नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ सूर्योपासना का पर्व डाला छठ
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संवादसूत्र, सुलतानपुर : परिवार की समृद्धि और संतान की मंगलकामना के लिए सूर्य उपासना का महापर्व डाला छठ रविवार को भी जिले में परंपरागत ढंग से शुरू हो गया है। पहले दिन नहाय-खाय के साथ श्रद्धालुओं ने विविध कर्मकांड प्रारंभ कर दिए। सीताकुंड तट पर छठ मइया की पूजा के लिए चौरा बनाया गया और साफ-सफाई की गई। सोमवार को खरना है और फिर शुरू होगा 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत। मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और फिर बुधवार को अरुणोदय बेला में उगते सूरज को अर्घ्य देकर पर्व की समाप्ति होगी।
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ये है मान्यता
छठ पूजा को लेकर अनेक मान्यताएं समाज में प्रचलित हैं। कहा जाता है कि रावण वध के बाद कार्तिक की अमावस्या को जब श्रीराम अयोध्या पहुंचे तो उन्होंने ऋषियों-मुनियों की सलाह पर राजसूय यज्ञ किया। जिसमें मुग्दल ऋषि भी आए। उन्होंने भगवती सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य उपासना का परामर्श दिया। तब मां सीता ने ऋषि मुग्दल के आश्रम में छह दिनों तक सूर्योपासना की थी। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।
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बाजार में बिक रहे सूप और डाला के सामान
शहर के मेजरगंज, पारकीसगंज, दरियापुर, रुहट्ठा, ठठेरी बाजार आदि इलाकों में बड़ी संख्या में बिहार और पूर्वांचल के लोग निवास करते हैं। इन इलाकों में सुबह से ही पर्व को लेकर रौनक है। पूजा के लिए सूप, आम की लकड़ी, डाला, हल्दी, अदरक आदि की खरीदारी शुरू हो गयी है। वहीं गन्ना, नारियल, खाजा, मिठाई, सौंफ इलायची, फल, मखाना आदि की खरीदारी जोरशोर से की जा रही है। परंपरा है कि पर्व के मद्देनजर मिट्टी के चूल्हों पर ही प्रसाद निर्मित किया जाए। जिसके लिए घर-घर में मिट्टी के चूल्हे बनाए जा रहे हैं।
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सीताकुंड तट पर बनने लगे चौरे
आदि गंगा गोमती के सीताकुंड स्थित तट पर रविवार की शाम से ही व्रती अनुष्ठानियों का आना शुरू हो गया। लोगों ने छठ मइया के चौरे बनाए। छोटे-छोटे रंग-बिरंगे चौरे की लोगों ने साफ-सफाई की। जिनका पूजन खरना के बाद किया जाएगा।