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कहीं दूषित पानी तो नहीं पी रहे मरीज!

संवादसूत्र, सुलतानपुर : जिला अस्पताल में गर्मी के मौसम में ठंडा पानी तो दूर सामान्य पानी की भी व्यव

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 Apr 2018 11:06 PM (IST)Updated: Thu, 19 Apr 2018 11:06 PM (IST)
कहीं दूषित पानी तो नहीं पी रहे मरीज!
कहीं दूषित पानी तो नहीं पी रहे मरीज!

संवादसूत्र, सुलतानपुर : जिला अस्पताल में गर्मी के मौसम में ठंडा पानी तो दूर सामान्य पानी की भी व्यवस्था ठीक नहीं है। करोड़ों रुपये के लगे वाटर प्लांट या तो ठप हैं, या तो गर्म पानी दे रहे हैं। अफसरों के कमरों में आरओ लगे हैं। इसलिए वे

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निश्िचत हैं कि वे जो पानी पी रहे हैं, वह स्वच्छ पानी है। लेकिन जो जिस जल की आपूर्ति मरीजों के लिए हो रही है वह उसकी गुणवत्ता की क्या स्थिति है इससे अस्पताल प्रबंधन व प्रशासन पूरी तरह अंजान है। रोगियों के तीमारदार ठंडे व स्वच्छ पानी के लिए इधर-उधर भटकते हैं। इस बात का लाभ परिसर के बाहर के दुकानदार भी उठाते हैं। जिला अस्पताल परिसर में दो वॉटर प्लांट लगे हैं। एक महिला अस्पताल के लिए व दूसरा पुरुष। इन दोनों को स्थापित करने में तीन करोड़ से ऊपर का व्यय बताया जाता है। मौजूदा हालात यह है कि पुरुष अस्पताल में रैन बसेरा के पास जो वॉटर प्लांट लगा है, उससे इतना गर्म पानी निकल रहा है कि पीना तो दूर, हाथ भी धुलना मुश्किल है। लोग कहते हैं कि यह कभी सामान्य पानी भी नहीं दिया है। पानी को ठंडा करने वाला यंत्र खराब पड़ा है। पुराने इमरजेंसी कक्ष के पास कार्नर में लगा वॉटर कूलर भी ठंडा पानी नहीं देता। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे उसका पानी भी गर्म होता जाता है। अस्पताल परिसर में लगी बड़ी टंकी की सफाई शायद ही कभी हुई हो। महिला अस्पताल परिसर में ओपीडी के पास दो वॉटर कूलर लगे हैं। उसमें से एक अर्से से खराब पड़ा है। एक से कामचलाऊ पानी ही निकल रहा है। नहीं होती पानी की जांच अस्पताल परिसर के अंदर में लगे वॉटर प्लांट हों या फिर उसमें स्थापित हजारों लीटर की बड़ी टंकी अथवा परिसर में लगे हैंडपंप इनसे आपूर्ति होने वाले पानी की गुणवत्ता की जांच कभी नहीं होती। अस्पताल प्रशासन को भी यह नहीं पता कि पानी की जांच हुई भी है या नहीं? सवाल उठता है कि जहां पर हजारों मरीज प्रतिदिन अपनी जांच कराने के लिए आते हैं, उन्हें पीने के लिए जो पानी सुलभ है अस्पताल परिसर में उसकी जांच क्यों नहीं होती? क्या जिम्मेदारों को इसकी गुणवत्ता का पता नहीं लगाना चाहिए? जब मरीज लंबे दिनों तक अस्पताल में

भर्ती होता है तो इस पानी का सेवन वह करता है। अगर पानी दूषित होगा तो इसकी जद में रोगी के आने की संभावना भी बनी रहेगी। सीएमएस को यह भी नहीं मालूम कि जांच कौन करेगा? यहबात जानकर पाठक को भी अचरज होगा कि जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्साधीक्षक को यह नहीं पता है कि पानी की गुणवत्ता की जांच कौन करेगा? जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने खुद सवाल कर लिया कि कौन करेगा? सीएमएस डा.योगेंद्र यति को

जब जानकारी दी गई कि मुख्यालय स्थित जलनिगम कार्यालय में पानी की जांच के लिए प्रयोगशाला है और इस विभाग के अधिकारी ही यह कार्य करते हैं, तब उनका कहना था कि पिछले दिनों जलनिगम के एक्सइएन तो मिले थे, लेकिन इस संबंध में उनसे कोई चर्चा नहीं कर सका।


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