किसी भी व्यस्त चौराहे पर सिग्नल प्रणाली नहीं लगी है। दो साल पहले डाकखाना और अस्पताल तिराहा पर इन्हें लगाने का प्रस्ताव हुआ जो फिलहाल ठंडे बस्ते में है।

ब्लैक स्पॉट पर नहीं हैं सूचना पट : जिले में राजमार्ग सहित संपर्क मार्गों पर 12 ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं, लेकिन इक्का-दुक्का को छोड़कर किसी भी दुर्घटना की संभावना वाले स्थल पर जरूरी दिशा निर्देश देने वाले सूचना पट नहीं लगाए गए हैं। संपर्क मार्गों पर आबादी के किनारे अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। पर, इन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

सड़क किनारे चलता है कारोबार : जिले के सभी कस्बों में बड़े राजमार्गों के साथ अन्य व्यस्त सड़कों पर दुकान के साथ अन्य कारोबार चलते हैं। निर्माण सामग्री सड़कों के किनारे डंप रहने के कारण अक्सर इनसे दुर्घटनाएं होती हैं, पर स्थानीय पुलिस, यातायात और परिवहन विभाग इन्हें हटाने की जहमत नहीं करता है।

वर्जन -

यातायात नियमों के अनुपालन में ग्रामीण क्षेत्र की स्थानीय पुलिस से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता है। विशेष अभियानों के दौरान इन क्षेत्रों में जाकर लोगों को जागरूक किया जाता है, लेकिन रोजमर्रा की घटनाएं स्थानीय पुलिस की सतर्कता से ही टल सकती हैं।

अखिलेश द्विवेदी, एआरटीओ, प्रवर्तन


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