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तंत्र के गण: आधी आबादी को मिल रही स्वावलंबन की सीख

घरेलू महिलाओं को गृह उद्योग में दक्ष कर सविता आर्थिक मजबूती की दिख रहीं राह

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:19 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:19 PM (IST)
तंत्र के गण: आधी आबादी को मिल रही स्वावलंबन की सीख
तंत्र के गण: आधी आबादी को मिल रही स्वावलंबन की सीख

सुलतानपुर: मजबूत इरादों के साथ चुनी गई राह पर चलने का जज्बा कामयाबी की मंजिलों तक पहुंचाता है। इस सफलता से तब और संतुष्टि मिलती है, जब यह जरूरतमंद दूसरे लोगों के लिए भी मददगार साबित होती है। इन्हीं इरादों के साथ 12 साल पहले स्वावलंबन की पगडंडी पर चलीं सविता ने अपने साथ महिलाओं का कारवां जोड़ लिया है। एक दशक के इस सफर में एक हजार से अधिक घरेलू महिलाओं को गृह उद्योग में दक्ष कर आर्थिक रूप से मजबूत कर रही हैं।

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रेलवे स्टेशन के निकट रुद्र नगर की सविता 2010 में यहां आकर बसीं। घरेलू महिलाओं का कामकाज के बाद बेवजह समय व्यतीत करना उनको बहुत पहले से अखरता था। इस समय का सदुपयोग करने और इससे परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की कोशिश में जुट गईं। पापड़, चिप्स, अचार गुलाब जामुन, मुरब्बा आदि बनाना शुरू किया। मेहनत रंग लाई और समय बीतने के साथ सैकड़ों जरूरतमंद महिलाएं उनके साथ जुड़ गईं।

मुफ्त में करती हैं प्रशिक्षित:

सविता की उपलब्धियों पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय केंद्र सरकार ने पालीटेक्निक स्कीम के जरिए सामुदायिक विकास का प्रशिक्षण केंद्र खोलने में सहायता की। इस केंद्र के माध्यम से वह गरीब महिलाओं को स्वावलंबी और आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का काम कर रही हैं। खाद्य प्रसंस्करण के साथ दैनिक उपयोग की सामग्री के निर्माण संग इनके विपणन की जिम्मेदारी उठाती हैं।

तिरस्कार से मिली प्रेरणा:

स्नातक तक शिक्षित सविता ने बताया कि तकरीबन 15 साल पहले एक बैंक शाखा में किसी काम से गई थीं। वहां उन्हें और अन्य महिलाओं को तिरस्कार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। तभी ठाना कि खुद आर्थिक सक्षमता हासिल करेंगी और अन्य महिलाओं को भी इसके लिए आगे लाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर 15 दिन का स्वावलंबन शिविर बीते दिनों कुड़वार के अगुई में लगाकर उन्होंने महिलाओं को इसकी सीख दी। शहर निवासी डिप्रेशन की शिकार एक महिला को सफल कारोबारी बनाने में सहयोग करने वाली सविता इसे अपनी उपलब्धि मानती हैं। जिले स्तर पर किसी तरह की सरकारी मदद न मिलने का उन्हें मलाल नहीं है। दबे मन से कहती हैं कि शासकीय सहयोग मिले तो कार्यक्षेत्र विस्तृत हो सकता है।


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