मातृभूमि पर दीप जलाने 134 साल बाद मॉरीशस से लौटा परिवार
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शिवशंकर पांडेय, भदैंया : भगवान राम के अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में देशभर में धूमधाम से मनाया जाने वाला दिवाली का त्यौहार का आकर्षण ही ऐसा है कि वह देश के साथ-साथ प्रवासी लोगों को भी अपनी जन्मभूमि पर खींच लाता है। यही वजह है कि मॉरीशस का एक परिवार 134 साल बाद अपने पूर्वजों की ड्योढ़ी पर दीप जलाने भारत आ पहुंचा है। आपको यह जानकर गर्व होगा कि देशप्रेमी इस परिवार के पूर्वजों ने 1875 में अंग्रेजों के विरोध के बावजूद सुलतानपुर के चौक इलाके में तिरंगा फहराया था। बेलामोहन गांव में मॉरीशस से दिवाली मनाने आए प्रवासी भारतीय राधारामराज ¨सह के पूर्वज को इसी जुर्म में ब्रिटिश हुकुमत ने कालापानी की सजा देकर विदेश भेज दिया था। तब से उनकी कई पीढि़यां मॉरीशस में ही रह रही हैं।
शनिवार को राधारामराज ¨सह(72 वर्ष) अपनी पत्नी कमला के साथ मारीशस से जब अपने पूर्वजों की धरती भदैंया ब्लॉक के बेलामोहन गांव पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जुट गई। राधारामराज ¨सह ने इस बार अपने पूर्वजों की इसी जन्मभूमि पर दीप जलाने के मकसद से आगमन होने की बात बताई तो इसकी चर्चा चारों ओर फैल गई। गांव के सेवानिवृत्त सीओ दुर्गा प्रताप ¨सह व विजय प्रताप ¨सह के परिवार से उनका तीन पीढ़ी पहले का नाता है। साल 2000 में यह परिवार पहली बार अपने वंशजों को ढूंढ़ते हुए अयोध्या के रास्ते यहां पहुंचा था। अबकी बार वह दिवाली मनाने यहां आए हैं।
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राधारामराज ¨सह के बाबा रामराज कैसे पहुंचे मॉरीशस
रामराज ¨सह भदैंया के बेलामोहन गांव के सुखदेव ¨सह के पुत्र व राधारामराज ¨सह के बाबा थे। वह छह भाई थे। रामरतन, रामबदन, जयराज, अजरायल व चंद्रिका ¨सह। जिनमें रामरतन व रामबदन की द्वितीय विश्व युद्ध में मौत हो गयी। अजरायल व चंद्रिका ¨सह का परिवार गांव में अभी भी है। रामराज ¨सह को चौक में तिरंगा फहराने पर कालापानी की सजा के तौर पर पहले कलकत्ता ले जाया गया। इसके बाद उन्हें सेल्युलर जेल(अंडमान निकोबार द्वीप पर) में रखा गया। बाद में उन्हें गिरमिटिया मजदूर के रूप में मॉरीशस भेज दिया गया। वहीं इनके चार पुत्र व दो पुत्री हुई। राधारामराज ¨सह इनके सुपौत्र हैं, जो कि मॉरीशस में पर्यावरण विभाग से 1999 में सेवानिवृत्त हुए हैं।