11 साल से भटकता रहा भुक्तभोगी, अदालत ने दी राहत
सुलतानपुर: बंदर को मारने का आरोपित बनाए गए एक इंशान को अपने आप को बेगुनाह साबित करने और न्याय पाने
सुलतानपुर: बंदर को मारने का आरोपित बनाए गए एक इंशान को अपने आप को बेगुनाह साबित करने और न्याय पाने में 11 साल लग गए। उच्च न्यायालय ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए आरोपी को बरी कर दिया। साथ ही न्याय प्रक्रिया में देरी के लिए निचली अदालत की भी चूक मानी।
घटना 8 अगस्त 2008 की है। कोतवाली नगर के एक मैरिज हॉल में एक बंदर मृत पाया गया था। चौकी प्रभारी सीताकुंड ने उसका पोस्टमार्टम कराया। उसे मारने के जुर्म में मैनेजर इंद्रसेन सिंह को आरोपित बना दिया गया। पुलिस द्वारा न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल करने के बाद मुकदमे का ट्रायल शुरू हो गया। इस बीच आरोपित अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए भटकता रहा। उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के बाद तथ्यों का परीक्षण शुरू हुआ। अदालत ने पाया कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के कानून की जानकारी के बगैर पुलिस ने आरोप पत्र न्यायालय में भेज दिया। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने भी आरोप पत्र को बिना पढ़े ही संज्ञान ले लिया । वन्य जीव कानून की धारा 55 का पालन नही हुआ। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि मुकदमे का फैसला करते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने आरोप पत्र सहित दीवानी न्यायालय की सारी प्रक्रिया को शून्य घोषित कर दिया।