सहकारी बैंक में नहीं शुरू हो सका नया वित्तीय वर्ष
सुलतानपुर : मिर्जा गालिब के एक शेर की पंक्ति है, मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। यह लाइन यहां के
सुलतानपुर : मिर्जा गालिब के एक शेर की पंक्ति है, मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। यह लाइन यहां के जिला सहकारी बैंक पर पूरी तरह सटीक हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद सहकारी बैंक की बदहाली में बदलाव नहीं आ रहा है। सवा लाख ग्राहकों व 17 शाखाओं वाले इस बैक की सभी शाखाओं में बीते 20 दिनों से अघोषित अवकाश है। गत वित्तीय वर्ष के लेखा-जोख की 31 मार्च को क्लोजिग न कर पाने से बैंक का आर्थिक लेन-देन ठप है। धन की निकासी न हो पाने से बैंक के ग्राहक परेशान हैं।
सुधार की दो वर्षाें से शुरू कवायद के बाद भी जिला सहकारी बैंक के हालात जस के तस हैं। ग्राहकों की जमा धनराशि का सशर्त और आंशिक भुगतान ही होता है। बैंक की मुख्यधारा में वापसी नहीं हो सकी है। सुलतानपुर व अमेठी में जिला सहकारी बैंक की 17 शाखाओं में तकरीबन सवा लाख ग्राहक बैंक से जुड़े हैं। एक दशक पूर्व बैंक की आर्थिक स्थिति बेहद जर्जर होने के बाद आरबीआई ने जिला सहकारी बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण 2016 में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से 80 करोड़ की आर्थिक सहायता से बैंक को उबारने की कोशिशें शुरू की गईं लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। स्थितियां यह है कि डेढ़ दशक से सावधि खातों में जमा ग्राहकों को उनका भुगतान बैंक अपनी शर्तों पर परिपक्व धनराशि का अधिकतम 20 फीसदी वह भी ऋण के रूप में लौटाता है। बचत खातों में जमा धनराशि के भुगतान की स्थिति ऐसी ही है। एकमुश्त एक माह में ऐसे खातों से ग्राहक मात्र 5 हजार रुपये की ही निकासी कर सकता है। इन स्थितियों पर बैंक के अध्यक्ष विजय मिश्रा ने स्वीकार किया कि बैंक की 3 शाखाओं की क्लोजिग न हो पाने और बैंक के सीबीएस होने के चलते सभी शाखाएं प्रभावित हैं। हालात सुधारने के प्रयास हो रहे हैं।